प्रश्न. भारत के शहर उत्पादन और उपभोग के उल्लेखनीय स्तर के साथ देश के आर्थिक विकास के चालक हैं, लेकिन इस विकास कथा को जलवायु परिवर्तन के युग में असंवहनीय शहरी विकास से खतरा है। टिप्पणी कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- यह बताइये कि शहर आर्थिक विकास के चालक कैसे हैं।
- चर्चा कीजिये कि जलवायु परिवर्तन के कारण शहरों को कैसे सतत् शहरी विकास से खतरा है।
- आगे की राह बताइये।
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परिचय
चेन्नई में हाल ही में हुई अप्रत्याशित भारी बारिश की घटनाओं ने बार-बार मानसूनी बाढ़ और शहर के बंद होने (Urban Paralysis) जैसी समस्याओं को जन्म दिया। इसके साथ ही इसने चरम मौसमी घटनाओं के कारण शहरी व्यवस्था के पतन के जोखिमों को भी उजागर किया। अतीत में चेन्नई में वर्ष वर्ष 2015 में आई विनाशकारी बाढ़ और मुंबई में वर्ष 2005 में उत्पन्न हुई भीषण बाढ़ की स्थिति के बाद उम्मीद थी कि शहरी विकास के संबंध में प्राथमिकताओं में एक बड़ा परिवर्तन देखने को मिलेगा।
चुनौतियाँ:
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority- NDMA) के अनुसार, भारत में कुल भूमि का लगभग 12% बाढ़ के खतरे से युक्त है, 68% सूखा, भूस्खलन एवं हिमस्खलन के प्रति संवेदनशील है और 58.6% भूभाग भूकंप-प्रवण है।
- भारत की 7,516 किलोमीटर लंबी तटरेखा के 5,700 किमी. हिस्से के लिये सुनामी और चक्रवात एक नियमित घटना है।
- नियोजन और स्थानीय शासन की समस्याएँ: सभी शहरों में से आधे से भी कम में ‘मास्टर प्लान’ मौजूद हैं और इन पर भी अनौपचारिक रूप से ही अमल होता है क्योंकि प्रभावशाली अभिजात वर्ग और गरीब वर्ग दोनों ही आर्द्रभूमि और नदी तटों जैसी सार्वजनिक भूमियों का अतिक्रमण करते हैं।
- नगर परिषदों की उपेक्षा, सशक्तीकरण की कमी और नगरपालिका प्राधिकारों में क्षमता निर्माण की विफलता ने चरम मौसम के दौरान बार-बार शहरी पक्षाघात की स्थिति उत्पन्न की है।
- प्राकृतिक स्थानों का अतिक्रमण: देश में आर्द्रभूमि की संख्या वर्ष 1956 में 644 से घटकर वर्ष 2018 में 123 रह गई और हरित आवरण महज 9% है, जो आदर्श रूप से कम से कम 33% होना चाहिये था।
- महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक संपत्तियों का अतिक्रमण किफायती शहरी आवासों की आपूर्ति हेतु बाज़ार की शक्तियों पर अत्यधिक निर्भरता को प्रकट करता है।
- आवास क्षेत्र में अधिकांश उपनगरीय निवेश उनके वास्तविक मूल्य को नहीं दर्शाते, भले ही वे सरकार द्वारा 'अनुमोदित' हों, क्योंकि नगर से दूर स्थित इन नगर पंचायतों के पास जल आपूर्ति, स्वच्छता और सड़कों जैसी बुनियादी संरचनाओं के निर्माण की भी पर्याप्त क्षमता या धन का अभाव होता है।
- अपर्याप्त निकासी अवसंरचना: जल निकासी तंत्र पर अत्यधिक दबाव, अनियमित निर्माण, प्राकृतिक स्थलाकृति एवं ‘हाइड्रो-जियोमॉर्फोलॉजी’ की अवहेलना आदि शहरी बाढ़ को एक मानव निर्मित आपदा बनाते हैं।
- हैदराबाद, मुंबई जैसे शहर एक सदी पुरानी जल निकासी प्रणाली पर निर्भर हैं, जो मुख्य शहर के केवल एक छोटे से हिस्से को ही दायरे में लेती है।
- शहरों के विस्तार के साथ उपयुक्त जल निकासी व्यवस्था के अभाव को दूर करने के लिये अधिक प्रयास नहीं किया गया।
- कार्यान्वयन में शिथिलता: पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment- EIA) जैसे नियामक तंत्रों में वर्षा जल संचयन, संवहनीय शहरी जल निकासी प्रणाली आदि के प्रावधानों के बावजूद उपयोगकर्ता के साथ-साथ प्रवर्तन एजेंसियों के स्तर पर इनके अंगीकरण की गति शिथिल रही है।
आगे की राह
- स्थानीय स्वशासन की भूमिका: वृहत समावेशन और समुदाय की भावना को सुनिश्चित करने के लिये लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई स्थानीय सरकारों को केंद्रीय भूमिका सौंपे जाने की आवश्यकता है।
- जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के लिये एक शीर्ष-स्तरीय विभाग का निर्माण करना उपयुक्त होगा जो आवास एवं शहरी विकास, परिवहन, जल आपूर्ति, ऊर्जा, भूमि उपयोग, लोक कार्य और सिंचाई जैसे राज्य के सभी संबंधित विभागों का समन्वय करेगा और उन्हें निर्वाचित स्थानीय सरकार के साथ मिलकर कार्य करने में सक्षम बनाएगा। प्राथमिकताओं के निर्धारण और उत्तरदायित्व के वहन में इस शीर्ष विभाग की प्रमुख भूमिका होगी।
- समग्र संलग्नता: ऊर्जा एवं संसाधनों के ठोस और केंद्रित निवेश के बिना वृहत स्तरीय शहरी बाढ़ को अकेले नगरपालिका अधिकारियों द्वारा नियंत्रित करना संभव नहीं होगा।
- नगर निगमों के साथ-साथ महानगर विकास प्राधिकरण, NDMA और राज्य के राजस्व एवं सिंचाई विभागों को इस तरह के कार्य के लिये एक साथ संलग्न करना होगा।
- बेहतर शहर नियोजन: सस्ते आवास सहित शहर के विकास के सभी आयाम भविष्य के जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूल होने में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं।
- वे आधारभूत संरचना निर्माण के दौरान भी कार्बन उत्सर्जन वृद्धि को कम कर सकते हैं यदि बायोफिलिक डिज़ाइन (biophilic design) और हरित सामग्री का उपयोग किया जाए।
- नियोजित शहरीकरण आपदाओं का सामना कर सकता है। इसका आदर्श उदाहरण जापान है जो नियमित रूप से भूकंप का सामना करता रहता है।
- भारत आपदा संसाधन नेटवर्क (India Disaster Resource Network ) को व्यवस्थित सूचना और साधन एकत्रीकरण (Equipment Gathering) के लिये एक निधान (Repository) के रूप में संस्थागत किया जाना चाहिये।
- ‘ड्रेनेज प्लानिंग’: नीति और कानून में वाटरशेड प्रबंधन और आपातकालीन निकासी योजना/ड्रेनेज प्लानिंग को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया जाना चाहिए।
- अर्बन वाटरशेड सूक्ष्म पारिस्थितिक जल निकासी प्रणाली (Micro Ecological Drainage Systems) हैं, जो भूभाग की आकृति के अनुरूप आकार ग्रहण करते हैं।
- इनका विस्तृत दस्तावेज उन एजेंसियों के पास होना चाहिये जो नगरपालिका के अधिकार क्षेत्र से बंधे नहीं हैं। वास्तव में निकासी योजना को आकार देने के लिये चुनावी वार्ड जैसे शासनिक सीमाओं के बजाय वाटरशेड जैसी प्राकृतिक सीमाओं पर विचार किया जाना अधिक उपयुक्त होगा।