उत्तर :
लिंकन के अनुसार, प्रतिकूलता किसी व्यक्ति के चरित्र को आँकने का सही पैरामीटर नहीं है। उनके अनुसार किसी व्यक्ति का आंतरिक चरित्र ऐसे मामलों में प्रकट होता है जहाँ प्रतिकूलता के समय उसे अधिकार प्राप्त हों और उसने उनके अनुरूप कदम उठाए हों।
- प्रतिकूलता की स्थिति में विकल्पों की कमी एक सामन्य स्थिति है। प्रतिकूलता की स्थिति में सबसे अधिक दबाव की स्थिति उससे बाहर निकलने की होती है। दूसरी तरफ, जिनके पास सत्ता होती है उनके पास विकल्पों के चयन की स्वतंत्रता होती है। इससे उसे सही और गलत में से एक विकल्प चुनना होता है जिससे उसके चरित्र का परीक्षण आसान हो जाता है।
- यही कारण है कि ऐतिहासिक रूप से अधिकार-संपन्न लोगों ने दुनिया पर गहरा प्रभाव छोड़ा। उदाहरण के तौर पर औपनिवेशिक काल में तीसरी दुनिया के देशों ने औपनिवेशिक शक्तियों के खिलाफ प्रतिरोध किया किंतु अपनी स्वतंत्रता के बाद अधिकतर देशों में तानाशाही का विकास हुआ। इसका एकमात्र अपवाद भारत है जिसने अपने उन सिद्धांतों को आज भी उसी उत्साह एवं तन्मयता से बनाए रखा है जिनके साथ उसने स्वतंत्रता संघर्ष किया था।
- अधिकारप्राप्त व्यक्ति अक्सर अपनी शक्तियों का प्रयोग आत्मसेवा या बुराई के लिये करते हैं और वे अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने एवं अपने स्वयं के स्वार्थों को पूरा करने के लिये उनका दुरुपयोग करते हैं। उदाहरण के तौर पर हिटलर के पास अपार शक्तियाँ व जनसमर्थन था जिसका उपयोग उसने व्यक्तिगत हित व जनसंहार के लिये किया।
- लिंकन का उपर्युक्त वाक्य इस ओर ध्यान आकृष्ट कराता है कि उचित नैतिकता के अभाव में कोई व्यक्ति शक्ति पाते ही आसानी से भ्रष्ट हो सकता है। वर्तमान समय में भ्रष्टाचार का मुख्य कारण यह है कि वह विवेकाधीन शक्तियों के दुरुपयोग को बढ़ावा देता है।
वर्तमान समाज में यह तर्क समाज के उन व्यक्तियों हेतु महत्त्वपूर्ण सबक है जो कि जनता के प्रति उत्तरदायी हैं। लोगों को शक्ति एवं अधिकार इसलिये सौंपे जाते हैं ताकि वे ज़रूरतमंदों के हित में काम कर सकें। इस मायने में देखें तो सत्ता व्यक्ति को मम्मर गद्दाफी या नेल्सन मंडेला बनाती है।