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ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. विरोध करने का नागरिकों का अधिकार भारतीय लोकतंत्र का एक स्तंभ है। हालाँकि, विरोध और प्रदर्शन अक्सर कानून-व्यवस्था की समस्या और आंतरिक सुरक्षा के लिये एक चुनौती बन जाते हैं। ऐसा क्यों है? चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    09 Mar, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आंतरिक सुरक्षा

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • नागरिक विरोध के दौरान हिंसा के मुद्दे पर संक्षेप में प्रकाश डालिये।
    • अलोकतांत्रिक विरोध के लिये ज़िम्मेदार कारकों का विवरण दीजिये।
    • भविष्य में इससे बचने के उपाय सुझाइये।

     प्रदर्शन और विरोध लोकतंत्र की एक स्वस्थ विशेषता है, जो नागरिकों और नागरिक समाज के सदस्यों को अपने अधिकारों की रक्षा और सरकार की नीतियों के प्रति असंतोष व्यक्त करने की अनुमति देते हैं। दुर्भाग्य से, कई सामाजिक-राजनीतिक लामबंदी ने हिंसा, दंगा और आगजनी का रूप ले लिया, जिसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक संपत्ति का विनाश हुआ और मानव जीवन का नुकसान हुआ। इस तरह के उदाहरण हमारे देश की आंतरिक सुरक्षा पर प्रभाव डालने वाले एक गंभीर कानून-व्यवस्था की समस्या बन जाते हैं।

    लोकतांत्रिक विरोध से अलोकतांत्रिक या अराजक मोड़ लेने के लिये कई कारक ज़िम्मेदार हैं:

    • इंटरनेट और सोशल मीडिया: इनसे सूचना के स्रोतों का प्रसार हुआ है तथा इनकी पहुँच और गहरी हुई है। हालाँकि, ये प्लेटफॉर्म विचारपूर्ण तरिके से गलत सूचना, नकली समाचार और दुर्भावनापूर्ण सामग्री का वाहक भी बन गए हैं ताकि भय का मनोविकार पैदा किया जा सके। ऑनलाइन पोस्ट और सामग्री से बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक या जातीय लामबंदी हो सकती है। उदाहरण के लिये, फेसबुक पर सांप्रदायिक पोस्ट के कारण 2020 के दिल्ली दंगे और बंगलूरू हिंसा।
    • कट्टररपंथी विचारधाराओं की उपस्थिति: भारत नक्सलवाद, आतंकवाद और विचारधारा आधारित अलगाववादी आंदोलनों जैसे चरमपंथी विचारों से लड़ाई लड़ रहा है। चूँकि कट्टररपंथी विचारों का व्यापक समर्थन वास्तव में अनुपस्थित होता है अत: अक्सर इनके द्वारा सामाजिक खाई पैदा करने के लिये नागरिक विरोध का अनुचित लाभ उठाने और उसे अपने अनुरूप मोड़ने की कोशिश की जाती है। इसके प्रमुख उदाहरण कश्मीर में नागरिक विरोध प्रदर्शन हो सकते हैं जो विद्रोहियों और आतंकवादियों द्वारा संचालित किये जाते हैं।
    • सुरक्षा बलों की कानून- व्यवस्था तकनीक और प्रशिक्षण: संविधान का अनुच्छेद 246 ‘लोक व्यवस्था’ और ‘पुलिस’ का प्रावधान राज्य के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत करता है। खराब प्रशिक्षण के कारण बड़े पैमाने पर होने वाले विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस बल उसके प्रबंधन में अक्षम साबित होती है। उदाहरण के लिये, 2016 में हरियाणा आंदोलन पर प्रकाश सिंह समिति की रिपोर्ट में इस पर प्रकाश डाला गया था कि या तो अनुपातहीन पुलिस बल का उपयोग किया गया या पूरी तरह से प्रशासनिक विफलता के कारण हस्तक्षेप नहीं किया गया।
    • मीडिया की भूमिका- हमारे देश में मीडिया की स्वतंत्रता एक गंभीर मुद्दा बन गई है। कथित तौर पर कई मीडिया हाउस वैचारिक गठबंधन किये हुए हैं और उनकी रिपोर्टिंग सुविधा पर आधारित है, न कि पत्रकारिता के मानकों पर। यहाँ तक कि सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया ट्रायल और प्रचलित प्रथाओं पर चिंता व्यक्त की है। डिजिटल मीडिया के संकट ने अफवाहों और गलत धारणाओं के लिये एक अंतराल उत्पन्न किया है, जो विरोध और राजनीतिक आंदोलनों के दौरान कानून-व्यवस्था की स्थिति को बिगाड़ता है और ऐसा इसलिये संभव हो पाता है क्योंकि लोग मुद्दे की वास्तविक तस्वीर का पता लगाने में विफल होते हैं तथा भावनाओं से प्रेरित होते हैं।

    आगे की राह:

    • हमारे राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक, प्रशासनिक और तकनीकी स्तंभों पर टिकी हुई है।
    • भारत में शांतिपूर्ण नागरिक विरोध प्रदर्शनों का इतिहास रहा है क्योंकि ये सभी प्रदर्शनकारियों और साथ ही सरकारी एजेंसियों द्वारा लोकतांत्रिक आदर्शों की प्राप्ति पर आधारित थे। उदाहरण के लिये, इंडिया अगेन्स्ट करप्शन मूवमेंट।
    • हिंसा से बचने के लिये, नकली समाचारों पर प्रभावी तरीके से अंकुश लगाने और प्रशिक्षित कर्मियों द्वारा विभिन्न स्थितियों का जवाब देने के लिये तत्पर रहने की आवश्यकता है। भीड़ द्वारा उकसावे के बावजूद संयम के साथ ट्रैक्टर रैली को संभालने वाली दिल्ली पुलिस की कार्यप्रणाली पूरे भारत के पुलिस बलों के लिये प्रेरणा बन सकती है।

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