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प्रश्न :
प्रश्न. सरकार की संसदीय प्रणाली के गुण और दोष क्या हैं? भारत में संसदीय प्रणाली को अपनाने के क्या कारण थे? (250 शब्द)
04 Feb, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- संसदीय प्रणाली को परिभाषित कीजिये।
- सरकार की संसदीय प्रणाली के गुणों और दोषों की चर्चा कीजिये।
- भारत में संसदीय प्रणाली को अपनाने के कारणों को सूचीबद्ध कीजिये।
सरकार की संसदीय प्रणाली वह है जिसमें कार्यपालिका अपनी नीतियों और कृत्यों के लिये विधायिका के प्रति उत्तरदायी होती है। भारत का संविधान केंद्र और राज्यों दोनों में, सरकार की संसदीय प्रणाली का प्रावधान करता है।
सरकार की संसदीय प्रणाली के निम्नलिखित गुण हैं:
- विधायिका और कार्यपालिका के बीच सामंजस्य
- संसदीय प्रणाली सरकार के विधायी और कार्यकारी अंगों के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंध एवं सहयोग सुनिश्चित करती है।
- एक प्रकार से कार्यपालिका विधायिका का एक भाग है और दोनों एक-दूसरे पर अन्योन्याश्रित हैं। परिणामत:, दोनों अंगों के मध्य विवाद और टकराव की संभावना कम होती है।
- उत्तरदायी सरकार
- मंत्री अपने विभिन्न कृत्यों के लिये संसद के प्रति उत्तरदायी होते हैं।
- संसद मंत्रियों को प्रश्नकाल, स्थगन प्रस्ताव, अविश्वास प्रस्ताव आदि जैसे विभिन्न उपकरणों के माध्यम से नियंत्रित करती है।
- निरंकुशता पर लगाम
- इस प्रणाली के तहत कार्यकारी अधिकार व्यक्तियों के समूह अर्थात् मंत्रिपरिषद में निहित होते हैं न कि एक व्यक्ति में। सत्ता का यह विस्तार कार्यपालिका की निरंकुश प्रवृत्तियों पर रोक लगाता है।
- वैकल्पिक सरकार
- यदि सत्ता पक्ष बहुमत खो देता है, तो राज्य प्रमुख विपक्षी दल को सरकार बनाने के लिये आमंत्रित कर सकता है। इसका अर्थ है कि नवीन निर्वाचन के बिना वैकल्पिक सरकार बनाई जा सकती है।
- व्यापक प्रतिनिधित्व
- संसदीय प्रणाली में कार्यपालिका व्यक्तियों के एक समूह (अर्थात्, मंत्री जो जनता के प्रतिनिधि होते हैं) से निर्मित होती है। इसलिये सरकार में सभी वर्गों और क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व प्रदान करना संभव है।
उपरोक्त गुणों के बावजूद संसदीय प्रणाली के निम्नलिखित दोष हैं:
- अस्थिर सरकार: संसदीय प्रणाली एक स्थिर सरकार प्रदान नहीं करती है। सरकार का सत्ता में बने रहना विधायिका की दया पर निर्भर करता है। राजनीतिक दलबदल या बहुदलीय गठबंधन सरकार को अस्थिर कर सकती हैं।
- नीतियों में निरंतरता नहीं: दीर्घकालिक नीतियों के निर्माण और कार्यान्वयन के लिये संसदीय प्रणाली अनुकूल नहीं है। आमतौर पर सत्ता पक्ष में बदलाव के साथ ही सरकार की नीतियों में बदलाव हो जाता है।
- मंत्रिमंडल की तानाशाही: यदि सत्ता पक्ष को संसद में पूर्ण बहुमत प्राप्त हो जाता है, तो मंत्रिमंडल निरंकुशता के साथ व्यवहार करने लगती है।
- शक्तियों के पृथक्करण के विरुद्ध: संसदीय प्रणाली में विधायिका और कार्यपालिका अविभाज्य होती हैं। मंत्रिमंडल विधायिका के साथ-साथ कार्यपालिका के नेता के रूप में भी कार्य करता है। इसलिये सरकार की संपूर्ण प्रणाली शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत की भावना के विरुद्ध जाती है।
- नौसिखियों की सरकार: संसदीय प्रणाली प्रशासनिक दक्षता के लिये अनुकूल नहीं है क्योंकि मंत्री अपने क्षेत्रों के विशेषज्ञ नहीं हहोते हैं। मंत्रियों के चयन में प्रधानमंत्री के पास सीमित विकल्प होते हैं, प्रधानमंत्री का चुनाव केवल संसद के सदस्यों तक ही सीमित होता है और उसके द्वारा बाहरी प्रतिभाओं को शामिल नहीं किया जा सकता है।
संसदीय प्रणाली को अपनाने के कारण
संविधान सभा में अध्यक्षात्मक प्रणाली शासन के पक्ष में एक दलील दी गई थी। लेकिन संविधान निर्माताओं ने निम्नलिखित कारणों के चलते ब्रिटिश संसदीय प्रणाली को प्राथमिकता दी:
- प्रणाली से परिचित: संविधान निर्माता कुछ सीमा तक संसदीय प्रणाली से परिचित थे क्योंकि यह ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में लागू थी।
- अधिक उत्तरदायित्व को प्राथमिकता: संविधान सभा एक ऐसी प्रणाली को अपनाना चाहती थी जो स्थिर और उत्तरदायी दोनों हो। अमेरिकी प्रणाली अधिक स्थिरता देती है जबकि ब्रिटिश प्रणाली अधिक उत्तरदायित्व, लेकिन कम स्थिरता प्रदान करती है। संविधान के मसौदे में ऐसी प्रणाली की सिफारिश की गई जो अधिक उत्तरदायी हो।
- विधायी-कार्यकारी संघर्ष से बचने की आवश्यकता: संविधान के निर्माता विधायिका और कार्यपालिका के बीच टकराव की स्थिति से बचना चाहते थे जो अमेरिकी प्रणाली में सामान्य था।
- भारतीय समाज की प्रकृति: संसदीय प्रणाली सरकार में विभिन्न वर्गों, हितों और क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व देने के लिये अधिक संभावना प्रदान करती है। यह लोगों के बीच एक राष्ट्रीय भावना को बढ़ावा देती है और एक अखंड भारत का निर्माण करती है।
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