भारतीय संविधान विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच एक 'कार्यात्मक अतिव्यापन' करता है। स्पष्ट कीजिये। (250 शब्द)
01 Mar, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
हल करने का दृष्टिकोण:
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विश्व के प्रमुख लोकतांत्रिक देश सरकार के विभिन्न अंगों में विवादों को रोकने के लिये शक्ति के पृथक्करण का सिद्धांत अपनाते हैं। विश्व में शक्ति के पृथक्करण के मूलत: दो मॉडल अपनाए जाते हैं। पहला मॉडल अत्यधिक कठोर मॉडल हे जो कि मान्टेस्क्यू के डिक्टम का अनुपालन करते हुए विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका में शक्ति के पृथक्करण का सख्ती से पालन करता है। उदाहरणस्वरूप- संयुक्त राज्य अमेरिका। वहीं दूसरा मॉडल अधिक लचीले शक्ति पृथक्करण को अपनाता है जो कि वेस्टमिंस्टर मॉडल भी कहलाता है जो कि संसदीय संप्रभुता पर आधारित है। उदाहरण के लिये- ब्रिटेन का मॉडल।
जबकि भारतीय संविधान शक्ति के पृथक्करण का तीसरा एवं अनूठा मॉडल अपनाता है जिसमें विधायी, कार्यपालिका तथा न्यायिक निकायों को अलग-अलग मान्यता तो प्राप्त है किंतु इनके लिये शक्तियों का स्पष्ट विभाजन उपस्थित नहीं है तथा न ही उनके द्वारा निष्पादित कार्यों की प्रकृति में भी पूर्ण विशिष्टता नहीं है।
संविधान के निम्नलिखित प्रावधानों में सरकार के विभिन्न अंगों के बीच ‘कार्यात्मक अतिव्यापन’ प्रदर्शित होता है-
इस प्रकार देखा जाए तो भारतीय संविधान ने सरकार से सभी अंगों में संतुलन बनाए रखने के लिये ‘चैक एंड बैलेंस’ का कार्य ‘कार्यात्मक अतिव्यापन के माध्यम से करने का प्रयास किया है। विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका के बीच शक्तियों का लचीला संतुलन भारत में अद्वितीय (Suigeneleis) सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक परिदृश्य का परिणाम था जो कि आज तक भारतीय संविधान के उद्देश्यों की प्राप्ति में कारगर साबित हुआ है।’