आज़ादी के बाद भारत की झोली में अंधेरे और उजाले दोनों पक्षों का एक विरोधाभासी सम्मिलन था, जिनमें से एक के द्वारा भारत ने विश्व नेतृत्व की नींव रखी और दूसरे के द्वारा कड़े अनुभवों को आत्मसात् किया। चर्चा करें।
16 Mar, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास
उत्तर की रूपरेखा :
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15 अगस्त, 1947 को भारत गुलामी की दासता से मुक्त हुआ। हमें कई समस्याएँ विरासत में मिलीं। पुराने अनुभवों से सबक लेकर हमने आगे बढ़ने का मार्ग तलाशना शुरू किया। कुछ कर गुज़रने का जज़्बा लिये हम आगे बढ़े और विश्व में हमने अपनी एक अलग पहचान कायम की।
दासता से मुक्ति के पश्चात् राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं वैदेशिक क्षेत्रों में हमें कई चुनौतियों (अंधेरों) का सामना करना पड़ा। इन समस्याओं में विभाजन से उपजी समस्याएँ, सांप्रदायिकता, कमज़ोर आर्थिक स्थिति, शीत युद्ध के कारण गुटों में विभाजित विश्व राजनीति आदि प्रमुख हैं। ये समस्याएँ आज भी विद्यमान हैं।
यद्यपि उजाले की ओर कदम बढ़ाते हुए हमने बहुत हद तक इन समस्याओं से निपटने के लिये प्रयास किया। इसके तहत मज़बूत संविधान का निर्माण किया गया, सरदार पटेल के नेतृत्व में राज्यों का एकीकरण किया गया, संविधान में सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व दिया गया, पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से आर्थिक विकास को गति प्रदान की गई, कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हेतु हरित क्रांति को अपनाया गया, विश्व राजनीति से अलग तृतीय विश्व को पहचान दिलाने हेतु गुटनिरपेक्ष आंदोलन का शुभारंभ किया गया तथा चीन एवं पाकिस्तान से सफलतापूर्वक अपनी रक्षा की गई।
उपरोक्त कार्यों के फलस्वरूप आज भारत ने अपनी संस्कृति और लोकतांत्रिक मूल्यों के कारण विश्व स्तर पर अपनी एक अलग पहचान कायम की है। हमने एक सॉफ्ट पावर के रूप में विश्व में अपनी पहचान बनाई है। आज पी.पी.पी. के आधार पर भारत विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है। हमारी जी.डी.पी. लगभग 6.5 से 7 प्रतिशत की दर से वृद्धि कर रही है। हमारी परमाणु क्षमता को विश्व बिरादरी ने मान्यता प्रदान की है। भारतीय सेना का विश्व में तीसरा स्थान है। योग के माध्यम से हमने ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना को साकार किया है।
भारत की सफलता (उजाला) को अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भी देखा जा सकता है। 15 अगस्त, 1969 को स्थापित भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रयासों से भारत ने अंतरिक्ष तकनीकी के क्षेत्र में विश्व में एक प्रमुख शक्ति के रूप में अपनी पहचान कायम की है।
यद्यपि आज भी भारत में औपनिवेशिक विरासत से मिली कई समस्याएँ बनी हुई हैं फिर भी हमारा कारवां वैश्विक नेतृत्व की ओर (उजाले की ओर) अग्रसर है।