‘‘सत्यनिष्ठा ऐसा मूल्य है, जो मनुष्य को सशक्त बनाता है।’’ उपयुक्त दृष्टांत सहित औचित्य सिद्ध कीजिये।
उत्तर :
सत्यनिष्ठा का तात्पर्य यह है कि नैतिक कर्त्ता अपनी अंत:मान्यताओं के अनुसार कार्य करता है। सत्यनिष्ठा संपन्न व्यक्ति का आचरण लगभग हर स्थिति में उसके नैतिक सिद्धांतों के अनुरूप होता है। किसी व्यक्ति में सत्यनिष्ठा का परीक्षण मुख्य रूप से तीन क्षेत्रों, यथा - व्यक्तिगत परिप्रेक्ष्य, सामाजिक परिप्रेक्ष्य एवं व्यावसायिक परिप्रेक्ष्य में किया जाता है।
- व्यक्तिगत जीवन में सत्यनिष्ठा : व्यक्तिगत सत्यनिष्ठा से आशय यह है कि व्यक्ति के विचार एवं व्यवहार में कोई अंतर नहीं होना चाहिये। किसी दबाव से परे एक सत्यनिष्ठ व्यक्ति सदैव अपने विवेक के आधार पर निर्णय लेता है। उदाहरण के रूप में, असहयोग आंदोलन की समाप्ति का निर्णय महात्मा गांधी द्वारा विभिन्न विरोधों के बाद भी स्वविवेक से लिया गया।
- सामाजिक परिप्रेक्ष्य में सत्यनिष्ठा : इस परिप्रेक्ष्य में व्यक्ति नियम-कानून या नैतिक मूल्यों के आधार पर अपने जीवन का सतत् निर्वहन करता है। उदाहरण के रूप में, एक सत्यनिष्ठ नेतृत्वकर्त्ता अथवा नेता किसी आर्थिक अथवा राजनीतिक लोभ में न आकर सदैव जनहित में कार्य करने एवं निर्णय लेने के लिये तत्पर रहता है।
- व्यावसायिक परिप्रेक्ष्य में सत्यनिष्ठा : व्यावसायिक रूप से एक सत्यनिष्ठ व्यक्ति सदैव पारदर्शिता एवं ज़िम्मेदारीपूर्वक संबंधित व्यवसाय से जुड़ी नैतिक संहिता का पालन करते हुए अपना कार्य करता है। उदाहरण के रूप में, एक मैच में 99 रन पर बैटिंग करते हुए अंपायर द्वारा नॉट आउट दिये जाने के बाद भी सचिन तेंदुलकर द्वारा स्वयं को आउट घोषित करते हुए मैदान से बाहर जाना।
इस प्रकार एक सत्यनिष्ठ व्यक्ति जीवन के सभी आयामों में अपनी सत्यनिष्ठा एवं ईमानदारी को नहीं छोड़ता है। अल्पकाल के लिये भले ही सत्यनिष्ठा उसे अधिक लाभ न पहुँचाए, किंतु दीर्घकाल में यह उसके जीवन को स्थायित्व एवं समाज को लाभ पहुँचाती है।