नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारतीय संविधान विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच एक 'कार्यात्मक अतिव्यापन' करता है। स्पष्ट कीजिये। (250 शब्द)

    01 Mar, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • शक्ति के पृथक्करण तथा भारतीय कार्यात्मक अतिव्यापन की प्रकृति में अंतर बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • प्रश्न में उल्लिखित कथन को भारतीय संविधान के विभिन्न प्रावधानों की सहायता से समझाइये।
    • शक्ति संतुलन हेतु एक व्यवस्था की आवश्यकता को बताते हुए निष्कर्ष लिखिये।

     विश्व के प्रमुख लोकतांत्रिक देश सरकार के विभिन्न अंगों में विवादों को रोकने के लिये शक्ति के पृथक्करण का सिद्धांत अपनाते हैं। विश्व में शक्ति के पृथक्करण के मूलत: दो मॉडल अपनाए जाते हैं। पहला मॉडल अत्यधिक कठोर मॉडल हे जो कि मान्टेस्क्यू के डिक्टम का अनुपालन करते हुए विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका में शक्ति के पृथक्करण का सख्ती से पालन करता है। उदाहरणस्वरूप- संयुक्त राज्य अमेरिका। वहीं दूसरा मॉडल अधिक लचीले शक्ति पृथक्करण को अपनाता है जो कि वेस्टमिंस्टर मॉडल भी कहलाता है जो कि संसदीय संप्रभुता पर आधारित है। उदाहरण के लिये- ब्रिटेन का मॉडल।

    जबकि भारतीय संविधान शक्ति के पृथक्करण का तीसरा एवं अनूठा मॉडल अपनाता है जिसमें विधायी, कार्यपालिका तथा न्यायिक निकायों को अलग-अलग मान्यता तो प्राप्त है किंतु इनके लिये शक्तियों का स्पष्ट विभाजन उपस्थित नहीं है तथा न ही उनके द्वारा निष्पादित कार्यों की प्रकृति में भी पूर्ण विशिष्टता नहीं है।

    संविधान के निम्नलिखित प्रावधानों में सरकार के विभिन्न अंगों के बीच ‘कार्यात्मक अतिव्यापन’ प्रदर्शित होता है-

    • संसद, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या का निर्धारण करती है, तथा महाभियोग द्वारा सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को पद से भी हटाती है।
    • न्यायाधीशों के वेतन सहित पद की सेवा एवं शर्तें भी विधायी नियंत्रणाधीन हैं।
    • यद्यपि विधान बनाने का शक्ति संसद में निहित है, किंतु कार्यपालिका (मंत्रीगण) विधायी प्रक्रिया में प्रधानता रखते हैं क्योंकि विधेयक मुख्यत: संसद या राज्य विधानमंडलों में कार्यपालिका द्वारा ही पेश किये जाते हैं।
    • ‘प्रत्यायोजित विधान’ के माध्यम से संसद, कार्यपालिका को उन कानूनों के निर्माण की शक्ति देती है जिसमें वह स्वंय असमर्थ है।
    • कार्यपालिका अनेक उपबंधों के तहत न्यायिक शक्तियों का प्रयोग करती है। उदाहरण के लिये कार्यपालिका (राष्ट्रपति के नाम पर) किसी संसद सदस्य को निर्हर कर सकती है अथवा सदस्यता को बनाए रख सकती है।
    • कार्यपालिका, अनुच्छेद 323(B) के तहत स्थापित अन्य अधिकरणों को उनके कार्यों के पूर्ण होने से पूर्व वापस ले सकती है।
    • केशवानंद भारती वाद में उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन करने की विधायिका की शक्ति को संविधान का आधारभूत ढाँचा बताया है। इस प्रकार न्यायपालिका ने विधायी अतिवाद को नियंत्रित करने का प्रयास किया है।
    • परमादेश रिट के तहत, न्यायालय लोक अधिकारी, सार्वजनिक निकाय, संघ अधीनस्थ न्यायालयों, अधिकरणों तथा सरकार से उनके कर्त्तव्यों का पालन करने के लिये कह सकती है।

    इस प्रकार देखा जाए तो भारतीय संविधान ने सरकार से सभी अंगों में संतुलन बनाए रखने के लिये ‘चैक एंड बैलेंस’ का कार्य ‘कार्यात्मक अतिव्यापन के माध्यम से करने का प्रयास किया है। विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका के बीच शक्तियों का लचीला संतुलन भारत में अद्वितीय (Suigeneleis) सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक परिदृश्य का परिणाम था जो कि आज तक भारतीय संविधान के उद्देश्यों की प्राप्ति में कारगर साबित हुआ है।’

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow