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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    क्या नागरिक समाज और गैर-सरकारी संगठन, आम नागरिक को लाभ प्रदान करने के लिये लोक सेवा प्रदायगी का वैकल्पिक प्रतिमान प्रस्तुत कर सकते हैं? इस वैकल्पिक प्रतिमान की चुनौतियों की विवेचना कीजिये। (उत्तर 250 शब्दों में दीजिये।)

    10 May, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय

    उत्तर :

    किसी देश में संपूर्ण प्रशासन का संचालन, लोक कल्याणकारी पहलों का क्रियान्वयन तथा लोक सेवा की आम नागरिक तक पहुँच सरकार का प्राथमिक दायित्व है। हालाँकि यह समस्त कार्य केवल सरकार द्वारा दक्षता से सुनिश्चित किया जाना व्यावहारिक रूप से थोड़ा कठिन हो जाता है। इसीलिये सरकारी पहलों व लोक सेवाओं की डिलीवरी के संदर्भ में समाज व गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका रेखांकित होती है। सिविल सोसायटी सरकार व नागरिकों के बीच एक सेतु का कार्य करती है, जिससे सरकारों का कार्य क्रियान्वयन के स्तर पर थोड़ा सरल हो जाता है।

    लोक सेवा प्रदायगी के विशिष्ट संदर्भ में बात की जाए, तो सिविल सोसायटी नीति निर्माण में प्रक्रिया, क्रियान्वयन व मूल्यांकन के स्तर पर अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर लक्षित समूहों को चिह्नित करने, बेहतर क्रियान्वयन में सहायता करने व सटीक मूल्यांकन सरकार तक पहुँचाने में एक वैकल्पिक प्रतिमान के रूप में उभर सकती है। इसके अलावा किसी सरकारी पहल के संदर्भ में जन-जन तक जागरूकता फैलाने में भी अपने स्वयंसेवकों के माध्यम से एक वैकल्पिक भूमिका निभा सकती है। सिविल सोसायटी के माध्यम से लोक सेवा प्रदायगी में भ्रष्टाचार की समस्या को भी न्यून किया जा सकता है।

    हालाँकि सिविल सोसायटी का लोक सेवा प्रदायगी हेतु एक वैकल्पिक प्रतिमान प्रस्तुत करना अनेक चुनौतियों से भरा है। सिविल सोसायटी के संदर्भ में भी भ्रष्टाचार एक बड़ी समस्या के रूप में देखा जाता है और ये परिवारवाद का भी गढ़ बनती हैं। साथ ही, सिविल सोसायटी के संदर्भ में यह चिंता भी हमेशा रहती है कि ये सामाजिक हितों व राष्ट्रीय हितों से कोई समझौता न कर लें। हाल ही के दिनों में कुछ NGOs की विवादास्पद विदेशी स्रोतों से फंडिंग के मामले सामने आने के बाद सिविल सोसायटी के भारत की एकता एवं अखंडता पर संकट उत्पन्न करने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। इसके अलावा सिविल सोसायटी पर अभिजात्य वर्ग से संबद्ध होने, क्रोनी पूंजीवाद को बढ़ावा देने, धन शोधन का ज़रिया बनने आदि के आरोप भी लगते रहे हैं। ऐसे में सिविल सोसायटी द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले लोक सेवा प्रदायगी के वैकल्पिक प्रतिमान का सातत्य सुनिश्चित करना कठिन है।

    उपर्युक्त चुनौतियों के बावजूद सिविल सोसायटी सरकारी लाभों की लास्ट माइल डिलीवरी सुनिश्चित करने का एक प्रभावी माध्यम बन सकती है। इसके लिये सरकार को वे क्षेत्र स्पष्टता से निर्धारित करने होंगे, जिनके अंतर्गत सिविल सोसायटी संचालित हो सकती है। इसके अलावा यदि सिविल सोसायटी के कुछ तत्त्व अवांछित गतिविधियों में लिप्त पाए जाते हैं, तो उनके साथ कठोरता बरतते हुए, सिविल सोसायटी के शेष आयामों की सकारात्मक सहभागिता सुनिश्चित की जानी चाहिये।

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