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प्रश्न :
मुक्तिपरक (जीवनरक्षक) नैतिकता क्या है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिये। (150 शब्द)
05 May, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- जीवनरक्षक नैतिकता की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
- जहाँ आवश्यक हो वहाँ उचित उदाहरण दीजिये।
- इसकी सीमाओं को संक्षेप में बताइये।
- देशों के बीच सहयोग एवं खुलेपन से कैसे सभी को लाभ हो सकता है, इसको बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।
जीवनरक्षक नैतिकता वर्ष 1974 में प्रसिद्ध पर्यावरण विज्ञानी गैरेट हार्डिन द्वारा प्रस्तावित संसाधनों के वितरण के समतुल्य है। हार्डिग के अनुसार, प्रत्येक देश एक जीवन नौका के समान है जो कि विशिष्ट वहन क्षमता रखते हैं और अन्य व्यक्तियों को भी वहन करने की क्षमता रखते हैं। किंतु इससे उस देश के मूल निवासियों के लिये आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता में बाधा उत्पन्न हो सकती है। किंतु वर्तमान परिदृश्य में विकसित एवं विशेषाधिकार प्राप्त देश गरीब देशों एवं इनके प्रवासियों को सहायता प्रदान नहीं करना चाहते ऐसा शायद इसलिये कि उनमें इनके पीड़ित व्यक्तियों के प्रति कोई कर्त्तव्य-बोध नहीं होता और यह कृत्य उनके अपने नागरिकों के लिये संसाधनों की उपलब्धता को और तनावपूर्ण बना सकता है।
हाल के दिनों में विकसित देशों में तीव्र प्रवासी विरोधी प्रवृत्तियाँ देखी जा रही हैं। युद्धग्रस्त देशों जैसे कि सीरिया, इराक, लीबिया तथा यमन जैसे देशों से आए शरणार्थियों को कई यूरोपीय देशों ने प्रवेश नहीं दिया। यहाँ तक कि भारत ने शरणार्थी सहिष्णु होने के बावजूद रोहिंग्या शरणार्थियों को सहर्ष स्वीकार नहीं किया है। हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका ने एक नियंत्रणकारी आव्रजन नीति का शुभारंभ किया है जिसमें मध्य अमेरिकी देशों में अशांति तथा गरीबी से क्षुब्ध होकर अमेरिका आने वाले लोगों को प्रतिबंधित कर दिया गया है। उपर्युक्त सभी कार्यवाहियाँ मानवता की दृष्टि से अनैतिक प्रतीत होती हैं किंतु यदि जीवनरक्षक नैतिकता की दृष्टि से देखा जाए तो ये कृत्य पूर्णत: उचित प्रतीत होते हैं।
विज्ञान-प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास एवं शासन में मानवीय प्रगति सभी देशों में जीवनस्तर को सुधारने में विफल रही हैं। विश्व की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अविकसित एवं विफल राष्ट्रों में रह रहा है जहाँ वे गरीबी, जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों एवं गृहयुद्धों से जूझ रहे हैं इन प्रभावित लोगों को त्वरित सहायता और शरण दिए जाने की आवश्यकता है। एक जीवनरक्षक नैतिकता का पोषक यह कह सकता है कि देशों को संसाधनों की सीमितता की स्थिति में केवल अपने ही नागरिकों का ध्यान रखना चाहिये।
उपर्युक्त तर्क दो आधारों पर त्रुटिपूर्ण प्रतीत होता है, हालाँकि संसाधन सीमित हैं, परंतु वास्तविक समस्या उनके असमान वितरण में है। दूसरा सहायता एवं शरण के आकांक्षी ऐसा अपने स्वयं के कृत्यों से नहीं कर रहे हैं। विकसित देशों द्वारा इन देशों का शोषण विभिन्न तरीकों जैसे उपनिवेश बनाकर, अपने भू-राजनीतिक हितों के लिये इनकी आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप कर तथा अपने विलासितापूर्ण जीवन जीने के लिये जलवायु में तीव्रता से परिवर्तन आदि कर रहे हैं।
जीवनरक्षक नैतिकता राष्ट्र-राज्यों को अभेद्य संस्थाओं के रूप में निर्दिष्ट करती है जहाँ बाह्य परिवर्तनों के प्रति संवेदनहीनता व्याप्त होती है। वस्तुत: जहाँ विश्व कई देशों में विभक्त है वहाँ मानवता हम सबको एकजुट करती है। वैश्विक स्तर पर ‘कॉमंस’ एवं गरीबी कहीं भी हो वह हम सभी की समृद्धि के लिये खतरा है। विश्व के देश एक-दूसरे की सहायता के मूल्य से बच नहीं सकते। संसाधन-संपन्न एवं सशक्त देश शरणार्थियों की सहायता कर अपनी सॉफ्टपावर व सामासिक संस्कृति को बढ़ा सकते हैं एवं प्रवासियों के कौशल का प्रयोग अपनी आर्थिक समृद्धि के लिये कर सकते हैं।
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