नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ‘‘सार्वजनिक स्थान धार्मिक पहचान के किसी भी सार्वजनिक प्रदर्शन से मुक्त होने चाहिये।’’ स्कूल यूनिफाॅर्म के संबंध में कर्नाटक सरकार द्वारा हाल ही में दिये गए आदेशों के संदर्भ में इस कथन की आलोचनात्मक विवेचन कीजिये। (250 शब्द)

    15 Mar, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • स्कूल यूनिफॉर्म और उसके बाद हिजाब-विवाद के संबंध में कर्नाटक सरकार के आदेश को संक्षेप में समझाते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • सरकारी आदेश से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
    • चर्चा कीजिये कि इसका समाधान क्या हो सकता है।

    परिचय

    हाल ही में कर्नाटक सरकार द्वारा एक आदेश पारित किया जिसमें कहा गया कि प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेजों (Pre-University Colleges) के छात्र-छात्राओं को कॉलेज के प्रशासनिक बोर्ड द्वारा निर्धारित यूनिफाॅर्म पहनना अनिवार्य होगा। किसी निर्धारण के आभाव में दृष्टिकोण यह होगा कि ‘‘समानता, अखंडता और सार्वजनिक कानून व्यवस्था को बिगाड़ने वाले कपड़े’’ नहीं पहने जा सकेंगे। यह आदेश विभिन्न कॉलेजों में हाल के घटनाक्रमों को देखते हुए जारी किया गया जहाँ हिजाब पहनने वाली महिला छात्रों के कॉलेज परिसरों में प्रवेश को निषिद्ध कर दिया गया था।

    इस सरकारी आदेश से संबद्ध समस्याएँ

    • संविधान के अंतर्गत धार्मिक स्वतंत्रता का संरक्षण:
      • संविधान के अनुच्छेद 25 (1) के अनुसार सभी व्यक्तियों को ‘‘अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को निर्बाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान अधिकार प्राप्त है।’
      • यह ऐसा अधिकार है जो नकारात्मक स्वतंत्रता की गारंटी प्रदान करता है जिसका अर्थ यह कि राज्य सुनिश्चित करेगा कि इस स्वतंत्रता का प्रयोग करने में कोई हस्तक्षेप या बाधा न हो।
        • हालाँकि अन्य सभी मूल अधिकारों समान इस अधिकार को भी राज्य द्वारा लोक व्यवस्था, सदाचार, नैतिकता, स्वास्थ्य और अन्य राज्य हितों के आधार पर निर्बंधित किया जा सकता है।
    • हिज़ाब पर प्रतिबंध मुस्लिम बालिकाओं के उनकी शिक्षा प्राप्ति में बाधा उत्पन्न कर सकता है। उनके परिवार उन्हें स्कूल भेजना बंद कर सकते हैं और यह ‘सभी के लिये शिक्षा के अधिकार’ की भावना के विरुद्ध होगा।
    • मुस्लिम महिलाओं द्वारा हिज़ाब पहनने का उद्देश्य यह नहीं है कि वे कॉलेज के कार्यकरण को बाधित करने या किसी अन्य समुदायों की छात्राओं को इसे अपनाने या किसी अन्य तरह की पोशाक का त्याग करने हेतु उकसाने का कार्य करे बल्कि यूनिफ़ॉर्म के साथ उनका हिजाब पहनना ठीक वैसा ही है जैसा सिख पुरुष पगड़ी धारण करते हैं या हिंदू बिंदी/तिलक/विभूति लगाते हैं।
    • संबंधित मामलों में न्यायालय के निर्णय:
      • वर्ष 2015 में केरल उच्च न्यायालय के समक्ष दो ऐसी याचिकाएँ दायर की गई थीं जिनमें अखिल भारतीय प्री-मेडिकल प्रवेश के लिये ड्रेस कोड के निर्धारण को लेकर चुनौती दी गई थी। निर्धारित ड्रेस कोड में आधी आस्तीन वाले हल्के कपड़े (जिसमें बड़े बटन, ब्रोच/बैज, फूल आदि न हो) सलवार/पायजामे के साथ पहनने और चप्पल पहनने का निर्देश दिया गया था।
        • केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) द्वारा तर्क प्रस्तुत किया गया कि इन नियमों का उद्देश्य केवल यह सुनिश्चित करना है कि परीक्षा में अभ्यर्थी कपड़ों के भीतर कोई अनुचित सामान को छिपाकर उसका प्रयोग नकल करने के लिये न करे। केरल उच्च न्यायालय ने उनके तर्क को स्वीकार करते हुए CBSE को निर्देश दिया कि वे उन छात्र-छात्राओं की जाँच के लिये अतिरिक्त उपाय करें जो ‘’अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप, परंतु ड्रेस कोड के विपरीत, पोशाक पहनते हैं।’’
      • आमना बिन्त बशीर बनाम केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड मामले (2016) में केरल उच्च न्यायालय ने इस मुद्दे पर और अधिक बारीकी से विचार किया।
        • न्यायालय ने माना कि हिज़ाब पहनना एक आवश्यक धार्मिक अभ्यास है, लेकिन न्यायालय द्वारा CBSE के नियम को रद्द नहीं किया।
        • न्यायालय ने एक बार पुनः वर्ष 2015 में अपनाए गए ‘अतिरिक्त उपायों’ और सुरक्षा उपायों का अपनाने हेतु निर्देश दिये।
      • हालाँकि एक स्कूल द्वारा निर्धारित यूनिफाॅर्म के विषय पर फातिमा तसनीम बनाम केरल राज्य मामले (2018) में एक अन्य बेंच ने बिल्कुल अलग निर्णय दिया।
        • केरल उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने कहा कि किसी संस्था के सामूहिक अधिकारों को याचिकाकर्त्ता के व्यक्तिगत अधिकारों पर प्राथमिकता दी जाएगी।

    आगे की राह

    • ऐसे मामलों पर निर्णय लेते समय धार्मिक भावनाएँ प्रबल नहीं होनी चाहिये लेकिन ऐसे निर्णय तर्कसंगत तथा आधुनिक विचारों के संयोजन पर आधारित होने चाहिये।
    • शैक्षणिक संस्थानों को स्कूल या कॉलेज प्रशासन के अपने अधिकार के नाम पर छात्रों के व्यक्तिगत अधिकारों के उल्लंघन से बचना चाहिये।
    • दैनिक जीवन में हमें उन लोगों के साथ रहना है जो हमसे अलग दिखते हैं, अलग-अलग कपड़े पहनते हैं और अलग-अलग भोजन करते हैं तो फिर इसी विविधता को विशेष रूप से शैक्षिक संस्थानों में निषिद्ध किया जाना तर्कसंगत नहीं लगता है।
    • हमारा संविधान सभी के व्यक्तिगत मामलों में एक अनुल्लंघनीय स्वतंत्रता की गारंटी देता है जब तक कि इस स्वतंत्रता के प्रभाव से सामाजिक स्तर पर व्यापक क्षति या भेदभाव की स्थिति उत्पन्न न हो। हिज़ाब के संदर्भ में समाज के लिये ऐसा कोई नुकसान या भेदभाव होता नज़र नहीं आता।
    • यद्यपि हिज़ाब को पहनने हेतु एक आवश्यक धार्मिक अभ्यास परीक्षण (Essential Religious Practices Test) की आवश्यक है जैसा दाढ़ी के मामले में किया गया था। वर्ष 2006 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया था कि दाढ़ी रखना इस्लामिक अभ्यासों का अनिवार्य अंग नहीं है।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow