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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत में आर्द्रभूमियों के समक्ष प्रमुख खतरों का विस्तृत विवरण दीजिये। इन खतरों को कम करने में ‘बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग दृष्टिकोण’ कैसे मदद कर सकता है? (150 शब्द)

    25 Feb, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • आर्द्रभूमि को परिभाषित कीजिये।
    • भारत में आर्द्रभूमि के समक्ष प्रमुख खतरों की चर्चा कीजिये।
    • इन खतरों को कम करने में बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग दृष्टिकोण की प्रभावकारिता का विश्लेषण कीजिये।
    • आगे की राह सुझाते हुए निष्कर्ष लिखिये।

    रामसर अभिसमय, जो आर्द्रभूमि के संरक्षण के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय अंतर-सरकारी संधि है तथा भारत भी जिसका एक सदस्य है, आर्द्रभूमि को इस प्रकार परिभाषित करता है, ‘प्राकृतिक अथवा कृत्रिम, स्थायी अथवा अस्थायी, पूर्णकालीन आर्द्र अथवा अल्पकालीन, स्थिर जल अथवा अस्थिर जल, स्वच्छ जल अथवा अस्वच्छ, लवणीय, मटमैला जल- इन सभी प्रकार के जल वाले स्थल आर्द्रभूमि के अन्तर्गत आते हैं। समुद्री जल, जहाँ भाटा-जल की गहराई छ: मीटर से अधिक नहीं हो, भी आर्द्रभूमि कहलाता है। ‘जलयुक्त दलदली वन भूमि (Swamps), दलदली झाड़ी युक्त स्थल (Marsh), घास युक्त दलदल, जल प्लावित घास क्षेत्र (bogs), खनिज युक्त आर्द्रस्थल (Fens), सड़े-गले पेड़-पौधों के जमाव वाली आर्द्रभूमि (Peatland), दलदल, नदी, झील, बाढ़ के क्षेत्र, बाढ़ वाले वन, समुद्री किनारे के झाड़ी युक्त स्थल (Mangroves), डेल्टा, धान के खेत, मूंगे की चटेानों के क्षेत्र, बांध, नहर, झरने, मरुस्थली झरने, ग्लेशियर आदि सभी आर्द्र क्षेत्र आर्द्रभूमि कहलाते हैं। मानवकृत कृत्रिम जल स्थल, जैसे- मत्स्य पालन, जलाशय आदि भी आर्द्रभूमि के अन्तर्गत आते हैं।

    आर्द्रभूमि समृद्ध जैव-विविधता का पोषण करते हैं और पानी की आपूर्ति को स्थिर करने, प्रदूषित पानी को साफ करने, तटरेखाओं की रक्षा करने और भूजल एक्विफर्स को रिचार्ज करने में मदद करते हैं। हालाँकि, विभिन्न कारक हैं जो उनके अस्तित्व को खतरा पहुँचा रहे हैं।

    भारत में आर्द्रभूमि के लिये प्रमुख खतरे :

    • शहरी केंद्रों के पास स्थित आर्द्रभूमि आवासीय, औद्योगिक और वाणिज्यिक सुविधाओं के लिये किये जा रहे विकास के कारण दबाव में हैं, उदाहरण के लिये, उदयपुर में उदयसागर झील। सार्वजनिक जल आपूर्ति के संरक्षण के लिये शहरी आर्द्रभूमि आवश्यक है।
    • हवा के तापमान में वृद्धि; वर्षा में परिवर्तन; तूफान, सूखा और बाढ़ की आवृत्ति में वृद्धि; वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के संकेंद्रण में वृद्धि; और समुद्र जलस्तर की वृद्धि भी आर्द्रभूमि को प्रभावित कर सकती है।
    • देश में म्युनिसिपल ठोस कचरे के पाँचवें भाग से अनधिक का निस्तारण नहीं होने से आर्द्रभूमियाँ कचरा स्थल बन गई हैं।
    • भारतीय आर्द्रभूमियों को जलकुंभी और साल्विनिया जैसी विदेशी पौध प्रजातियों से खतरा है। वे जलमार्गों को रोकती हैं और देशी वनस्पति के साथ प्रतिस्पर्धा करती हैं।
    • आर्द्रभूमि के विशाल हिस्सों को धान के खेतों में बदल दिया गया है। सिंचाई के लिये बड़ी संख्या में जलाशयों, नहरों और बांधों के निर्माण से संबंधित आर्द्रभूमि के जल विज्ञान में काफी परिवर्तन हुआ है।

    बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग दृष्टिकोण:

    • आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017 के कार्यान्वयन में राज्य सरकारों का समर्थन करने के लिये पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने दिशानिर्देश जारी किये हैं, दिशानिर्देशों में आर्द्रभूमि के प्रबंधन को ‘बुद्धिमतापूर्ण उपयोग के आधार पर’ अधिसूचित करने की सिफारिश की गई है।
    • रामसर अभिसमय, आर्द्रभूमि के ‘बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग’ को ‘उनके पारिस्थितिक लक्षणों के रखरखाव के रूप में परिभाषित करता है, जो स्थायी विकास के संदर्भ में पारिस्थितिकी तंत्र उपागम के कार्यान्वयन के माध्यम से हासिल किया गया है।’
    • एक आर्द्रभूमि उपयोग ‘बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग नहीं है’ यदि मानवीय हस्तक्षेप, जैसे- आर्द्रभूमि में बहने वाले पानी में कमी, बाढ़, जल धारण क्षमता, आदि द्वारा पारिस्थितिक तंत्र के घटकों और प्रक्रियाओं में प्रतिकूल परिवर्तन किया जाता है।
    • उदाहरण के लिये, शहरी झील सदृश्य आर्द्रभूमि में, सौंदर्यीकरण के लिये तटरेखा के समतलीकरण जैसे हस्तक्षेप से सौंदर्य मूल्य और पर्यटन तो बढ़ेगा लेकिन ‘मानसून प्रवाह को समायोजित करने की क्षमता’ में कमी आएगी और इस तरह यह ‘बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग’ नहीं हो सकता है।
    • बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग दृष्टिकोण आर्द्रभूमि की प्राकृतिक अवस्था के संरक्षण और पुनर्बहाली पर आधारित है। इसमें आर्द्रभूमि इकोसिस्टम पर नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिये सरकार, समुदायों, व्यक्तियों और गैर-सरकारी संगठनों की भागीदारी शामिल है।

    आगे की राह :

    • अनियोजित शहरीकरण और बढ़ती आबादी का मुकाबला करने के लिये आर्द्रभूमि के प्रबंधन की योजना, निष्पादन और निगरानी के मामले में एकीकृत दृष्टिकोण होना चाहिये।
    • शिक्षाविदों और पेशेवरों, जिनमें पारिस्थितिक विज्ञानशास्त्री, वाटरशेड प्रबंधन विशेषज्ञ, योजनाकार और आर्द्रभूमि के समग्र प्रबंधन के लिये निर्णय लेने वाले शामिल हैं, के बीच प्रभावी सहयोग होना चाहिये।
    • आर्द्रभूमि की गतिशील प्रकृति के कारण प्रभावी प्रबंधन और निगरानी के लिये उपग्रह आधारित रिमोट सेंसर और कम लागत वाले वहनीय जीआईएस टूल की आवश्यकता होती है।

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