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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    शहरी भूमि उपयोग के लिये जल निकायों से भूमि उद्धार के पर्यावरणीय प्रभाव क्या हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिये। (250 शब्द)

    21 Feb, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भूमि उद्धार की प्रक्रिया और उसकी आवश्यकताओं की व्याख्या के साथ प्रारंभ कीजिये।
    • इसके पर्यावरणीय प्रभावों की व्याख्या कीजिये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष निकालें।

    परिचय:

    • भूमि उद्धार का अर्थ है- कीचड़युक्त क्षेत्रों से पानी को बाहर निकालकर या भूमि के स्तर को ऊपर उठाकर नई भूमि का निर्माण करना। भूमि की बढ़ती मांग के साथ यह भवन, कृषि और अन्य उपयोगों हेतु क्षेत्र के निर्माण के लिये एक अच्छा समाधान हो सकता है।

    निकाय:

    शहरी भूमि उपयोग में जल निकायों के सुधार के कई पर्यावरणीय परिणाम हैं, जैसे:

    • क्षतिग्रस्त पारिस्थितिकी: शहरी भूमि परिवर्तन से जल निकायों के आसपास आवासीय, वाणिज्यिक भवनों का निर्माण होता है, जिससे जल पारिस्थितिकी का क्षरण होता है और पोषक तत्त्वों का प्रवाह होता है। श्रीनगर में डल झील और अन्य जल निकाय इसके बड़े उदाहरण हैं।
      • भूमि उद्धार भी समुद्र तल और लहर पैटर्न के आकार को बदल सकता है, इसके परिणामस्वरूप ज्वार पैटर्न भी बदल सकता है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र में परिवर्तन हो सकता है।
    • अतिक्रमण: जैसे-जैसे अधिक लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, भूमि की उपलब्धता कम होती जा रही है, शहरी क्षेत्रों में भूमि के एक छोटे से टुकड़े का भी उच्च आर्थिक मूल्य होता है।
      • इन शहरी जल निकायों को न केवल उनकी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिये बल्कि उनकी अचल संपत्ति मूल्य हेतु भी स्वीकार किया जाता है। गुवाहाटी में दीपोर बील जल निकाय इसका एक प्रसिद्ध उदाहरण है।
    • बाढ़ की बारंबारता में वृद्धि: जल निकाय अतिरिक्त वर्षा के लिये स्पंज के रूप में कार्य करते हैं, जल निकायों के सुधार के कारण बाढ़ की घटनाएँ अधिक होती हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मुंबई है।
      • वनस्पति का ह्रास, मृदा आवरण के कंक्रीट के परिदृश्य में परिवर्तन ने पारगम्यता को कम कर दिया है एवं अपवाह में वृद्धि हुई है, जो मानसून के दौरान मुंबई में बाढ़ के प्राथमिक कारणों में से एक रहा है।
      • गाद और निर्माणाधीन क्षेत्रों में वृद्धि के कारण नाले संकरे और उथले होते जा रहे हैं, जिससे शहर की प्राकृतिक जल निकासी व्यवस्था बाधित हो रही है। जैसा कि 26 जुलाई, 2005 की भीषण बाढ़ के दौरान स्पष्ट हुआ था।
    • प्रजातियों का विलुप्त होना: आर्द्रभूमि में सुधार से जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (BOD) में वृद्धि हुई है जो न केवल जलीय प्रजातियों के लिये बल्कि उड़ने वाले जीवों के लिये भी हानिकारक है। हुसैन सागर झील ऐसी स्थिति का एक अच्छा उदाहरण है।
    • प्रदूषण: दूषित पदार्थों के निस्यंदन के माध्यम से जल निकायों का शुद्धिकरण प्रभावी होता है। कचरे के निपटान के लिये बुनियादी ढाँचे जैसी नागरिक सुविधाओं के विस्तार के बिना शहरी आबादी में विस्फोटक वृद्धि हुई है। जल निकायों को कई मामलों में लैंडफिल में बदल दिया गया है।
      • उदाहरण के लिये, बंगाल और गुवाहाटी के दीपोर बील में कई जल निकायों का उपयोग नगर निगम द्वारा ठोस कचरे को डंप करने हेतु किया गया।
      • हुसैन सागर झील में भारी प्रदूषण के कारण कई प्रदूषक भूमिगत जल निकायों में प्रवेश जाते हैं। हालाँकि रिसाव कई प्रदूषकों का निस्यंदन करता है, जिससे खुले कुँओं या बोरवेल में कुछ प्रदूषक चले जाते हैं जो भूजल प्रदूषण का कारण बनते हैं।
    • पर्यावरणीय खतरे: आपदाएँ बड़ी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के सामाजिक और प्राकृतिक संदर्भों के प्रति लापरवाही के कारण उत्पन्न होती हैं। तटीय क्षेत्रों में शहरी भूमि उपयोग के लिये जल सुधार से भूकंप आदि की घटनाओं में वृद्धि हो सकती है।

    निष्कर्ष

    जल निकाय न केवल जैव विविधता की उच्च सांद्रता का समर्थन करते हैं, बल्कि भोजन, पानी, फाइबर, भूजल पुनर्भरण, जल शोधन, बाढ़ नियंत्रण, तूफान से संरक्षण, क्षरण नियंत्रण, कार्बन भंडारण और जलवायु विनियमन जैसे महत्त्वपूर्ण संसाधनों एवं पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की एक विस्तृत शृंखला प्रदान करते हैं। इसलिये इनका संरक्षण करना आवश्यक है।

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