उत्तर :
नैतिक दुविधा ऐसी परिस्थिति है, जिसमें निर्णयन में दो या अधिक नैतिक सिद्धांतों में टकराव होता है। दोनों में से एक चुनना को होता है और दोनों बराबर की स्थिति में होते हैं नैतिक दुविधाओं को हल करने में कार्यक्षेत्र का ज्ञान महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि:
- यह निर्णयों की गुणवत्ता और सेवा वितरण में सुधार करने में मदद करती है, इस प्रकार सार्वजनिक विश्वास को बढ़ावा देती है। उदाहरण के लिये, महाराष्ट्र के नंदुरबार कलेक्टर डॉ. राजेंद्र अपने क्षेत्रीय ज्ञान के कारण प्रभावी तरीके से कोविड की दूसरी लहर का प्रबंधन करने में सक्षम हुए।
- कार्य क्षेत्र की विशेषज्ञता रखने वाले लोक सेवक विशिष्ट क्षेत्र की बारीकियों और गतिशीलता को समझने में सक्षम होते हैं, जो परस्पर विरोधी मूल्यों के बीच टकराव को हल करने में मदद करते हैं। उदाहरण के लिये, मेट्रो मैन कहे जाने वाले ई. श्रीधरन शिक्षा से एक लोक इंजीनियर है।
- यह बाहरी विशेषज्ञ परामर्श पर निर्भरता को कम करते हुए योग्यता, दक्षता, निष्पक्षता को भी बढ़ावा देती है। नैतिक दुविधाओं को हल करने के लिये नवीनता और रचनात्मकता की भी आवश्यकता होती है।
- विभिन्न विशेषज्ञ एक ही समस्या के लिये अलग- अलग सुझाव/ दृष्टिकोण प्रस्तुत कर सकते हैं। रचनात्मकता और नवाचार से युक्त एक लोक सेवक प्रभावी नीति हेतु सही सलाह एवं आँकड़ों की पहचान कर सकता है।
- यह राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक बाधाओं को दूर करने के लिये काम करते हुए उभरती अंतर- अनुशासनात्मक समस्याओं को हल करने हेतु भी महत्त्वपूर्ण है। उदाहरण, आर्थिक मंदी, राजनीति व्यापार गठजोड़ और जोखिम का आकलन करने में बैंकों की अक्षमता।
- यह ' आउट ऑफ द बॉक्स थिंकिंग " की क्षमता को विकसित करता है, जैसे- समस्या समाधान हेतु आई.सी.टी. का उपयोग।
निष्कर्षतः कार्यक्षेत्र की विशेषज्ञता और रचनात्मकता दोनों एक लोक सेवक के महत्त्वपूर्ण गुण हैं, जो उसे विभिन्न नैतिक दुविधाओं को हल करने में सक्षम बनाते हैं।