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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. देश के कुछ हिस्सों में भूमि सुधारों ने सीमांत और लघु किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिये किस प्रकार की सहायता की है? (150 शब्द)

    23 Mar, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    भूमि सुधार से तात्पर्य है भूमि स्वामित्व का उचित व न्यायपूर्ण वितरण सुनिश्चित करना, अर्थात् भू- धारिता (Land - Holdings) को इस प्रकार व्यवस्थित करना, जिससे उसका अधिकतम उपयोग किया जा सके। स्वतंत्र भारत में भूमि सुधारों के निम्न घटक रहे हैं - ज़मींदारी प्रथा का उन्मूलन व काश्तकारी सुधार, भूमि स्वामित्व की सीमा तय करना, खेतों के आकार में सुधार अर्थात् चकबंदी-हदबंदी और सहकारी व सामुदायिक कृषि को बढ़ावा आदि।

    ज़मींदारी प्रणाली का उन्मूलन करके कृषकों और राज्य के मध्य मौजूद मध्यस्थों को हटा दिया गया। मध्यस्थों के उन्मूलन से लगभग 2 करोड़ काश्तकारों को वह भूमि प्राप्त हो गई, जिस वे कृषि करते थे। इससे शोषक वर्ग का अंत हो गया और भूमिहीन किसानों के लिये भूमि वितरण हेतु अधिक- से- अधिक भूमि को सरकारी कब्ज़े में लिया गया, जिससे किसान सीधे सरकार के संपर्क में आ गए। स्वतंत्रता पूर्व अवधि के दौरान काश्तकारों द्वारा भुगतान किया जाने वाला भूमि कर अत्यधिक (पूरे भारत में 35 % और 75 % सकल उपज के बीच) था। कृषकों द्वारा देय किराये को विनियमित करने के लिये (1950 के दशक की शुरुआत में) पंजाब, हरियाणा जम्मू- कश्मीर और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में सकल उत्पादन स्तर का 20 % 25 % तक भूमि कर निर्धारित किया गया था। इस सुधार ने या तो काश्तकारी को पूरी तरह से अवैध करार दिया या काश्तकारों को कुछ सुरक्षा प्रदान करने के लिये भूमि कर के विनियमन करने का प्रयास किया। पश्चिम बंगाल और केरल में कृषि संरचना का मौलिक पुनर्गठन हुआ, जिसने छोटे और सीमांत किसानों को भूमि का अधिकार प्रदान किया। भूमि सुधार कानूनों की तीसरी प्रमुख श्रेणी लैंड सीलिंग अधिनियम (Land Ceiling Act) की थी। इसका उद्देश्य कुछ ही लोगों के हाथों में निहित भू - स्वामित्व में कमी करना था। इससे किसान अलग- अलग स्थानों की बजाय एक ही जगह पर भूमि सिंचाई तथा कृषि कार्य करने लगे, जिससे समय एवं श्रम की बचत हुई। इस भू- सुधार से कृषि की लागत और किसानों के बीच मुकदमेबाजी में कमी आई।

    हालाँकि भूमि सुधार उपायों के कार्यान्वयन की गति धीमी रही है। फिर भी यह काफी हद तक सीमांत और लघु किसानों की सामाजिक- आर्थिक स्थिति को सुधारने में सफल रहा है।

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