विवेकहीन मानव विकास ने पश्चिमी घाट के पारिस्थितिक रूप से कमज़ोर क्षेत्रों पर नकारात्मक प्रभावों को बढ़ा दिया है। इस कथन के आलोक में नाजुक पारितंत्र के संरक्षण के लिये आवश्यक उपायों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- विकास और पर्यावरण के मध्य संबंध बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- विवेकहीन मानव विकास के कारण पश्चिमी घाटों को होने वाले खतरों की विवेचना कीजिये।
- नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिये आवश्यक उपायों पर भी चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय
विकास और पर्यावरण के बीच एक स्थापित घनिष्ठ संबंध है। पर्यावरणीय संसाधनों के बिना विकास संभव नहीं है। इसलिये संसाधनों के विघटन का विकास प्रक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण समग्र विकास बाधित होता है।
- पश्चिमी घाट पर मंडराते खतरे:
- विकास-संबंधी दबाव: कृषि विस्तार और पशुधन चराई के साथ-साथ शहरीकरण इस क्षेत्र के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न कर रहा है।
- पश्चिमी घाट क्षेत्र में लगभग 50 मिलियन लोग वास करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप ऐसे विकास-संबंधी दबाव का निर्माण होता है जो परिमाण में विश्व भर के कई संरक्षित क्षेत्रों की तुलना में कहीं अधिक है।
- जैव विविधता संबंधी समस्याएँ: वन क्षति, पर्यावास विखंडन, आक्रामक पादप प्रजातियों द्वारा पर्यावास क्षरण, अतिक्रमण और भूदृश्य रूपांतरण भी पश्चिमी घाट को प्रभावित कर रहे हैं।
- पश्चिमी घाट में विकास के दबाव के कारण होने वाले विखंडन से संरक्षित क्षेत्रों के बाहर वन्यजीव गलियारों और उपयुक्त पर्यावासों की उपलब्धता कम हो रही है।
- जलवायु परिवर्तन: बीते कुछ वर्षों में जलवायु संकट की गति तेज़ हुई है:
- पिछले चार वर्षों (2018-21) में बाढ़ ने केरल के पश्चिमी घाट क्षेत्रों को तीन बार तबाह किया है जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए और आधारभूत संरचना एवं आजीविका को भारी आघात लगा।
- वर्ष 2021 में भूस्खलन और फ्लैश फ्लड ने कोंकण के घाट क्षेत्रों में तबाही मचाई।
- अरब सागर के गर्म होने के साथ चक्रवातों की तीव्रता में भी वृद्धि हो रही है, जिससे पश्चिमी तट विशेष रूप से सुभेद्य होते जा रहे हैं।
- औद्योगीकरण संबंधी खतरे: पश्चिमी घाट के संबंध में एक सुविचारित ESA नीति के अभाव में इस क्षेत्र में अधिकाधिक प्रदूषणकारी उद्योगों, खदानों एवं खानों, सड़कों और टाउनशिप की योजना बनाई जा सकती है।
- इसका आशय है कि भविष्य में इस क्षेत्र के नाज़ुक भूदृश्य को और अधिक क्षति पहुँचेगी।
आगे की राह
- निवारक दृष्टिकोण: सभी लोगों की आजीविका को प्रभावित करने और देश की अर्थव्यवस्था को क्षति पहुँचाने वाले जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए नाज़ुक व संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र का संरक्षण करना विवेकपूर्ण होगा।
- यह पुनर्स्थापन/पुनरुद्धार के लिये धन/संसाधनों के व्यय की तुलना में आपदाओं की संभावना वाली स्थिति पर खर्च के दृष्टिकोण से अधिक लागत-प्रभावी होगा।
- इस प्रकार, कार्यान्वयन में और देरी से देश के सबसे बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन का क्षरण और प्रबल ही होगा।
- सभी हितधारकों को संलग्न करना: वैज्ञानिक अध्ययन पर आधारित एक उपयुक्त विश्लेषण के साथ संबंधित चिंताओं को संबोधित करते हुए विभिन्न हितधारकों के बीच आम सहमति का निर्माण करने की तत्काल आवश्यकता है।
- वन भूमि, उत्पादों और सेवाओं पर मंडराते खतरों और मांगों पर एक समग्र दृष्टिकोण अपनाते हुए इन्हें संबोधित करने के लिये रणनीति (संलग्न अधिकारियों के स्पष्ट घोषित उद्देश्यों के साथ) रणनीति तैयार की जानी चाहिये।
- स्थानीय लोगों की चिंताओं को संबोधित करना: तर्क दिया जाता है कि पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में गतिविधयों को सीमित और नियंत्रित करने का विचार स्वाभाविक रूप से स्थानीय लोगों और उनकी विकासात्मक आकांक्षाओं के विरुद्ध है।
- किंतु, संभव है कि बहुत से स्थानीय लोग अवगत ही नहीं हों कि ESA में क्या प्रावधान किये गए हैं; क्या यह क्षेत्र में विकास को पटरी से उतार देगा और विकास के अन्य वैकल्पिक मॉडल कौन से हैं।
- इस विषय पर विस्तृत सार्वजनिक परामर्श के माध्यम से चर्चा की जा सकती है ताकि यह भ्रम न बने कि नीति ‘टॉप-डाउन’ दृष्टिकोण की शिकार है।
- राज्य सरकारों की भूमिका: राज्यों को पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट करने के खतरों को चिह्नित करना चाहिये, विशेषकर जब भारत जलवायु संकट का खामियाज़ा भुगत रहा है।
- उन्हें यह समझना होगा कि जलवायु संकट एक वास्तविकता है और मूल्यवान पश्चिमी घाट के संरक्षण के लिये निर्णयकारी प्रक्रिया को टालते रहने के बजाय उन्हें अधिकाधिक निर्णायक जलवायु-सिद्धकारी कार्रवाइयों पर आगे बढ़ना चाहिये।
- स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना: WGEEP ने इस बात पर बल दिया था कि वे ज़मीनी स्तर के लोग हैं जिनके पास ज्ञान है और जो पर्यावरण से जुड़े हैं और उनके पास ही इस क्षेत्र की सुरक्षा के लिये प्रेरणा मौजूद होनी चाहिये।
- आगे की राह वास्तविक लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण और ग्रामों एवं शहरों में स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने में निहित है।
- पश्चिमी घाट क्षेत्र के लोगों ने पूर्व में कई प्रगतिशील पहलों (जैसे केरल में पीपल्स प्लानिंग कैम्पेन) को शुरू किया है। संसाधनों के क्षय और दोहन को रोकने के लिये इस तरह के आंदोलनों की भावना को पुनर्बहाल किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
- पश्चिमी घाटों की रक्षा की आवश्यकता पर कोई दो मत नहीं हैं, लेकिन वनों की सुरक्षा और स्थानीय लोगों की आजीविका के अधिकार के बीच संतुलन बनाने की भी आवश्यकता है।
- यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि पश्चिमी घाट या किसी भी प्राकृतिक संसाधन पर केवल हमारा हक नहीं है कि हम उसे नष्ट कर दें। इसे भावी पीढ़ी के लिये सुरक्षित रखना हम सभी का कर्तव्य है।