एक शहर के नगर निगम द्वारा सार्वजनिक परिवहन अवसंरचना के विकास हेतु पेड़ों की कटाई की अनुमति दी गई है। कंक्रीट के जंगल युक्त ज़िले में क्षेत्र एक्स (x) एक हरित पट्टी है। ऐसे में बढ़ती पर्यावरणीय जागरूकता के प्रभाव में लोग सड़कों पर उतर आए हैं ताकि पर्यावरण संरक्षण के संदेश को फैलाया जा सके तथा पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के खिलाफ लोग खड़े हो सकें। जबकि नगर निगम का मत है कि वहनीय सार्वजनिक परिवहन अवसंरचना के विकास से लोग निजी वाहनों के उपयोग में कटौती करेंगे जिससे अंतत: कार्बन फुटप्रिंट कम हो जाएगा। इसी के साथ प्रदर्शनकर्त्ताओं का कहना है कि यह क्षेत्र प्राकृतिक रूप से बाढ़ क्षेत्र है, जिसमें पेड़ों के कटाव एवं निर्माण गतिविधियों के चलते मानसून के दौरान स्थिति और बदतर हो जाएगी। पेड़ों की कटाई के खिलाफ व्यापक जन विरोध को देखते हुए राज्य सरकार ने इस मामले पर गौर करने एवं परियोजना हेतु वैकल्पिक सुझाव देने के लिये एक समिति का गठन किया है। आपको इस समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया है। जनता की चिंताओं के समाधान एवं पर्यावरणीय प्रभाव को सीमित करने हेतु आप सरकार से किस प्रकार की कार्रवाई की सिफारिश करेंगे? (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- केस स्टडी में शामिल हितधारकों की पहचान कीजिये।
- केंद्रीय मुद्दों का वर्णन कीजिये।
- समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्रवाई का उचित तरीका बताइये।
- आशावादी निष्कर्ष दीजिये।
|
हितधारक
- राज्य सरकार
- शहर का नगर निगम
- पर्यावरण कार्यकर्त्ता
- समिति के अध्यक्ष
- व्यापक अर्थों में सामान्य जनता
केंद्रीय मुद्दा
प्रस्तुत केस स्टडी में केंद्रीय मुद्दा यह है कि पर्यावरण से समझौता किये बिना सामाजिक-आर्थिक विकास कैसे सुनिश्चित किया जाए। इस तरह के संतुलन को कायम रखना किसी भी सरकार या दुनिया के किसी भी देश के लिये एक चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है। यहाँ शामिल समग्र चिंता यह है कि पेड़ों की कटाई से जैव विविधता की क्षति हो रही है और अन्य पर्यावरणीय चुनौतियों के संदर्भ में लोगों की चिंताओं का निराकरण करते हुए, निजी वाहनों के उपयोग को कम करने वाले सार्वजनिक परिवहन के लिये बुनियादी ढाँचा निर्माण की विकासात्मक परियोजनाओं को कैसे आगे बढ़ाया जाए तो अतत: शहर में कार्बन पुटप्रिंट को कम करेगी।
समिति के अध्यक्ष के रूप में उचित कार्रवाई-
- समिति के अध्यक्ष के रूप में मैं सबसे पहले इस मामले में शामिल सभी हितधारकों के साथ एक बैठक बुलाऊँगा और उनके दृष्टिकोणों को समझने का प्रयास करूँगा।
- बाढ़ संभावित क्षेत्र में सार्वजनिक परिवहन अवसंरचना के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करने के लिये एक टास्क फोर्स का गठन करूँगा।
- यदि पर्यावरण प्रभाव आकलन टास्क फोर्स परियोजना का समर्थन करती है तो मैं परियोजना पर आगे बढ़ने के लिये सरकार से अनुरोध करूँगा और स्थानीय आबादी को यह विश्वास दिलाऊँगा कि परियोजना के कारण काटे गए पेड़ों के एवज में क्षेत्र में क्षतिपूरक वनीकरण वृहद् स्तर पर किया जाएगा।
- हालाँकि यदि टास्क फोर्स किसी भी तरह से परियोजना का विरोध करती है तो मैं सरकार को परियोजना का काम रोक देने की सलाह दूँगा और किसी अन्य क्षेत्र की पहचान का प्रयास करूँगा जहाँ परियोजना पुन: शुरू की जा सके। इस संदर्भ में वैकल्पिक स्थान का चयन करते समय पहले ही पर्यावरण प्रभाव आकलन कर संबंधित अध्ययन क्षेत्र के निवासियों के अवलोकनार्थ सार्वजनिक पोर्टल पर उपलब्ध कराना सुनिश्चित करूँगा।
- इसके अलावा, उपरोक्त तात्कालिक उपायों की सिफारिश करने के साथ ही मैं आने वाले समय में इस तरह के मुद्दों से निपटने के लिये कुछ अन्य उपायों का सुझाव दूँगा, जिनका विवरण निम्नलिखित है-
- मैं राज्य सरकार को संवृद्धि और विकास को बढ़ावा देने के लिये ‘हरित अर्थव्यवस्था’ अपनाने का सुझाव दूँगा। इससे मानव कल्याण और सामाजिक समता से सुधार सुनिश्चित हो सकेगा, साथ ही पर्यावरणीय जोखिम और पारिस्थितिक संकट को कम किया जा सकेगा।
- इस संबंध में कुछ वैकल्पिक उपाय सौर ऊर्जा, जैव ईंधन, हाइड्रोजन फ्यूल सेल संचालित वाहनों व इलेक्ट्रिक वाहनों आदि को अपनाया जा सकता है जो कार्बन फुटप्रिंट कम करने में मदद कर सकते हैं।
- यदि राज्य सरकार धारणीय विकास मॉडल को अपनाने पर ध्यान देती है तो भविष्य में ऐसे विवादास्पद मुद्दोें से बचा जा सकता है। इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास मॉडल को शहरी विकास योजनाओं में शामिल किया जा सकता है।
- हमारे संविधान में भी राज्य और नागरिक दोनों को पर्यावरण को संरक्षित रखने के लिये निर्देशित किया गया है। अनुच्छेद 48A राज्य को पर्यावरण की रक्षा और सुधार की ज़िम्मेदारी देता है और अनुच्छेद 51A (g) पर्यावरण की रक्षा करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य सुनिश्चित करता है।
वर्तमान समय में धारणीय विकास हमारी आवश्यकता है, अत: हम सबकी सामूहिक व व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी है कि संपूर्ण मानवता के लिये प्रकृतिप्रदत्त संसाधनों का इस प्रकार प्रयोग करें कि वे भावी पीढ़ी के लिये भी उपलब्ध रहें और विकास के नाम पर एक ही पीढ़ी में समाप्त न हो जाएँ।