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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    विश्व में खनिज तेल के असमान वितरण के बहुआयामी प्रभावों की विवेचना कीजिये। (250 शब्द)

    28 Mar, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    खनिज तेल वैश्विक ऊर्जा की मूलभूत आवश्यकता माने जाते हैं तथा इनका विश्व में वितरण असमान है। वस्तुतः विश्व का आधे से अधिक खनिज तेल भंडार ईरान व अरब देशों ( उत्तरी अफ्रीका के देश शामिल नहीं ) में मौजूद है; जबकि कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका तथा रूस में विश्व के लगभग 15 प्रतिशत खनिज तेल रिज़र्व मौजूद हैं। वहीं भारत के डिग्बोई, बंबई हाई, बसीन, अंकलेश्वर, अलियाबेट क्षेत्रों में मौजूद तेल रिज़र्व देश की ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति करने में नगण्य के बराबर हैं।

    खनिज तेल के अत्यधिक सामरिक महत्त्व और दुनिया भर में इसके असमान वितरण के बहुआयामी निहितार्थ हैं, जिन्हें निम्नांकित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:

    आर्थिक प्रभाव

    • खनिज तेल का असमान वितरण तेल आयातक देशों में मुद्रास्फीति को बढ़ाता है। उदाहरण के लिये तेल के दामों में संस्थागत बढ़ोतरी भारत जैसे देश में महँगाई को बढ़ाती है तथा भुगतान संतुलन व फॉरेक्स रिज़र्व पर विपरीत प्रभाव डालती है।
    • इसके अतिरिक्त तेल रिज़र्व व उत्पादक देशों का तेल निर्यात बढ़ने से राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है तथा इन देशों की ओर जॉब के लिये अन्य देशों से प्रवासन बढ़ता है।
    • तेल का असमान वितरण वैश्विक स्तर पर असमान वृद्धि व विकास को बढ़ावा देते हैं वस्तुतः आयात कीमतों में वृद्धि से सरकार की कल्याणकारी उद्देश्यों पर खर्च करने की क्षमता सीधे तौर पर बाधित होती है।

    भू - राजनीतिक प्रभाव

    • खनिज तेल भंडार वाले अधिकांश देशों में राजनीतिक अस्थायित्व विद्यमान रहता है; जैसे - वेनेजुएला में गृह युद्ध, अफ्रीकी देशों में सैन्य तख्तापलट आदि घटनाएँ अत्यधिक रिज़र्व होने के बावजूद उत्पादन की गतिविधियों पर प्रतिकूल असर डालती हैं।
    • खनिज तेल रिज़र्व वाले अधिकांश देशों में अधिनायकवादी सत्ता या राजतंत्र विद्यमान है, जिससे उन देशों में मानव पूंजी के विकास पर ज़्यादा ज़ोर नहीं दिया जाता।
    • खनिज तेल भंडार की प्रकृति ही सामरिक है। अतः इसका असमान वितरण रिज़र्व पर नियंत्रण हेतु क्षेत्रीय संघर्ष को बढ़ावा देता है। उदाहरण के लिये, पश्चिम एशिया में क्षेत्रीय संघर्ष।
    • खनिज तेल एक अत्यावश्यक आर्थिक कमोडिटी है। अत : इसके आयात - निर्यात को प्रोत्साहित करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय संबंधों व विदेश नीति का भी सहारा लिया जाता है।

    ऊर्जा सुरक्षा पर प्रभाव

    • खनिज तेल की कीमतों में अतिशय वृद्धि को सुनिश्चित करने हेतु OPEC जैसे समूह व अन्य प्रमुख तेल उत्पादक देश तेल उत्पादन को नियंत्रित कर तेल संकट की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं। इससे आयातक देशों में आर्थिक व राजनीतिक अस्थिरता बढ़ जाती है और उनकी सामरिक स्वायत्तता प्रभावित होती है।
    • खनिज तेल के असमान वितरण व सीमित उपलब्धता के कारण तेल आयातक देशों की ऊर्जा निर्भरता तेल प्रचुर देशों पर आश्रित हो जाती है।

    इकोलॉजिकल प्रभाव

    • तेल प्रचुर देशों में तेलों की निष्कर्षण संबंधी प्रक्रिया में जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण होता है। तथा उस क्षेत्र की मृदा का ह्रास होता है।
    • तेल के निष्कर्षण से उस क्षेत्र की जैवविविधता का ह्रास होता है।
    • तेल के व्यापार के कारण समुद्रों में ऑयल स्पिल की घटनाएँ समुद्री जैवविविधता के लिये अत्यंत घातक साबित होती हैं।

    उपर्युक्त प्रभावों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि खनिज तेल का असमान वितरण एक ओर ऊर्जा सुरक्षा को प्रभावित करता है, तो वहीं ऊर्जा स्रोत के रूप में कार्बनिक खनिज तेल का व्यापक उपयोग ग्लोबल वार्मिंग व जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देता है। अतः अब संपूर्ण विश्व इन कार्बनिक खनिज तेलों की बजाय नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर स्थानांतरित हो रहा है, जिसमें भारत भी अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का विविधीकरण कर रहा है।

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