1857 का विद्रोह “न तो प्रथम था, न राष्ट्रीय और न ही स्वतंत्रता संग्राम।” आलोचनात्मक परीक्षण करें।
28 Mar, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास
उत्तर की रूपरेखा:
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1857 के संघर्ष को लेकर इतिहासकारों के विचार एक समान नहीं हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि 4 महीनों का यह उभार किसान विद्रोह था तो कुछ इसे सैन्य विद्रोह मानते हैं। वी.डी. सावरकर की पुस्तक ‘द इंडियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस’ में इसे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम माना। 20वीं सदी के शुरुआती दौर के राष्ट्रवादी इतिहासकारों ने इसे वीर स्वतंत्रता सेनानियों का संघर्ष बताया जो कि स्वतंत्रता की प्रथम लड़ाई में परिवर्तित हो गया।
1857 का विद्रोह ब्रिटिश विस्तारवादी, शोषक एवं कराधान नीतियों, अंग्रेजों द्वारा सामाजिक प्रथाओं में हस्तक्षेप तथा अन्य प्रशासनिक अत्याचारों का सम्मिलित प्रभाव था। लॉर्ड डलहौजी की विलय की नीति तथा वेलेजली की सहायक संधि से भारत की जनता में बहुत असंतोष था। इन कारणों ने स्थानीय शासकों, सिपाहियों, ज़मींदारों, किसानों, कारीगरों, व्यापारियों और धार्मिक नेताओं को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया।
सेना में एनफील्ड राइफल का आरंभ विद्रोह का तात्कालिक कारण था, जिसके कारतूस कथित रूप से गौमांस एवं सूअर की चर्बी से बने थे और इन्हें चलाने के लिये मुँह से खोलना पड़ता था। इससे हिंदू एवं मुस्लिम दोनों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँची और उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह कर दिया।
सिपाहियों ने सर्वप्रथम 10 मई, 1857 को विद्रोह किया। उसके बाद सिपाहियों ने दिल्ली के लिये कूच किया एवं बहादुर शाहजफर को दिल्ली का बादशाह घोषित कर दिया। तत्पश्चात यह विद्रोह अवध, बंगाल, रुहेलखंड, दोआब, बुंदेलखंड, मध्य बिहार एवं पूर्वी पंजाब तक फैल गया। देशी शासकों ने भी कुछ क्षेत्रों में विद्रोह का नेतृत्व किया, जैसे- कानपुर में नाना साहब, झाँसी में रानी लक्ष्मीबाई इत्यादि।
विद्रोह का मूल्यांकन:
इसलिये आर.सी. मजूमदार ने यह निष्कर्ष निकाला कि 1857 का विद्रोह ‘न तो प्रथम, न राष्ट्रीय और न ही स्वतंत्रता संग्राम था।’ यह ब्रिटिश प्राधिकारियों के शोषक शासन के विरुद्ध आम जनता का सहज विद्रोह था। इसे सैनिकों का विद्रोह माना गया है जो धर्म हेतु संघर्ष के रूप में आरंभ हुआ। विद्रोहियों की सीमाओं एवं कमजोरियों के बाद भी उनके प्रयास राष्ट्रीय आंदोलन के लिये प्रेरणा के स्रोत बने रहे।