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प्रश्न :
प्रश्न: भारत के बेरोज़गारी के परिदृश्य और बेरोज़गारी की इस लहर से निपटने हेतु किये जा सकने वाले उपायों के संबंध में चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
10 Mar, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत के बेरोज़गारी परिदृश्य के बारे में लिखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भारत में बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी के कारणों की विवेचना कीजिये।
- भारत में इस बेरोज़गारी की लहर से निपटने हेतु कुछ उपाय सुझाइये।
परिचय
- PLFS आँकड़े कामगार जनसंख्या अनुपात (WPR) में वृद्धि को दर्शाता हैं जो वर्ष 2017-18 में 34.7% से बढ़कर वर्ष 2019-20 में 38.2% हो गया।
- यह पूर्व की प्रवृत्ति विपरीत है जहाँ वर्ष 2004-05 के बाद से WPR में गिरावट देखी जा रही थी। इस परिवर्तन का अर्थ यह भी है कि जनसंख्या में वृद्धि की तुलना में रोज़गार में तीव्र गति से वृद्धि हुई है।
भारत में बेरोज़गारी का कारण:
- सामाजिक कारक: भारत में जाति व्यवस्था प्रचलित है कुछ क्षेत्रों में विशिष्ट जातियों के लिये कार्य निषिद्ध है।
- बड़े व्यवसाय वाले बड़े संयुक्त परिवारों में बहुत से ऐसे व्यक्ति होंगे जो कोई काम नहीं करते हैं तथा परिवार की संयुक्त आय पर निर्भर रहते हैं।
- जनसंख्या का तीव्र विकास: भारत में जनसंख्या में निरंतर वृद्धि एक बड़ी समस्या बन गई है।
- यह बेरोज़गारी के प्रमुख कारणों में से एक है।
- कृषि का प्रभुत्व: भारत में अभी भी लगभग आधा कार्यबल कृषि पर निर्भर है।
- हालाँकि भारत में कृषि अविकसित है।
- साथ ही यह मौसमी रोज़गार भी प्रदान करती है।
- कुटीर और लघु उद्योगों का पतन: औद्योगिक विकास का कुटीर और लघु उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
- कुटीर उद्योगों का उत्पादन गिरने से कई कारीगर बेरोज़गार हो गए।
- श्रम की गतिहीनता: भारत में श्रम की गतिशीलता कम है। परिवार से लगाव के कारण लोग नौकरी के लिये दूर-दराज़ के इलाकों में नहीं जाते हैं।
- कम गतिशीलता के लिये भाषा, धर्म और जलवायु जैसे कारक भी ज़िम्मेदार हैं।
- शिक्षा प्रणाली में दोष: पूंजीवादी दुनिया में नौकरियाँ अत्यधिक विशिष्ट हो गई हैं लेकिन भारत की शिक्षा प्रणाली इन नौकरियों के लिये आवश्यक सही प्रशिक्षण और विशेषज्ञता प्रदान नहीं करती है।
- इस प्रकार बहुत से लोग जो कार्य करने के इच्छुक हैं वे कौशल की कमी के कारण बेरोज़गार हो जाते हैं।
आगे की राह
- आर्थिक विकास प्रारूपों पर पुनर्विचार की आवश्यकता: रोज़गार में उल्लेखनीय वृद्धि के बिना राष्ट्रीय आय में उद्योग और सेवा क्षेत्रों की बढ़ती हिस्सेदारी आर्थिक वृद्धि एवं विकास के पारंपरिक प्रारूपों की प्रासंगिकता पर एक गंभीर प्रश्नचिह्न लगाती है।
- भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिये पारंपरिक आर्थिक विकास प्रारूपों और उनकी प्रयोज्यता पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
- एक वैकल्पिक दृष्टिकोण के रूप में उद्योग आधारित विकास मॉडल हेतु प्रयास करने की राष्ट्रीय रणनीति पर पुनर्विचार किया जाए और कृषि एवं संबद्ध गतिविधियों में अधिक आकर्षक, लाभकारी और अधिक संतोषजनक रोज़गार सृजित करने के लिये आर्थिक रूपांतरण के अधिक प्रासंगिक कृषि-केंद्रित मॉडल का पता लगाया जाए।
- विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में रोज़गार निर्मित करना: विनिर्माण और सेवा क्षेत्र द्वारा अतीत में सृजित रोज़गार अवसरों की तुलना में उनके द्वारा पर्याप्त रूप से अधिक रोज़गार निर्मित करने की तत्काल आवश्यकता है। इसमें निम्नलिखित बिंदुओं को शामिल करना चाहिये:
- ऐसे श्रम कानूनों में बदलाव जो उद्योग को श्रम प्रधान उत्पादन अपनाने हेतु हतोत्साहित करते हो।
- रोज़गार-संबद्ध उत्पादन प्रोत्साहन।
- श्रम प्रधान आर्थिक गतिविधियों को विशेष सहायता।
- उद्योगों का विकेंद्रीकरण: औद्योगिक गतिविधियों का विकेंद्रीकरण आवश्यक है ताकि हर क्षेत्र के लोगों को रोज़गार मिल सके।
- ग्रामीण क्षेत्रों के विकास से शहरी क्षेत्रों की ओर ग्रामीण लोगों के प्रवास को कम करने में मदद मिलेगी जिससे शहरी क्षेत्र के रोज़गार अवसरों पर दबाव कम होगा।
- निवेश में वृद्धि: भारत में निजी क्षेत्र की निवेश दर में (लगभग एक रैखिक आकृति में) वर्ष 2011 से गिरावट आ रही है। रोज़गार परिदृश्य में तभी सुधार होगा जब निजी निवेश में गति आएगी।
- सरकार को तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा को संरेखित करना चाहिये और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, कौशल और नौकरी-सह-प्रशिक्षण के माध्यम से मानव पूंजी तथा बुनियादी सामाजिक सुरक्षा में स्थायी और दीर्घकालिक निवेश करना चाहिये।
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