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प्रश्न :
प्रश्न. “दोनों विश्व युद्धों के बीच लोकतांत्रिक राज्य प्रणाली के लिये एक गंभीर चुनौती उत्पन्न हुई।” इस कथन का मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)
07 Feb, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- दो विश्व युद्धों के मध्य युद्ध काल का संक्षिप्त विवरण दीजिये।
- प्रथम विश्व युद्ध के बाद लोकतांत्रिक राजव्यवस्था के पतन के कारणों का उल्लेख कीजिये।
- 1919-39 के बीच प्रजातांत्रिक राज्य व्यवस्था के समक्ष उपस्थित चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
- द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत का उल्लेख करते हुए उत्तर को समाप्त कीजिये।
परिचय:
दो विश्व युद्धों के बीच की अवधि अपेक्षाकृत कम थी, फिर भी दुनिया भर में कई महत्त्वपूर्ण सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तन हुए।
प्रथम विश्व युद्ध के अंत में राजनीतिक रूप से साम्यवाद के उदय, रूस में अक्तूबर क्रांति और रूसी गृहयुद्ध जैसी घटनाएँ घटित हुईं।
लोकतांत्रिक व्यवस्था के पतन का कारण:
महामंदी के कारण उत्पन्न आर्थिक कठिनाई की स्थितियों ने दुनिया भर में सामाजिक अशांति पैदा कर दी, जिससे फासीवाद की तरफ रुझान बढ़ा और कई मामलों में लोकतांत्रिक सरकारों का पतन हुआ।
1930 के दशक में राष्ट्र संघ के टूटने, आक्रामक तानाशाही के उदय ने पूरे विश्व में लोकतंत्र के लिये गंभीर खतरा पैदा कर दिया।
लोकतांत्रिक राजव्यवस्था को चुनौती:
- फासीवाद का उदय: इटली में फासीवाद का उदय प्रथम विश्व युद्ध के दौरान शुरू हुआ, जब बेनिटो मुसोलिनी और अन्य कट्टरपंथियों ने एक राजनीतिक समूह (जिसे फासी कहा जाता है) का गठन किया।
- इस समय इटली में तानाशाही थी ; वहाँ के लोग अपनी स्वतंत्रता और सीमित अधिकारों के कारण उत्पीड़ित थे।
- जर्मनी में नाज़ीवाद का उदय: वर्साय की संधि भी अर्थव्यवस्था के लिये एक बड़ा झटका थी, इसलिये देश में लोकतंत्र की स्थापना नहीं हो सकी।
- हिटलर और नाज़ियों ने लोकतंत्र को खत्म करने और जर्मनी में तानाशाही की नींव रखने में सफलता हासिल की थी।
- यहूदियों का उत्पीड़न: नाज़ियों के सत्ता में आने अपनी यहूदी विरोधी विचारधारा तथा नीतियों को लागू कर यहूदी समुदाय को बहुत सताया।
- नरसंहार में नाज़ियों के निर्देशन में लगभग छह मिलियन यूरोपीय यहूदियों की हत्या कर दी गई थी, जिसे बाद में प्रलय के रूप में जाना जाने लगा।
- 1936 में यहूदियों को सभी पेशेवर नौकरियों से प्रतिबंधित कर दिया गया था, जिससे उन्हें शिक्षा, राजनीति, उच्च शिक्षा और उद्योग में भाग लेने से प्रभावी रूप से रोक दिया गया था।
- स्पेनिश गृहयुद्ध: स्पेनिश गृहयुद्ध (1936-39) स्पेन की रिपब्लिकन सरकार के खिलाफ एक सैन्य विद्रोह था, जिसे देश के भीतर रूढ़िवादी तत्त्वों का समर्थन प्राप्त था।
- आयरन गार्ड: 1927 की अवधि में द्वितीय विश्व युद्ध के शुरुआती भाग में रोमानिया में एक दूरदर्शी आंदोलन और राजनीतिक दल को आयरन गार्ड नाम दिया गया। यह अति-राष्ट्रवादी, यहूदी-विरोधी, साम्यवाद-विरोधी, पूंजीवाद-विरोधी था और रूढ़िवादी ईसाई धर्म को बढ़ावा देता था।
यूरोप से परे फासीवाद:
- फासीवाद ने यूरोप के बाहर भी अपने प्रभाव का विस्तार किया, विशेष रूप से पूर्वी एशिया, मध्य पूर्व और दक्षिण अमेरिका में।
- चीन में वांग जिंगवेई के काई-त्सु पाई (पुनर्गठन) गुट कुओमिन्तांग (चीन की राष्ट्रवादी पार्टी) के गुट ने 1930 के दशक के अंत में नाज़ीवाद का समर्थन किया।
- जापान में सेगो नाकानो द्वारा तोहोकाई नामक एक नाज़ी आंदोलन का गठन किया गया था।
- इराक का अल-मुथन्ना क्लब एक अखिल अरब आंदोलन था जिसने नाज़ीवाद का समर्थन किया और कैबिनेट मंत्री सैब शौकत के माध्यम से इराकी सरकार में अपने प्रभाव का प्रयोग किया, जिन्होंने एक अर्द्धसैनिक युवा आंदोलन का गठन किया।
औपनिवेशिक शक्तियों के रूप में जापान का उदय: जापान औद्योगीकरण और सैन्यीकरण के दौर से गुज़र रहा था, मीजी बहाली सबसे तेज़ आधुनिकीकरण था और इसने जापान के एक महान शक्ति के रूप में उभरने तथा एक औपनिवेशिक साम्राज्य की स्थापना में योगदान दिया।
निष्कर्ष:
- प्रथम विश्व युद्ध के बाद राष्ट्र संघ के प्रयास शांति बनाए रखने में विफल रहे।
- आखिरकार, 1939 में हिटलर के पोलैंड पर आक्रमण ने ग्रेट ब्रिटेन और फ्राँस को जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा करने के लिये प्रेरित किया, जिससे द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत हुई।
- बाद के छह वर्षों बाद हुए द्वितीय विश्वयुद्ध में बहुत अधिक संख्या में जानें गईं और दुनिया भर में किसी भी पिछले युद्ध की तुलना में अधिक भूमि और संपत्ति नष्ट हुई।
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