कोरियाई युद्ध का अंत करने वाले ‘युद्धविराम समझौते, 1953’ को प्रभावी बनाने में भारत द्वारा निभाई गई महत्त्वपूर्ण भूमिका की चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- कोरियाई युद्ध की पृष्ठभूमि का संक्षेप में वर्णन करें।
- किन चिंताओं के कारण भारत की भागीदारी की आवश्यकता पड़ी।
- यथास्थिति की बहाली के लिये भारत द्वारा किये गए प्रयासों चर्चा करें।
- इस वर्णन के साथ उत्तर पूर्ण करें कि कोरियाई युद्ध में मध्यस्थता किस प्रकार गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के सिद्धांतों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का परीक्षण था।
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द्वितीय विश्वयुद्ध के अंत ने कोरिया को समाजवादी खेमे द्वारा नियंत्रित कम्युनिस्ट उत्तर कोरिया और पश्चिमी शक्तियों के वर्चस्व वाले दक्षिण कोरिया के बीच विभाजित कर दिया था। 25 जून, 1950 को कोरियाई युद्ध की शुरुआत हुई जब उत्तर कोरियाई पीपुल्स आर्मी के लगभग 75,000 सैनिकों ने 38वें समानांतर रेखा को पार कर दक्षिण कोरिया में प्रवेश किया। यह आक्रमण शीतयुद्ध की पहली सैन्य कार्रवाई थी जहाँ अमेरिका तथा सोवियत संघ और बाद में चीन संघर्षरत हुए।
भारत की चिंताएँ
- भारत आंशिक रूप से इस आशंका से सक्रिय हुआ कि शीतयुद्ध, एशिया में एक अत्यधिक खतरनाक आयाम ले सकता है जो भारत की सीमाओं तक भी विस्तृत हो सकता है और इस कारण भारत सरकार ने भी इस युद्ध में मुखर रुचि ली।
भारत की प्रतिक्रिया
- इस युद्ध के प्रति भारत का दृष्टिकोण दो बुनियादी अनिवार्यताओं से प्रेरित था। पहली अनिवार्यता यह थी कि युद्ध को नियंत्रित किया जाए और इसका आगे विस्तार न हो।
- भारत की दूसरी अनिवार्यता महाशक्ति एकता के सिद्धांत (Principle of Great Power Unity) को बनाए रखने की थी। इस संबंध में भारत मानता था कि सुरक्षा परिषद को यह अवसर सृजित करना चाहिए जहाँ पाँचों महाशक्तियाँ विचार-विमर्श और कार्रवाई के लिये साथ आ सकें।
- मूर्त, भौतिक स्तर पर भारत ने युद्ध में घायल लोगों की सहायता के लिये एक चिकित्सा इकाई (60वीं पैरा फील्ड एंबुलेंस) भेजी।
- कार्मिकों के योगदान के अतिरिक्त भारत ने राजनीतिक और राजनयिक स्तर पर युद्ध के अंत के लिये महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया।
- चीन में साम्यवादी क्रांति के बाद चीन और अमेरिका के बीच औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं था और भारत ही दोनों देशों के बीच संवाद की एकमात्र कड़ी था।
- सुरक्षा परिषद में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पी.आर.सी.) के गैर-प्रतिनिधित्व और सोवियत संघ द्वारा इस निकाय के बहिष्कार के परिदृश्य में भारत ने चीन को सुरक्षा परिषद में शामिल करने की अपील की और सुरक्षा परिषद का आह्वान किया कि वह संयुक्त रूप से समस्याओं के समाधान के लिये आगे बढ़े।
- भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के उन प्रस्तावों का समर्थन किया जिसमें किसी भी पक्ष की निंदा या युद्ध विस्तारित करने के किसी प्रस्ताव के बिना यथास्थिति बहाल करने की आकांक्षा प्रकट की गई थी।
- इसके परिणामस्वरूप 27 जुलाई, 1953 को एक युद्धविराम की घोषणा कर दी गई। भारत के जनरल थिमबया की अध्यक्षता में एक तटस्थ राष्ट्र प्रत्यावर्तन आयोग (Neutral Nations Repatriation Commission) की स्थापना की गई और उनके नेतृत्व में कार्यरत एक भारतीय ‘कस्टोडियन फोर्स’ को बंदी सैनिकों के प्रत्यावर्तन का कठिन कार्य सौंपा गया।
कोरियाई युद्ध भारत की गुटनिरपेक्षता और शांति के प्रति प्रतिबद्धता का एक परीक्षण था। भारत के राजनयिक और सुलह प्रयासों के बिना यह युद्ध एक व्यापक सैन्य संघर्ष में रूपांतरित हो सकता था जिसके परिणामस्वरूप बड़ी शक्तियाँ एक और अंतहीन युद्ध में उलझ कर रह जातीं।