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प्रश्न :
भारत में न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के लिये कॉलेजियम प्रणाली के उद्भव की व्याख्या कीजिये। (250 शब्द)
15 Mar, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- कॉलेजियम प्रणाली का परिचय देते हुए इसके संघटन को बताइये।
- भारत में कॉलेजियम के विकासक्रम को बताइये।
- इस प्रणाली में निहित मुद्दों तथा सुधार की आवश्यकता को बताइये।
कॉलेजियम न्यायधीशों की नियुक्ति एवं स्थानांतरण की एक ऐसी प्रणाली है जिसका विकास उच्चतम न्यायालय के निर्णयों द्वारा हुआ है (न कि किसी संवैधानिक अथवा सांविधिक प्रव्रिया द्वारा) सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये पाँच वरिष्ठ न्यायाधीशों का एक पैनल होगा जिसका प्रधान भारत का मुख्य न्यायाधीश होगा तथा उच्च न्यायालय के कॉलेजियम में उस उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश एवं चार वरिष्ठ न्यायाधीश होते हैं।
कॉलेजियम प्रणाली का विकास संविधान में न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया (अनुच्छेद 124 (2) तथा अनुच्छेद 217) की व्याख्या के क्रम में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों से हुआ है।
कॉलेजियम प्रणाली का विकास
- प्रथम न्यायाधीश वाद: वर्ष 1981 के एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघवाद में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि अनुच्छेद 124 तथा अनुच्छेद 217 में प्रयुक्त ‘‘परामर्श’’ शब्द का अर्थ ‘‘सहमति नहीं’’ है। यद्यपि राष्ट्रपति न्यायपालिका से परामर्श करेगा किंतु वह उनका परामर्श मानने के लिये बाध्य नहीं है। अर्थात् मतभेद की स्थिति में राष्ट्रपति की राय को प्राथमिकता दी।
- द्वितीय न्यायाधीश वाद: सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 1993 में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ वाद में पूर्व में एस.पी. गुप्ता वाद में दिये गए निर्णय को रद्द करने हुए उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं स्थानांतरण हेतु एक विशिष्ट प्रणाली की व्यवस्था की गई, जिसे कॉलेजियम कहा गया। कॉलेजियम की व्याख्या करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सी.जे.आई. अपने दो वरिष्ठ सहयोगियों के परामर्श से न्यायाधीशों की नियुक्ति की सिफारिश राष्ट्रपति से करेगा।
- तृतीय न्यायाधीश वाद: वर्ष 1998 में राष्ट्रपति के.आर. नारायणन ने अनुच्छेद-143 के तहत सर्वोच्च न्यायालय से ‘‘परामर्श’’ शब्द को व्याख्यायित करने के लिये कहा तो सर्वोच्च न्यायालय ने मत दिया कि केवल सी.जे.आई. का एकल मत ही परामर्श प्रक्रिया को पूर्ण नहीं करता उसे कम-से-कम चार वरिष्ठ न्यायाधीशों से सलाह लेनी चाहिये, इनमें से यदि दो का मत पक्ष में नहीं है तो वह नियुक्ति की सिफारिश नहीं भेज सकता।
कॉलेजियम प्रणाली न्यायपालिका एवं कार्यपालिका के बीच विवाद का कारण बनता है तथा कॉलेजियम की प्रक्रिया का पारदर्शी न होना भी इसकी विफलता को दिखाता है। हालाँकि भारत सरकार ने ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग’ का गठन कर इस विवाद के समाधान का प्रयास किया किंतु सर्वोच्च न्यायालय ने इसकी संवैधानिकता को खारिज कर दिया। इस दिशा में कार्यपालिका एवं न्यायपालिका को आपस में संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए एक पारदर्शी प्रक्रिया को अपनाना चाहिये।
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