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प्रश्न :
फसल विविधता के समक्ष मौजूदा चुनौतियाँ क्या हैं? उभरती प्रौद्योगिकियाँ फसल विविधता के लिये किस प्रकार अवसर प्रदान करती हैं? (250 शब्द)
01 Jun, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
फसल विविधीकरण से तात्पर्य नई फसलों या फसल प्रणालियों से कृषि उत्पादन को जोड़ने से है, जिसमें एक विशेष कृषि क्षेत्र पर कृषि उत्पादन के पूरक विपणन अवसरों के साथ मूल्य वर्द्धित फसलों से विभिन्न तरीकों से लाभ मिलता है। पशु कृषि/पशुपालन,वानिकी एवं मत्स्य पालन फसल विविधीकरण को बेहतर अवसर प्रदान करते हैं।
भारत में बहुतायत फसल क्षेत्र पूरी तरह से वर्षा पर निर्भर हैं। साथ ही भूमि और जल संसाधनों जैसे संसाधनों का दोहन और अधिकतम उपयोग, पर्यावरण और कृषि की स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। बीज और पौधों की अपर्याप्त आपूर्ति, कृषि के आधुनिकीकरण और मशीनीकरण के पक्ष में भूमि का विखंडन आदि समस्याएँ कृषि उत्पादकता एवं विविधीकरण के समक्ष नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करती हैं।
ग्रामीण सड़क, बिजली, परिवहन, संचार आदि कमज़ोर बुनियादी ढाँचे हैं तथा फसल कटाई के पश्चात् अपर्याप्त प्रौद्योगिकियाँ भी समस्याओं को जन्म देती हैं। खराब होने वाले बागवानी उत्पादों का प्रबंधन करने के लिये अपर्याप्त सुविधाएँ, कमज़ोर कृषि आधारित उद्योग, किसानों में बड़े पैमाने पर निरक्षरता के साथ अपर्याप्त प्रशिक्षित मानव संसाधन, अधिकांश फसलों और पौधों को प्रभावित करने वाले रोगों और कीटों की अधिकता, बागवानी फसलों के लिये अपर्याप्त डेटाबेस के साथ कई वर्षों से कृषि के क्षेत्र में निवेश में कमी आदि समस्याएँ कृषि विविधीकरण के सामने चुनौतियाँ उत्पन्न करती हैं।
वस्तुत: वर्तमान में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के माध्यम से कृषि क्षेत्र में फसलों की किस्मों एवं उत्पादन की गुणवत्ता में वृद्धि की जा सकती है। प्रौद्योगिकी द्वारा ऊतक संवर्द्धन, भ्रूण संवर्द्धन जैसी पौध प्रवर्द्धन विधियाँ, पशु जैव प्रौद्योगिकी द्वारा मवेशियों की उत्पादकता, रोगों का उपचार व भ्रूण परिवर्द्धन एवं हस्तांतरण द्वारा पशुओं की नई नस्लें विकसित करने में सफलता प्राप्त हुई है। फसलों की समय सीमा को कम करके किसी एक ही भूखंड पर बार-बार खाद्यान्न फसलों का उत्पादन कर तथा पशु की आबादी में आनुवंशिक सुधार कर स्वदेशी पशु की उत्पादकता में वृद्धि कर फसल विविधता को प्राप्त किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त समुद्री जैव प्रौद्योगिकी के अंदर विभिन्न समुद्री जीवों की खोज, समुद्री खाद्य प्रसंस्करण संभव हुआ है। वर्तमान में जीन अभियांत्रिकी और पौधों की नवीन विकसित प्रजनन प्रौद्योगिकी द्वारा इस तरह के गुणों को समाविष्ट किया जा सकता है, जिन पर कवकनाशी तथा कीटनाशक रसायनों के अवशेषों का प्रभाव न पड़े, इससे खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकती है- Bt कपास, Bt बैंगन, GM सरसों एवं गोल्डन राइस आदि आनुवंशिक रूप से जैव-संवर्द्धित फसलों के ही उदाहरण हैं। जैव उर्वरक के रूप में राइजोबियम, एजोटोबेक्टर, ब्लू ग्रीन एल्गी आदि सूक्ष्मजीवों का प्रयोग किया जा रहा है। साथ ही प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले पदार्थों; जैसे-नीम, सूक्ष्मजीवों, पौधों तथा जंतुओं से प्राप्त रसायन आदि का उपयोग जैव कीटनाशकों के रूप में किया जा रहा है।
साथ ही नैनो-प्रौद्योगिकी के माध्यम से मिटेी की स्थितियों तथा खाद्य पदार्थों की पैकिंग से पहले उनमें विभिन्न रोगाणुओं, रासायनिक तत्त्वों की मौजूदगी आदि का पता लगाया जा सकता है। वर्तमान में कृषि रोबोट की सहायता से मुख्यत: फसलों की कटाई की जा सकती है, इसके अलावा ड्रोनों एवं रोबोट के उभरते अनुप्रयोगों में खरपतवार नियंत्रण, क्लाउड सीडिंग, बीज रोपण, मृदा विश्लेषण आदि को प्राप्त किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त रोबोट का इस्तेमाल पशुधन अनुप्रयोगों में भी किया जा रहा है।
निश्चित तौर पर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी द्वारा कृषि विविधीकरण को प्राप्त करने में सफलता प्राप्त हुई है, जिसके माध्यम से खाद्य सुरक्षा को प्राप्त किया जा सकता है, परंतु इसके साथ ही यह आवश्यक है कि प्रौद्योगिकी का उपयोग लाभप्रद तरीके से किया जाए, जिससे प्राकृतिक जैव विविधता एवं सतत विकास का मार्ग सुनिश्चित किया जा सके।
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