प्र. ‘‘यदि हम दूसरों के लिये ग्रहीय दबाव बनाना जारी रखते हैं तो मानव विकास को आगे बढ़ाना असंभव है।’’ ग्रहीय दबाव समायोजित मानव विकास सूचकांक (PHDI) के संदर्भ में इस कथन का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- ग्रहीय दबाव समायोजित मानव विकास सूचकांक (PHDI) को परिभाषित करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- चर्चा कीजिये कि मानव विकास कैसे ग्रहीय दबाव बना रहा है।
- आगे की राह बताइये।
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परिचय
PHDI मानक HDI को देश के प्रति व्यक्ति कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन और प्रति व्यक्ति ‘मटेरियल फुटप्रिंट’ स्तर से समायोजित करता है।
PHDI का उद्देश्य वृहत समाज को वैश्विक संसाधन उपयोग और पर्यावरण प्रबंधन में मौजूदा अभ्यासों को जारी रखने में शामिल जोखिम और विकास पर पर्यावरणीय तनाव (environmental stress) द्वारा बनाए रखने वाले मंदकारी प्रभाव से अवगत कराना है।
यह विकसित देशों द्वारा उत्पन्न ग्रहीय दबाव की प्रकृति को संक्षेप में सामने लाता है और परोक्ष रूप से स्थिति का मुकाबला करने में उनकी ज़िम्मेदारी को इंगित करता है।
मानव विकास निम्नलिखित तरीकों से ग्रहीय दबाव उत्पन्न करता है:
- आर्थिक विकास के वांछित स्तरों की प्राप्ति के लिये तीव्र औद्योगीकरण और शहरीकरण अपरिहार्य हैं।
- प्रति व्यक्ति आय में उल्लेखनीय वृद्धि लाने के लिये भी यह आवश्यक माना जाता है।
- हालाँकि, इन आय-सृजनकारी गतिविधियों से प्रदूषण जैसे नकारात्मक पर्यावरणीय परिणामों का उत्पन्न होना भी तय है।
- निश्चय ही, बड़े पैमाने पर रोज़गार सृजन और गरीबी में कमी लाने के लक्ष्यों की पूर्ति के लिये पर्यावरणीय गुणवत्ता से समझौता किया जा रहा है।
- ऐसी धारणा है कि वित्तीय और तकनीकी क्षमताओं में वृद्धि के साथ-साथ आय के स्तर में क्रमिक वृद्धि से पर्यावरण की गुणवत्ता को पुनर्बहाल किया जा सकता है।
- लेकिन वास्तविकता यह है कि निरंतर विकास सृजनकारी गतिविधियाँ पर्यावरण की गुणवत्ता को और बदतर ही बनाती हैं।
आगे की राह
- पर्यावरणीय और सामाजिक विकास को आपस में जोड़ना: अब यह बात अच्छी तरह से स्थापित हो चुकी है कि सामाजिक प्रक्रियाओं सहित पृथ्वी प्रणाली प्रक्रियाओं की अन्योन्याश्रताएँ हैं और उनके संबंध गैर-रैखिक एवं द्वंद्वात्मक हैं।
- इसलिये सामाजिक एवं आर्थिक प्रणालियों सहित मानव विकास को पारिस्थितिकी तंत्र के साथ संयुक्त करने और प्रकृति-आधारित समाधानों (जहाँ लोगों को केंद्र में रखा जाता है) के प्रति एक व्यवस्थित दृष्टिकोण पर आधारित जीवमंडल का निर्माण करने की आवश्यकता है।
- स्थानीय स्तर की भागीदारी: अब लोगों और ग्रह को एक परस्पर संबद्ध सामाजिक-पारिस्थितिक तंत्र का अंग मानने पर विचार करना आवश्यक है।
- सामाजिक और पर्यावरणीय समस्याओं को अब अलग-अलग संबोधित नहीं किया जा सकता है; इसके लिये एक एकीकृत दृष्टिकोण आवश्यक है।
- इसे स्थानीय स्तर पर अभिकल्पित और संबोधित किया जा सकता है, जिसके लिये भारत के पास 73वें और 74वें संशोधन के रूप में संवैधानिक प्रावधान मौजूद हैं।
- सरकार, संस्थानों और प्रौद्योगिकी का एक सहयोगात्मक प्रयास: रिमोट सेंसिंग एवं भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) की सक्षम प्रौद्योगिकी के साथ-साथ पृथ्वी प्रणाली विज्ञान एवं संवहनीयता अनुसंधान में उल्लेखनीय प्रगति ने ज़मीनी स्तर पर मानव गतिविधियों के प्रभाव के दस्तावेज़ीकरण एवं वर्णन में मदद की है और प्राकृतिक एवं सामाजिक विज्ञानों को शामिल करते हुए नए अंतःविषयक कार्यों को प्रोत्साहित किया है।
- वे इन प्रभावों को कम करने और जीवन को बेहतर बनाने के संबंध में अंतर्दृष्टि भी प्रदान करते हैं।
- अब नियोजन प्रक्रिया का पुनर्विन्यास, एक विकेन्द्रीकृत दृष्टिकोण का अंगीकरण, उचित संस्थागत व्यवस्था के लिये एक योजना और पर्यावरणीय तनाव को कुशलतापूर्वक संबोधित करने हेतु राजनीतिक निर्णयों को सक्षम करने वाले कदम उठाये जाने की आवश्यकता है।
- HDR रिपोर्ट की सिफारिशें: वर्ष 2020 की HDI रिपोर्ट सामूहिक परिवर्तन के लिये तीन तंत्रों की रूपरेखा प्रदान करती है:
- सामाजिक मानदंड और मूल्य: चूँकि विश्व अपनी एजेंसी के विस्तार और मानव विकास के माध्यम से लोगों के सशक्तीकरण की इच्छा रखता है, उसे नए मानदंड भी स्थापित करने चाहिये जो ग्रहीय संतुलन एवं संवहनीयता को अधिकाधिक महत्त्व दें।
- प्रोत्साहन और नियमन: प्रोत्साहन और विनियमों का उपयोग कार्रवाई को बढ़ावा देने या रोकने के लिये किया जा सकता है, जो व्यवहार और मूल्यों के बीच की खाई को पाटने में मदद कर सकते हैं।
- प्रकृति-आधारित समाधान: ये पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा, संवहनीय प्रबंधन और पुनर्स्थापना को बल देने वाली कार्रवाइयों के सृजन एवं समर्थन के माध्यम से मानव विकास और ग्रहों के स्वास्थ्य के बीच एक सुदृढ़ चक्र (virtuous cycle) का निर्माण कर सकते हैं।