प्रश्न. निर्धनता उन्मूलन एवं पर्यावरणीय स्थिरता के मध्य कथित समझौताकारी समन्वय को आप किस प्रकार विश्लेषित कर सकते हैं? (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- गरीबी को कम करने और पर्यावरणीय स्थिरता के बीच के संबंध को संक्षेप में बताइये।
- गरीबी को कम करने तथा पर्यावरणीय स्थिरता के बीच कथित समझौताकारी समन्वय का विश्लेषण कीजिये।
- सुझाव दीजिये कि कैसे सतत् विकास रणनीति इस समझौताकारी समन्वय को दूर करती है।
- एक सकारात्मक निष्कर्ष लिखिये।
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उत्तर: ‘क्या गरीबी और ज़रूरतें सबसे बड़े प्रदूषक नहीं हैं?’ -इंदिरा गांधी, स्टॉकहोम सम्मेलन, 1972।
- निर्धनता में कमी या निर्धनता उन्मूलन, उपायों का एक समूह है, जिसमें आर्थिक और मानवीय दोनों पहलू शामिल हैं, जिसका उद्देश्य लोगों को स्थायी रूप से अभाव से बाहर निकालना है, जबकि पर्यावरणीय स्थिरता को भविष्य की क्षमता से समझौता किये बिना वर्तमान की ज़रूरतों को पूरा करने की क्षमता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। समझौताकारी समन्वयन तब होता है जब एक क्षेत्र की प्राथमिकता दूसरे क्षेत्र को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। इस प्रकार गरीबी में कमी और पर्यावरणीय स्थिरता के बीच समझौताकारी समन्वयन का अर्थ है- गरीबी एवं स्थिरता को खत्म करने के लिये किये गए विकासात्मक उपायों के बीच ‘संघर्ष’ से है।
- विकास की रणनीति पर पारंपरिक ज्ञान बताता है कि गरीबी उन्मूलन अनायास ही पर्यावरण पर नकारात्मक बाह्यताओं को जन्म देगा। चूँकि गरीबी सीमित संसाधनों के असमान वितरण का प्रकटीकरण है, इसके उन्मूलन के लिये क्रमश: और अधिक आर्थिक एवं प्राकृतिक संसाधनों के निर्माण तथा निष्कर्षण की आवश्यकता होती है जो प्राकृतिक वातावरण को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिये, खाद्य उत्पादन में वृद्धि, अस्पतालों, सड़कों, स्कूलों का निर्माण और उद्योगों की स्थापना के लिये वनों की कटाई, खनन और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के निष्कर्षण के माध्यम से प्राकृतिक वातावरण में परिवर्तन की आवश्यकता होती है।
- अतीत में कई देशों ने गरीबी को कम करने के लिये प्राकृतिक संसाधन के दोहन की इस रणनीति को अपनाया है। इससे यह धारणा बनी कि जंगल, नदियाँ और भूमि गरीबी को कम करने के उपायों का बोझ उठाएंगे, लेकिन वर्तमान समय में दुनिया प्राकृतिक वातावरण में एक अपरिवर्तनीय जलवायु परिवर्तन और मानव-केंद्रित हस्तक्षेप महसूस कर रही है, जो विकसित और विकासशील देशों को उनके विकास के दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करने के लिये बाध्य करता है। पेरिस जलवायु जैसी अंतर्राष्ट्रीय संधियों ने भी कार्बन उत्सर्जन में कटौती का अतिरिक्त बोझ डाला है। ऐसा परिदृश्य भारत जैसे विकासशील देशों के लिये दुविधा उत्पन्न करता है, जो विकसित विश्व की गरीबी कम करने की रणनीति का उपयोग नहीं कर सकते हैं।
- हालाँकि ‘सतत् विकास’ की रणनीति में विकल्प निहित है, जो गरीबी को कम करने और पर्यावरणीय स्थिरता के बीच इस समझौताकारी समन्वयन को दूर करता है। सतत् विकास, प्रौद्योगिकी के उपयोग और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने के माध्यम से इस समझौताकारी समन्वयन को बढ़ाने हेतु एक मार्ग प्रदान करता है। इस प्रकार पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना गरीबी के मुद्दे को संबोधित किया जा सकता है। उदाहरण के लिये, भारत सरकार गरीब परिवारों के लिये सब्सिडी वाले गैस सिलेंडर के लिये ‘उज्ज्वला योजना’ लेकर आई। पहले ये परिवार खाना पकाने के लिये लकड़ी का उपयोग किया करते थे जो महिलाओं के स्वास्थ्य को प्रभावित करता था तथा कार्बन उत्सर्जन उत्पन्न करता था। विज्ञान और नवाचार के क्षेत्र में उन्नति के मद्देनज़र आज हमारे पास गरीबी और अभाव को दूर करते हुए कार्बन फुटप्रिंट को कम करने की तकनीकें हैं। हरित अर्थव्यवस्था और परिपत्र अर्थव्यवस्था जैसी अवधारणाएँ नीति निर्माताओं का ध्यान आकर्षित कर रही हैं।
- गरीबी और पर्यावरणीय असंतुलन की समस्या का समाधान स्थायी प्रथाओं, लोगों की भागीदारी और विकेंद्रीकृत संसाधन प्रबंधन में निहित है। चूँकि गरीब व्यक्तियों का जीवन और पर्यावरण की स्थिति एक-दूसरे से जुड़ी हुई है, इसलिये पर्यावरणीय स्थिरता के बिना गरीबी का समाधान नहीं हो सकता है। इसी भावना से संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य 1, 2030 तक वैश्विक गरीबी के पूर्ण उन्मूलन का लक्ष्य निर्धारित करता है।