भारतीय संविधान व्यापक अर्थों में एक सार्वभौमिक संविधान है। स्पष्ट कीजिये। (150 शब्द)
08 Mar, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
हल करने का दृष्टिकोण:
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‘सार्वभौमिकतावाद’ एक सर्वव्यापी अवधारणा है तथा जिसमें ‘मानवतावाद’ को सर्वोपरि रखा जाता है। जिसमें मानवता को राजनीतिक एवं सामाजिक संबंधों की परवाह किये बिना सर्वोच्च स्थान दिया जाता है। भारतीय संविधान एक सार्वभौमिक संविधान है जो कि सार्वभौमिकता के विचारों का प्रसार करता है, यह अपने समय की एक संकीर्ण राजनीतिक वास्तविकता से परे सभी के कल्याण अथवा ‘सर्वकल्याण’ की भावना को मूर्त रूप देने का प्रयास करता है।
अपनी प्रस्तावना में भारतीय संविधान स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व के सिद्धांतों की चर्चा करता है जो कि फ्राँसीसी क्रांति से लिये गए हैं। इसी के साथ प्रस्तावना में यह राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक न्याय की बात करता है। जो कि ‘रूसी क्रांति’ के आदर्शों को समाहित करता है। भारतीय संविधान के ये मूल्य स्वाभाविक रूप में मानव शांति एवं समृद्धि के विचार को भौगोलिक सीमाओं से अधिक वरीयता देते हैं।
भारतीय संविधान के मूल्य एवं आर्दश विश्वभर के अनेक देशों के संविधानों से लिये गए हैं। यह कई स्रोतों एवं परंपराओं को सम्मिलित करते हुए ‘सार्वभौमिकतावाद’ का प्रतिनिधित्व करता है। उदाहरण के लिये भारतीय संविधान पर ब्रिटिश संसदीय प्रणाली एवं 1935 के भारत शासन अधिनियम का पर्याप्त प्रभाव है। इसी के साथ नीति निदेशक तत्त्वों को आयरलैंड से, मूल अधिकारों को अमेरिकी संविधान से, न्यायिक पुनरावलोकन अमेरिकी संविधान से, लिये गए हैं। इसी के साथ कनाडा, जापान, ऑस्ट्रेलिया तथा दक्षिण अफ्रीका आदि के संविधानों से भी कई प्रक्रियाओं को लिया है।
सर्वोत्तम वैश्विक संवैधानिक पद्धतियों के एकीकरण के प्रयास में संविधान निर्माताओं ने लगभग सभी सफल लोकतंत्रों से प्रावधानों को लिया गया। बहरहाल संविधान निर्माताओं के इस प्रयास की आलोचना हुई इसे ‘‘उधार का थैला’’ एवं ‘‘कागज एवं कैंची के कार्य’’ जैसी संज्ञाएँ दी जाती हैं। ऐसी आलोचना से संविधान के अनुभवातीत स्वरूप की उपेक्षा हो जाती है।
भारतीय संविधान की इसी सार्वभौमिक प्रकृति के कारण इसने औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्र हुए देशों हेतु प्रेरणादायी प्रकाश स्रोत का कार्य किया जिसने इन देशों को लोकतांत्रिक समाज के निर्माण हेतु प्रेरित किया। भारतीय संविधान का यह सार्वभौमिकतावाद ‘वसुधैव कुटंबकम्’ की प्राचीन भारतीय मान्यता को प्रतिबिंबित करता है जो कि पूरे विश्व को एक परिवार तथा मानवता को एकमात्र पुण्य मानता है।