प्रथम विश्व युद्ध ने यूरोपीय समाज और राजनीति पर गहरा प्रभाव डाला। परीक्षण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
प्रथम विश्वयुद्ध के परिमाण और प्रकृति की संक्षिप्त चर्चा कीजिये।
- यूरोप में प्रथम विश्वयुद्ध के विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक निहितार्थों का उल्लेख कीजिये।
- घटना के समग्र पुनर्मूल्यांकन के साथ निष्कर्षं दीजिये।
|
प्रथम विश्वयुद्ध का प्रभाव असाधारण रूप से व्यापक था जो आश्चर्यजनक नहीं था क्योंकि यह इतिहास का पहला ‘समग्र युद्ध’ था। इसका आशय यह है कि इसमें केवल सेनाएँ और नौसेनाएँ नहीं बल्कि पूरी आबादी संलग्न थी और यह आधुनिक व औद्योगिक राष्ट्रों के बीच पहला बड़ा संघर्ष था। इस परिप्रेक्ष्य में प्रथम विश्वयुद्ध ने व्यापक विनाश और महामारी के साथ ही यूरोपीय समाज और राजनीति पर गहरा प्रभाव छोड़ा।
यूरोपीय समाज और राजनीति पर प्रथम विश्वयुद्ध के प्रभाव
- युद्ध का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रभाव सैनिकों की बड़ी संख्या में मौत में परिलक्षित हुआ जहाँ युवा पुरुषों की एक पूरी पीढ़ी के एक बड़े अनुपात का नाश हो गया (खोई हुई पीढ़ी/ the ‘lost generation’)। उदाहरण के लिये, फ्राँस के सैन्य आयु के लगभग 20 प्रतिशत पुरुष मारे गए।
- विश्वयुद्ध की पीड़ा और पराजय ने जर्मनी में एक क्रांति को जन्म दिया जहाँ कैसर विलयम द्वितीय को सत्ता के त्याग के लिये मजबूर किया गया और जर्मनी को गणराज्य घोषित कर दिया गया। अगले कुछ वर्षों में वाइमर गणराज्य (जिस नाम से यह ज्ञात होने लगा था) को गंभीर आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ा।
- हैब्सबर्ग साम्राज्य का पूर्णरूपेण पतन हो गया और विभिन्न राष्ट्रीयताओं ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया; ऑस्ट्रिया और हंगरी दो अलग-अलग राष्ट्रों में विभाजित हो गए।
- रूस में युद्ध के दबाव 1917 में दो क्रांतियों के कारण बने। पहली क्रांति (फरवरी-मार्च) ने जार निकोलस द्वितीय को सत्ता से उखाड़ फेंका और दूसरी क्रांति (अक्तूबर-नवंबर) लेनिन और बोल्शेविकों (कम्युनिस्टों) को सत्ता में लेकर आई।
- यद्यपि इटली विजयी पक्ष में शामिल था, युद्ध ने उसके संसाधनों का भारी व्यय किया था और वह भारी कर्ज में डूब गया था। मुसोलिनी ने सत्ता पर काबिज होने के लिये सरकार की अलोकप्रियता का फायदा उठाया।
- युद्ध के बाद सेना भंग करने की तात्कालिक चुनौतियाँ मौजूद थीं। वृहत स्तर पर सेनाओं में भर्ती किये गए लाखों लोगों को सेना से अलग कर नागरिक जीवन में पुन: शामिल किया जाना था।
- भारी सैन्य हानि झेलने वाले देशों की युद्ध बाद की आबादी महिलाओं, किशोरों और बुजुर्गों के विषम अनुपात दर्शा रही थी।
- युद्ध के दौरान लाखों की संख्या में शहरी निवासी विस्थापित हुए और अपने ही देश में शरणार्थी बन गए।
- युद्ध के बाद विश्व में सुरक्षा और शांति को बढ़ावा देने के लिये राष्ट्रों के एक अंतर्राष्ट्रीय निकाय की आवश्यकता प्रकट हुई। इसके कारण राष्ट्र संघ (League of Nations) की स्थापना हुई।
- युद्ध से पहले तक महिलाओं को समाज में एक अलग भूमिका में देखा जाता था। लेकिन युद्ध ने कारखानों और अन्य क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी की आवश्यकता को जन्म दिया जबकि वे क्षेत्र पहले विशेष रूप से पुरुषों के कार्य के लिये आरक्षित थे। इसने समाज की धारणा में परिवर्तन किया और बाद में महिलाओं के अधिकार के लिये अधिनियम पारित किये गए जिसमें ब्रिटेन जैसे देशों में महिलाओं को मतदान का अधिकार देने जैसे कई नए कदम शामिल थे।
युद्ध के बाद के यूरोप ने आवश्यक रूप से युद्ध से क्षतिग्रस्त एक सामाजिक परिदृश्य को प्रकट किया जो आर्थिक, राजनीतिक एवं सामाजिक अव्यवस्था, बीमारी एवं विकलांगता, मृत्यु एवं शोक के लक्षणों वाला परिदृश्य था। इस तरह के बदले हुए सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में शेष विश्व भी इन परिवर्तनों से अछूता नहीं रह सकता था और उसपर इसका गहरा प्रभाव पड़ा।