- फ़िल्टर करें :
- सैद्धांतिक प्रश्न
- केस स्टडीज़
-
प्रश्न :
सहयोग और प्रतिस्पर्द्धा पद को परिभाषित कीजिये। सहयोग एवं प्रतिस्पर्द्धा के निर्धारक तत्त्व कौन-से हैं? (150 शब्द)
29 Apr, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- सहयोग एवं प्रतिस्पर्द्धा पद को परिभाषित करते हुए भूमिका लिखिये।
- जहाँ आवश्यक हो उचित उदाहरण दीजिये।
- सहयोग एवं प्रतिस्पर्द्धा के निधार्रक तत्त्वों का उल्लेख कीजिये।
- दोनों अवधारणाओं के सकारात्मक पहलुओं को बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।
सहयोग वह व्यवहार है जिसमें हम किसी व्यक्ति या समूह पर पर भरोसा कर उनके साथ वार्तालाप करते हैं, संवाद स्थापित करते हैं, अपने विचारों को साझा करते हैं तथा इनके सम्मिलित प्रभावों से स्वयं को लाभान्वित करने हेतु आशान्वित होते हैं। उदाहरण के लिये- जलवायु परिवर्तन कम करने हेतु वैश्विक समुदायों का एक साथ आना।
प्रतिस्पर्द्धा वह क्रियाविधि है जिसमें हम आत्म-सुधार से कुछ हासिल करने अथवा जीतने का प्रयास करते हैं। सामान्य तौर पर जब लोग प्रतिस्पर्द्धा के बारे में सोचते हैं तो उसका नकारात्मक संदर्भ लेते हैं और ‘विनर टेक्स ऑल’ मानसिकता से परिचारित होते हैं। हालाँकि लोकप्रिय धारणा के विपरीत प्रतिस्पर्द्धा सकारात्मक एवं नकारात्मक दो प्रकार की होती है। सकारात्मक प्रतिस्पर्द्धा परस्पर प्रतिस्पर्द्धी समूहों के लिये सकारात्मक परिणाम लाती है जबकि नकारात्मक प्रतिस्पर्द्धा परस्पर प्रतिस्पर्द्धी समूहों को हानि पहुँचाती है। उदाहरण के लिये शीतयुद्ध के दौरान अमेरिका एवं सोवियत रूस के मध्य हथियारों की अंधी दौड़।
सहयोग एवं प्रतिस्पर्द्धा के निर्धारक तत्त्व:
- पुरस्कार (प्रतिफल) का स्वरूप: मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि व्यक्तियों के सहयोग या प्रतिस्पर्द्धा संबंधी कृत्य, उस कृत्य विशेष के प्रतिफल/पुरस्कार पर निर्भर करता है। जहाँ सहयोगात्मक पुरस्कार संरचना में एक-दूसरे को प्रोत्साहित करने के पश्चात् ही पुरस्कार प्राप्ति संभव होती है, वहीं प्रतिस्पर्द्धात्मक पुरस्कार संरचना में एक प्रतिस्पर्द्धी को पुरस्कार तभी मिलता है जब निश्चित रूप से दूसरे प्रतिस्पर्द्धी को पुरस्कार नहीं मिलता।
- अंतर्वैयक्तिक संवाद: जब समूहों में अच्छा अंतर्वैयक्तिक संवाद स्थापित होता है तब संभावित परिणाम सहयोगात्मक होंगे। संवाद पारस्परिकता एवं निर्णयन की सुविधा प्रदान करता है, परिणामस्वरूप समूह के सदस्य एक-दूसरे को समझा सकते हैं तथा एक-दूसरे से सीख भी सकते हैं।
- पारस्परिकता: पारस्परिकता से तात्पर्य लोगों की उस धारणा से है जब उन्हें लगता है कि वे जो कुछ करना चाहते हैं, या उसे करने के लिये बाध्य हैं। प्रारंभिक सहयोग अधिक सहयोग को प्रोत्साहित कर सकता है जबकि प्रतिस्पर्द्धा प्रतियोगिता को और अधिक प्रतिस्पर्द्धी बना सकती है। यदि कोई आपकी सहायता करता है तो आप भी उसकी सहायता करने हेतु प्रेरित होते हैं, वहीं दूसरी तरफ यदि कोई आपकी सहायता करने से मना कर देता है तो आप भी उसकी सहायता करना नहीं चाहते।
- सामाजिक दुविधा: सामाजिक दुविधा वह स्थिति है जब किसी व्यक्ति विशेष तथा समूह विशेष के लक्ष्यों के बीच संघर्ष विद्यमान हो। इस स्थिति में व्यक्ति स्वयं के लक्ष्यों से विमुख हो जाता है। सहयोग एवं प्रतिस्पर्द्धा दोनों के ही हानिकारक परिणामों को ध्यान में रखें तो अपने-अपने तरीके से व्यक्तियों तथा संस्थानों की क्षमता में वृद्धि की जा सकती है। इसका सर्वोचित उदाहरण भारत का सहकारी एवं प्रतिस्पर्द्धी संघवाद है जो राज्यों की वास्तविक क्षमता को बढ़ाकर देश में समृद्धि ला सकता है।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print