भारत के जल संकट के समाधान में सूक्ष्म सिंचाई कैसे और किस सीमा तक सहायक होगी ? (150 शब्द)
30 Mar, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाभारत के लगभग 50 प्रतिशत क्षेत्र सूखे जैसी स्थिति से जूझ रहे हैं, विशेष रूप से पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों में जल संकट की गंभीर स्थिति बनी हुई है। G- 20 अर्थव्यवस्थाओं के बीच भारत सर्वाधिक तेज़ी से सिकुड़ते जल संसाधनों वाले देशों में से एक है। भारत की कृषि पारिस्थितिकी ऐसी फसलों के अनुकूल है, जिनके उत्पादन में अधिक जल की आवश्यकता होती है ; जैसे- चावल वाले कृषि क्षेत्रों में जल संकट की समस्या विशेष गेहूं, गन्ना, जूट और कपास इत्यादि। इन फसलों वाले कृषि क्षेत्रों में रूप से विद्यमान है। हरियाणा और पंजाब में कृषि गहनता से ही जल संकट की स्थिति उत्पन्न हुई है।
बदलते परिदृश्य में सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली को पानी की बचत करने वाली तकनीक के रूप देखा जा रहा है। सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली एक उन्नत पद्धति है, जिसके प्रयोग से सिंचाई के दौरान पानी काफी बचत की जा सकती है। यह सिंचाई प्रणाली सामान्य रूप से बागवानी फसलों में पानी देने की सर्वोत्तम एवं आधुनिक विधि मानो जाती है। सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली में कम पानी अधिक क्षेत्र की सिंचाई की जाती है। इस प्रणाली में पानी को पाइपलाइन के माध्यम से स्रोत से खेत तक पूर्व निर्धारित मात्रा में पहुँचाया जाता है। इससे पानी की बर्बादी को तो रोका ही जाता है, साथ ही यह जल उपयोग दक्षता बढ़ाने में भी सहायक है। यह देखा गया है कि सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली अपनाकर 30-40 फीसदी पानी की बचत होती है। इस प्रणाली से सिंचाई करने पर फसलों की गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार होता है। सरकार भी प्रति बूँद अधिक फसल ( Per Drop More Crop ) मिशन के अंतर्गत फव्वारा ( Sprinkler ) व टपक ( Drop ) सिंचाई पद्धति को बढ़ावा दे रही है।
ध्यातव्य है कि ' भारत में सूक्ष्म सिंचाई पर कार्यबल ' ( 2004 ) के अनुमान के अनुसार, भारत कुल ड्रिप सिंचाई क्षमता 27 लाख हेक्टेयर है। हालाँकि, वर्तमान में ड्रिप सिंचाई के तहत शामिल क्षेत्र सकल सिंचित क्षेत्र का मात्र 4%और इसकी कुल क्षमता ( 2016-17 ) का लगभग 15% ही है। इसके अलावा, ड्रिप विधि केवल कुछ ही राज्यों तक सीमित है। इन कमियों को दूर करके सूक्ष्म सिंचाई पद्धति का इस्तेमाल करते हुए बेहतर जल प्रबंधन किया जा सकता है।