उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन और इसे प्राप्त करने के लिए भारत की प्रतिज्ञा से आप क्या समझते हैं, यह बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन में भारत के योगदान पर चर्चा कीजिये।
- वर्ष 2070 तक शून्य-शून्य के अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए भारत द्वारा किए जा सकने वाले उपायों को सुझाइये।
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परिचय
भारत ने UNFCCC के COP-26 में अपनी वर्द्धित जलवायु प्रतिबद्धताओं— ‘पंचामृत’ की घोषणा की, जिसमें वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन (Net-Zero Carbon Emission) तक पहुँचने की प्रतिबद्धता शामिल है।
इस घोषणा के बाद वर्ष 2070 के अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये भारत को विशेष रूप से एक सुगम नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण, इलेक्ट्रिक वाहनों के अधिकाधिक अंगीकरण और सार्वजनिक क्षेत्र के साथ-साथ निजी क्षेत्र की वृहत भागीदारिता पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता होगी।
शुद्ध-शून्य में भारत का योगदान
- भारत के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य: भारत के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य लगातार अधिक महत्त्वाकांक्षी होते गए हैं, जहाँ पेरिस में वर्ष 2022 तक 175 GW प्राप्त कर लेने की घोषणा से आगे बढ़ते हुए उसने संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन में वर्ष 2030 तक 450 GW और अब COP26 में वर्ष 2030 तक 500 GW क्षमता प्राप्त कर लेने के लक्ष्य की घोषणा की है।
- परिवहन क्षेत्र में सुधार: भारत ’FAME’ योजना [Faster Adoption and Manufacturing of (Hybrid &) Electric Vehicles Scheme] के साथ अपने ई-मोबिलिटी रूपांतरण में गति ला रहा है।
- भारत ने भारत स्टेज- IV (BS-IV) से तेज़ी से आगे बढ़ते हुए भारत स्टेज-VI (BS-VI) उत्सर्जन मानदंड को 1 अप्रैल, 2020 तक अपनाए जाने की घोषणा की (जिसे मूल रूप से वर्ष 2024 तक अपनाया जाना था)।
- पुराने और अयोग्य वाहनों को चरणबद्ध रूप से हटाने के लिये एक स्वैच्छिक ‘व्हीकल स्क्रैपिंग पॉलिसी’ अपनाई गई है जो मौजूदा योजनाओं को पूरकता प्रदान करती है।
- इलेक्ट्रिक वाहनों को भारत का समर्थन: भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल है जो वैश्विक EV30@30 अभियान का समर्थन करते हैं, जिसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि वर्ष 2030 तक बिक्री किये जाते नए वाहनों के कम-से-कम 30% इलेक्ट्रिक हों।
- ग्लासगो में आयोजित COP26 में जलवायु परिवर्तन के संबंध में पाँच तत्वों (जिसे ‘पंचामृत’ नाम दिया दिया है) की भारत द्वारा वकालत इसी दिशा में जताई गई प्रतिबद्धता है।
- सरकारी योजनाओं की भूमिका: प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना ने 88 करोड़ परिवारों को कोयला-आधारित रसोई ईंधन से LPG गैस कनेक्शन की ओर आगे बढ़ने में मदद की है।
- उजाला योजना के तहत 367 मिलियन से अधिक LED बल्ब वितरित किये गए हैं, जिससे प्रतिवर्ष 38.6 मिलियन टन CO2 की कमी हुई है।
- इन दो और ऐसी अन्य पहलों ने भारत को वर्ष 2005 और वर्ष 2016 के बीच अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता में 24% की कमी लाने में मदद की है।
- निम्न-कार्बन संक्रमण में उद्योगों की भूमिका: भारत में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र पहले से ही जलवायु चुनौती से निपटने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, जहाँ ग्राहकों और निवेशकों की बढ़ती जागरूकता के साथ-साथ बढ़ती नियामक और प्रकटीकरण आवश्यकताओं से सहायता मिल रही है।
- उदाहरण के लिये, भारतीय सीमेंट उद्योग ने अग्रणी उपाय किये हैं और विश्व स्तर पर सर्वाधिक क्षेत्रवार निम्न-कार्बन स्तर पर पहुँचने की अभूतपूर्ण उपलब्धि हासिल की है।
आगे की राह
- नवीकरणीय ऊर्जा मिश्रण: पवन और सूर्य के प्रकाश जैसे स्रोतों की हर जगह चौबीसों घंटे आपूर्ति संभव नहीं है, इसलिये सौर, पवन और हाइड्रोजन आधारित ऊर्जा के विविध ऊर्जा मिश्रण की ओर आगे बढ़ना विवेकपूर्ण होगा।
- भारत को निकट और तत्काल भविष्य में अवसंरचना क्षेत्र में निवेश, क्षमता निर्माण और बेहतर ग्रिड एकीकरण जैसे क्षेत्रों में कार्य करना चाहिये।
- निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करना: चूँकि उद्योग भी GHG उत्सर्जन में योगदान करते हैं, इसलिये किसी भी जलवायु कार्रवाई को औद्योगिक और वाणिज्यिक गतिविधियों से उत्पन्न होने वाले उत्सर्जन को कम करने या समाप्त करने की आवश्यकता होगी।
- इलेक्ट्रिक वाहन को प्रोत्साहन: EVs समग्र ऊर्जा सुरक्षा स्थिति में सुधार लाने में योगदान करेंगे क्योंकि देश कच्चे तेल की अपनी कुल आवश्यकता का 80% से अधिक आयात करता है, जिसका मूल्य लगभग 100 बिलियन डॉलर है।
- EVs में R&D को बढ़ावा देना: भारतीय बाज़ार को स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के लिये प्रोत्साहन की आवश्यकता है, जो रणनीतिक और आर्थिक दोनों दृष्टिकोण से भारत के अनुकूल हों।
- चूँकि कीमतों को कम करने के लिये स्थानीय अनुसंधान एवं विकास में निवेश आवश्यक है, इसलिये स्थानीय विश्वविद्यालयों और मौजूदा औद्योगिक केंद्रों का सहयोग लेना उपयुक्त होगा।
निष्कर्ष
यदि तापमान में वृद्धि को पेरिस समझौते की सीमाओं के भीतर रखना है तो भविष्य के संचयी उत्सर्जन को शेष कार्बन बजट तक सीमित करते हुए वैश्विक शुद्ध-शून्य तक पहुँचने हेतु निर्णायक रूप से कार्य करने की आवश्यकता है।