सूक्ष्म वित्तीयन की शुरुआत भारत में गरीबी के समाधान और स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को सशक्त बनाने के लिये की गई थी। अपनी निहित क्षमताओं के बावजूद, सूक्ष्म वित्तीयन क्षेत्र भारत में पहुँच से संबंधित चुनौतियों का सामना कर रहा है। विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- संक्षिप्त परिचय से शुरू कीजिये।
- सूक्ष्म वित्तीयन क्षेत्र की क्षमता का विश्लेषण कीजिये।
- उनके सामने आने वाली विभिन्न चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।
- इन चुनौतियों से निपटने के उपाय सुझाइये।
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सूक्ष्म वित्तीयन एक प्रकार की बैंकिंग सेवा है, जो उन लोगों को उपलब्ध करवाई जाती है जिनकी औपचारिक वित्तीय सेवाओं तक पहुँच कठिन होती है। यह निम्न आय वाले लोगों और बेरोज़गार आबादी के हिस्से को लक्षित करती है। सूक्ष्म वित्तीयन संस्थाएँ ऋण, बैंक खाते और सूक्ष्म बीमा उत्पाद प्रदान करने जैसी सेवाएँ प्रदान करती हैं। भारत में सूक्ष्म वित्तीयन संस्थान (MFI) दो सबसे महत्त्वपूर्ण अंतरालों को संबोधित करते हैं- पहला, औपचारिक बैंकिंग प्रणाली तक पहुँच बनाने के मामले में और दूसरा, औपचारिक प्रणाली तक पहुँच के संदर्भ में स्वयं सहायता समूह (SHG) की महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा करने में।
सूक्ष्म वित्तीयन क्षेत्र में विद्यमान क्षमता:
- आज यह क्षेत्र 28 राज्यों और 8 केंद्रशासित प्रदेशों के 620 ज़िलों में ₹ 2,31,000 करोड़ के संयुक्त पोर्टफोलियो के साथ लगभग 6 करोड़ ग्राहकों को सेवा प्रदान कर रहा है।
- सूक्ष्म वित्तीयन संस्था के विशाल नेटवर्क का इस्तेमाल ग्रामीण जनता तक अन्य वस्तुओं और सेवाओं को पहुँचाने के लिये किया जा सकता है।
- यह क्षेत्र न केवल पृष्ठ प्रदेशों के लिये रोज़गार के अवसर पैदा कर सकता है, बल्कि अपने ग्राहकों को सक्षम वित्तीय सहायता के माध्यम से दूसरों के लिए भी रोज़गार के अवसर प्रदान कर सकता है।
ग्रामीण भारत में सूक्ष्म वित्तीयन क्षेत्र के समक्ष पहुँच से संबंधित चुनौतियाँ:
- सूक्ष्म वित्त वितरण मॉडल उन लोगों पर ध्यान केंद्रित करने में विफल रहा है जो गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहे हैं क्योंकि इन्हें जोखिमभरा माना जाता है। योजना के लिये लाभार्थियों का चयन करते समय पूर्वाग्रह बना रहता है। कार्यक्रम को सफलतापूर्वक चलाने और उच्च पुनर्भुगतान दर प्राप्त करने के लिये, योजना के संचालक लाभार्थियों के रूप में स्थिर आर्थिक आय वाले व्यक्तियों का चयन करते हैं।
- उन राज्यों में सूक्ष्म वित्तीयन कार्यक्रम का कवरेज कम है जहाँ आबादी का एक बड़ा हिस्सा गरीब है।
- उधार लेने वाले ब्याज संवेदनशील होते हैं, अत: ब्याज दरों में वृद्धि से उधार लेने की क्षमता कम हो जाती है। इस प्रकार, उच्च ब्याज दर अनुत्पादक और गरीबों की आर्थिक स्थिति को कमज़ोर करने वाली होती है।
- भारत में साक्षरता दर कम है, यह सच अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक मुखर रूप में दिखाई देता है। भारतीय आबादी का एक बड़ा हिस्सा बुनियादी वित्तीय अवधारणाओं को समझने में अक्षम है। जनता के बीच सूक्ष्म वित्तीय संस्थाओं द्वारा प्रदान की जाने वाली वित्तीय सेवाओं के बारे में जागरूकता की कमी है। पर्याप्त ज्ञान की कमी एक महत्त्वपूर्ण कारक है जो ग्रामीण आबादी को उनकी वित्तीय ज़रूरतों को पूरा करने के लिये सूक्ष्म वित्तीय संस्थाओं तक पहुँचने से रोकता है।
आगे की राह:
- छोटे ऋणदाता प्रमुख रूप से ऋण और इक्विटी निधियन के लिये वाणिज्यिक बैंकों पर निर्भर हैं। अत: इस क्षेत्र को निधियन के लिए निजी दानकर्त्ताओं, जैसे- गैर-सरकारी संगठन, विकास एजेंसियों, उद्यम पूंजी, कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) फंड, ग्लोबल ट्रस्ट फंड और अन्य वित्तीय स्रोतों के साथ साझेदारी विकसित करनी चाहिये।
- सूक्ष्म वित्त प्रदाताओं को उपचारात्मक वित्तीय उत्पाद प्रदान करने की ओर उन्मुख होना चाहिये, जो विशिष्ट कृषि विकास के लिये फसल बीमा और पट्टे पर उपकरण दी जाने वाली सुविधाओं जैसी व्यक्तिगत ज़रूरतों पर केंद्रित होता है।
- सूक्ष्म वित्त प्रदाता मील का पत्थर साबित होने वाली अंतिम सेवाएँ प्रदान करने के लिये वित्तीय समावेशन के प्रयासों को गति प्रदान कर सकते हैं और इसके लिये वे सरकारी पहलों का लाभ उठा सकते हैं तथा नई साझेदारी में प्रवेश कर सकते हैं।
- सूक्ष्म वित्तीयन क्षेत्र का कायाकल्प केवल महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त करके किया जा सकता है, जो सूक्ष्म वित्त उधारकर्त्ता का एक बड़ा हिस्सा हैं। उनके बीच उद्यमशीलता की संस्कृति को बढ़ावा देने और उन्हें केरल की कुटुंबश्री जैसी योजना की तरह व्यवहार्य व्यवसाय स्थापित करने के लिये सक्षम बनाने की दिशा में भी प्रयास किये जाने चाहिये।