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प्रश्न :
महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस अपने तरीके एवं पद्धति में तथा अपनी राजनीतिक एवं आर्थिक विचारधाराओं में व्यापक रूप से भिन्न थे। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
04 Mar, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- गांधीजी तथा बोस का संक्षिप्त परिचय देते हुए भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिकाओं की चर्चा कीजिये।
- चर्चा कीजिये कि कैसे एक-दूसरे के प्रति गहरे सम्मान के बावजूद उनके तरीकों तथा विचारधाराओं में भिन्नता थी।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
महात्मा गांधी संभवत: अहिंसक नागरिक विद्रोह के लिये भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के सबसे व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त व्यक्ति थे। सुभाष चंद्र बोस (जिन्हें नेता जी भी कहा जाता है) को भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका के लिये जाना जाता है। भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के नेता के रूप में वे उग्र पक्ष का हिस्सा अधिक थे और समाजवादी नीतियों की वकालत के लिये जाने जाते थे। ये दोनों ही भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दिग्गज थे तथा एक-दूसरे के प्रति गहरा सम्मान रखते थे।
गांधीजी, बोस को ‘‘देशभक्तों के बीच राजकुमार’’ कहते थे जबकि बोस भारतीय राष्ट्रवाद के प्रतीक के रूप में गांधी जी के महत्त्व से पूरी तरह से अवगत थे और उन्हें ‘‘देश के राष्ट्रपिता’’ पुकारते थे।
अपने एकसमान लक्ष्यों तथा इच्छाओें और एक-दूसरे के प्रति सम्मान के बावजूद उनकी विचारधारा और कार्यप्रणाली में काफी अंतर था।
गांधी जी सुभाष चंद्र बोस अहिंसा बनाम सैनिक दृष्टिकोण अंहिसा और सत्याग्रह में विश्वास था।
जनता को केवल इसी आधार पर शामिल किया जा सकता है।
अकेले हिंसक प्रतिरोध ही भारत से विदेशी साम्राज्यवादी शासन को बाहर कर सकता है। साधन और साध्य साधन और साध्य समान रूप से अच्छे हैं।
साध्य प्राप्ति के लिये, कोई किसी भी साधन का प्रयोग नहीं कर सकता चाहे साध्य कितना भी वांछनीय क्यों न हो।
बोस अपनी कार्रवाई के परिणामों पर नजरें रखते थे।
उन्होंने स्वतंत्रता के संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिये जो भी अवसर उपलब्ध था, उसे जब्त करने में विश्वास किया।
सरकार का स्वरूप पूर्व-आधुनिक, नैतिक रूप से प्रबुद्ध और अराजनीतिक भारत राज्य।
उनके स्वराज के अनुसार व्यक्तियों और समुदाय के निर्माण द्वारा स्वशासन पर जोर होना चाहिये।
लोकतांत्रिक व्यवस्था अपर्याप्त होगी।
यहाँ एक प्रकार का संश्लेषण होना चाहिये जिसे आधुनिक यूरोप ‘‘समाजवाद’’ या फासीवाद कहता है।
अर्थव्यवस्था पर विचार गांधी जी के स्वराज की अवधारणा स्वदेशी के आर्थिक दृष्टिकोण पर आधारित थी।
वे राज्य के नियंत्रण से मुक्त विकेंद्रीकृत अर्थव्यवस्था चाहते थे।
बोस ने आर्थिक स्वतंत्रता को सामाजिक और राजनीतिक स्वतंत्रता का सार माना।
वे पूर्णत: आधुनिकीकरण के पक्ष में थे जो औद्योगीकरण लाने हेतु आवश्यक था।
धर्म उनका धर्म उनके अन्य सभी विचारों का आधार था।
सुभाषचंद्र बोस ने उपनिषद् की शिक्षा में विश्वास किया और वे विवेकानंद से प्रेरित थे।
जाति और अस्पृश्यता समाज के लिये गांधी जी के 3 मुख्य लक्ष्य थे: अस्पृश्यता का उन्मूलन जाति व्यवस्था के वर्णभेद को बनाए रखना और सहिष्णुता, नम्रता और भारत में धर्मनिष्ठा को मजबूत करना।
बोस, समाजवादी क्रांति द्वारा भारत बदलने के पक्षधर थे जो अपनी जाति व्यवस्था के साथ पारंपरिक सामाजिक पदानुक्रम को समाप्त करेगा। इसके स्थान पर समतावादी, जातिविहीन, वर्गविहीन समाज आना चाहिये।
महिलाएँ गांधी ने महिलाओं के बहादुरी और स्वतंत्रता के गुणों तथा दु:ख सहन करने की क्षमता का प्रचार किया।
उन्होंने महिला मुक्ति, सदियों पुराने रीति-रिवाजों के बंधनों, पुरूषों द्वारा निर्धारित सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक अक्षमताओं से महिलाओं को स्वतंत्र कराने पर विश्वास किया।
शिक्षा वे अंग्रेज़ी शिक्षा व्यवस्था के विरुद्ध थे।
गांधी हिन्दू शास्त्रों को शिक्षा के भाग के रूप में शामिल करना चाहते थे ताकि वे आत्म संयम और अनुशासन स्थापित कर सकें।
सुभाष चंद्र बोस खासकर तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों में उच्च शिक्षा के पक्षधर थे।
गांधी जी तथा सुभाष चंद्र बोस अपनी अलग-अलग विचारधाराओं के बावजूद एक-दूसरे के प्रति गहन सम्मान रखते थे। प्रत्येक ने स्वतंत्रता के लिये राष्ट्रीय संघर्ष में एक दूसरे द्वारा किये गए कार्यों की सराहना की।
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