गोंडवानालैंड के देशों में से एक होने के बावजूद भारत के खनन उद्योग प्रतिशत अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में बहुत कम प्रतिशत का योगदान देते हैं। चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण :
- भारत के सकल घरेलू उत्पाद में खनन क्षेत्र के योगदान पर चर्चा कीजिये।
- सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में इसके बहुत कम प्रतिशत के योगदान के कारणों पर चर्चा कीजिये।
- सरकार द्वारा उठाए गए कदमों और उनके महत्त्व के बारे में बताइये।
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परिचय
गोंडवानालैंड भूमि में कोयला, लोहा, अभ्रक, एल्युमीनियम आदि जैसे खनिजों की प्रचुरता है तथा इसका हिस्सा होने के बावजूद भारत के सकल घरेलू उत्पाद में खनन क्षेत्र के योगदान में लगातार गिरावट देखी जा रही है।
सकल घरेलू उत्पाद में खनन क्षेत्र का योगदान केवल 1.75% है, जबकि दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया जैसे अन्य देशों का योगदान 7.5% और 6.99% है।
कारण:
- जनजातीय समुदाय: कई आदिवासी समुदाय और विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) खनन क्षेत्रों में रहते हैं। खनन कार्य बढ़ने से उनके आवास को भी खतरा उत्पन्न होता है। उनका पुनर्वास और मुआवज़ा प्रदान करना एक अन्य प्रमुख मुद्दा है।
- प्रशासनिक मुद्दे: खदान की नीलामी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें सत्ता राज्य सरकारों के हाथों में होती है। उस मामले में अस्पष्टता हो सकती है जहाँ केंद्र और राज्य में दो अलग-अलग राजनीतिक दल सत्ता में हैं।
- अन्वेषण और प्रौद्योगिकी के उन्नयन में निवेश की कमी भी इसके पीछे एक बड़ा कारण है तथा अभी भी अप्रचलित व कम कुशल तकनीक का उपयोग किया जाता है।
- कोविड-19 महामारी जैसे अप्रत्याशित मुद्दों ने लौह, अलौह और लघु खनिजों के खनन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।
- पर्यावरण संबंधी चिंता: अधिनियम में सुधार भारत के खनन क्षेत्र को उतना ही अस्थिर करते हैं, जितना कि यह देश के विकास के लिये फायदेमंद हैं। खनन पर्यावरण की दृष्टि से हानिकारक है।
- सरकार के नीतिगत प्रयास अभी तक सफल नहीं हुए हैं और इनके कार्यान्वयन में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम
- MMDR संशोधन विधेयक, 2021: यह विधेयक खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 में संशोधन करना चाहता है जो भारत में खनन क्षेत्र को नियंत्रित करता है।
- खनिजों के अंतिम उपयोग पर प्रतिबंध हटाना: यह अधिनियम केंद्र सरकार को किसी विशेष अंतिम उपयोग (जैसे स्टील प्लांट के लिये लौह अयस्क खदान) के लिये नीलामी के माध्यम से पट्टे पर दी जाने वाली किसी भी खदान (कोयला, लिग्नाइट और परमाणु खनिजों के अलावा) को आरक्षित करने का अधिकार देता है। ऐसी खानों को कैप्टिव खानों के रूप में जाना जाता है।
- बिल में प्रावधान है कि कोई भी खदान किसी विशेष अंतिम उपयोग के लिये आरक्षित नहीं होगी।
- कैप्टिव खदानों द्वारा खनिजों की बिक्री: बिल में प्रावधान है कि कैप्टिव खदानें (परमाणु खनिजों के अलावा) अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के बाद अपने वार्षिक खनिज उत्पादन का 50% तक खुले बाज़ार में बेच सकती हैं।
- कुछ मामलों में केंद्र सरकार द्वारा नीलामी: विधेयक केंद्र सरकार को राज्य सरकार के परामर्श से नीलामी प्रक्रिया को पूरा करने के लिये एक समय अवधि निर्दिष्ट करने का अधिकार देता है।
- यदि राज्य सरकार इस अवधि के भीतर नीलामी प्रक्रिया को पूरा करने में असमर्थ है, तो नीलामी केंद्र सरकार द्वारा आयोजित की जा सकती है।
- वैधानिक मंज़ूरी का हस्तांतरण: यह प्रावधान करता है कि हस्तांतरित वैधानिक मंज़ूरी नए पट्टेदार की पट्टे की अवधि के दौरान मान्य होगी।
- वर्तमान में नए पट्टेदार को पिछले पट्टेदार से हस्तांतरण के दो साल के भीतर नई मंज़ूरी के लिये आवेदन करना होता है।
- लीज़ समाप्ति वाली खदानों का आवंटन: बिल में कहा गया है कि जिन खदानों की लीज़ खत्म हो चुकी है, उन्हें कुछ मामलों में सरकारी कंपनी को आवंटित किया जा सकता है।
- राज्य सरकार ऐसी खदान के लिये किसी सरकारी कंपनी को 10 साल तक की अवधि के लिये या नए पट्टेदार के चयन तक (जो भी पहले हो) पट्टे पर दे सकती है।
- सरकारी कंपनियों को पट्टों का विस्तार: अधिनियम में प्रावधान है कि सरकारी कंपनियों को दिये गए खनन पट्टों की अवधि केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाएगी और बिल में निर्धारित अतिरिक्त राशि के भुगतान पर इसे बढ़ाया जा सकता है।
निष्कर्ष
- खनिज संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग के लिये निकासी प्रक्रिया में तेज़ी लाने की आवश्यकता है। खदान से संबंधित दुर्घटनाओं को रोकने हेतु विशेष रूप से रैट-होल पर प्रतिबंध और अवैज्ञानिक खनन के संबंध में खनन संबंधी नियमों के सख्त कार्यान्वयन की आवश्यकता है।
- दुनिया भर में खनिकों द्वारा भूमिगत खनन के लिये उपयोग की जाने वाली उच्च तकनीक पर ध्यान केंद्रित करना एक समाधान है।