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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत में संविधान की आधारभूत संरचना का सिद्धांत कैसे उभरा और विकसित हुआ? (150 शब्द)

    22 Feb, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • संविधान की आधारभूत संरचना के सिद्धांत को संक्षिप्त रूप में स्पष्ट करते हुए भूमिका लिखिये।
    • सर्वोच्च न्यायालय के उन प्रमुख निर्णयों की चर्चा कीजिये जिन्होंने आधारभूत संरचना के सिद्धांत के विकास में महत्त्वपूर्ण पड़ाव के रूप में भूमिका निभाई।
    • स्पष्ट कीजिये कि आधारभूत संरचना के सिद्धांत ने संविधान की भावना को कैसे जीवित रखा है?
    • सारगर्भित निष्कर्ष लिखिये।

    आधारभूत संरचना के सिद्धांत को, भारतीय न्यायपालिका के हाथों में, शक्ति संतुलन को बनाए रखने तथा लोकतंत्र के सुचारू एवं प्रभावी संचालन के लिये नियंत्रण और संतुलन हेतु सबसे शक्तिशाली उपकरण माना गया है। इस सिद्धांत के अनुसार, यदि सर्वोच्च न्यायालय संसद द्वारा बनाए गए किसी भी कानून/विधि को संविधान के मूल आदर्शों और दर्शन से असंगत पाता है तो न्यायालय के पास उस कानून/विधि को अमान्य घोषित करने की शक्ति है।

    आधारभूत संरचना का सिद्धांत भारतीय न्यायपालिका के कई वर्षों के ऐतिहासिक निर्णयों के माध्यम से विकसित हुआ है, जो संविधान की मूल भावना के अनुरक्षण के लिये महत्त्वपूर्ण है-

    • शंकरी प्रसाद बनाम भारत संघ वाद, 1951- इस वाद में प्रथम संविधान संशोधन को चुनौती दी गई। संशोधन को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि इसने संविधान के भाग-3 का उल्लंघन किया है, अत: इसे अविधिमान्य घोषित किया जाना चाहिये। इस वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि अनुच्छेद 368 के तहत संसद को मौलिक अधिकारों सहित संविधान के किसी भी भाग में संशोधन करने की शक्ति है।
    • गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य वाद, 1967- इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्व में दिये गए अपने निर्णय को पलट दिया तथा यह माना कि संसद के पास संविधान के भाग-3 में संशोधन करने की कोई शक्ति नहीं है, क्योंकि मौलिक अधिकार प्रकृति प्रदत्त तथा अपरिवर्तनीय हैं।
    • केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य वाद, 1973- इस वाद ने ऐतिहासिक निर्णय को जन्म दिया, जिसमें कहा गया कि संसद संविधान की आधारभूत संरचना को परिवर्तित या विचलित नहीं कर सकती है। इसमें यह निर्णय दिया गया कि संसद के पास संविधान में संशोधन करने की शक्ति निरंकुश नहीं है अर्थात् संसद संविधान की मूल संरचना को विचलित या प्रसारित नहीं कर सकती है क्योंकि संसद के पास संविधान में संशोधन की शक्ति है, न कि संविधान को फिर से लिखने की।
    • इंदिरा नेहरु गांधी बनाम राज नारायण वाद और मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ वाद- इस वाद में सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठों ने ‘आधारभूत संरचना’ के सिद्धांत का उपयोग करते हुए क्रमश: 39वें संविधान संशोधन और 42वें संविधान संशोधन के कुछ प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित कर आपातकाल के बाद भारतीय लोकतंत्र की बहाली का मार्ग प्रशस्त किया।

    समय की धारा के अनुरूप समायोजित करने और पीढ़ियों की बदलती आवश्यकताओं के अनुकूल होने के लिये संविधान का लचीला होना आवश्यक है। वहीं आधारभूत संरचना ऐसे आंतरिक मूल्य हैं जिन पर संविधान की अवधारणा टिकी हुई है। यह सरंचना कानूनी प्रणाली का सार है जिसके आधार पर संविधान के दस्तावेज़ को तैयार किया गया है और न्यायपालिका इसे अपने विभिन्न निर्णयों, सिद्धांतों और घोषणाओं के माध्यम से बचाने का प्रयास करती है। इस प्रकार आधारभूत संरचना का यह सिद्धांत सुरक्षा कवच के रूप में भूमिका निभाते हुए हमारे संविधान की मूल भावना को जीवित रखता है।

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