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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ‘उत्तर-आधुनिक कृषि' से आप क्या समझते हैं ? वर्तमान समय में इसकी आवश्यकता और इसे प्राप्त करने की रणनीति पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    02 Feb, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • 'उत्तर-आधुनिक कृषि' के बारे में बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • वर्तमान समय में इसकी आवश्यकता और इसे प्राप्त करने की रणनीति पर चर्चा कीजिये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय

    कृषि के लिये उत्तर आधुनिक दृष्टिकोण संवहनीयता, अर्थात् संवहनीय कृषि (Sustainable Agriculture- SA) पर आधारित है । यह आधुनिकतम प्रौद्योगिकी का उपयोग करता है और आधुनिक प्रबंधन पद्धतियों को एकीकृत करता है। इसके साथ ही, यह उच्च आर्थिक मूल्य के कृषि उत्पादों के उत्पादन से भी संलग्न है।

    कृषि के लिये उत्तर आधुनिक दृष्टिकोण की आवश्यकता

    • हरित क्रांति के नकारात्मक परिणाम: विज्ञान-प्रेरित प्रौद्योगिकियों पर आधारित और हरित क्रांति की प्रतीकात्मकता से निरुपित आधुनिक कृषि अब एक दोधारी तलवार की तरह देखी जाती है।
      • खाद्यान्न उत्पादन को तीन गुना करने के प्रयास में कृषि रसायनों के बढ़ते अनुप्रयोग और जीवाश्म ईंधन ऊर्जा पर बढ़ती निर्भरता के साथ भारत में नाइट्रोजन उर्वरक का उपयोग 10 गुना बढ़ गया।
      • देश में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 18% के लिये कृषि क्षेत्र उत्तरदायी है।
      • तेज़ी से घटते भूमिगत जलवाही स्तर (groundwater aquifers) और 35% भूमि क्षरण से त्रस्त हमारी मृदा में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा एशिया में न्यूनतम है।
      • गेहूँ और चावल की एकल कृषि (monocultures) पारंपरिक कृषि प्रणालियों की विविधता को विस्थापित कर रही है।
      • आनुवंशिक समरूपता जैविक और अजैविक तनावों के प्रति संवेदनशीलता की वृद्धि के साथ पोषण के लिये अहितकर रही है।
    • संवहनीय कृषि की संभावनाएँ: चूँकि उत्तर आधुनिक कृषि, कृषि की संवहनीयता की अवधारणा पर आधारित है; यह एकल (Monocultural) कृषि उत्पादन मॉडल का प्रतिकार करती है।
      • इसका सार दूसरी हरित क्रांति या सदाबहार क्रांति (Evergreen Revolution) के आरंभ में निहित है।
      • वर्तमान में कम भूमि, जल और ऊर्जा के उपयोग साथ कृषि उत्पादन बढ़ाने की विभिन्न कृषि प्रणालियाँ प्रचलित हैं। उनकी प्रौद्योगिकियाँ मृदा उर्वरता की पुनर्बहाली, जल की गुणवत्ता की पुनःप्राप्ति, जैव विविधता में सुधार और अंतर-पीढ़ीगत समता को बनाए रखते हुए उत्पादकता में वृद्धि करती हैं।
      • राष्ट्रीय संवहनीय कृषि मिशन (National Mission on Sustainable Agriculture), जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (National Action Plan on Climate Change) के आठ मिशनों में से एक है जो संवहनीय कृषि की ओर आगे बढ़ने का लक्ष्य रखता है।

    उत्तर आधुनिक कृषि के लिये रणनीति

    • कृषि-वानिकी (Agroforestry): पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण, कार्बन भंडारण, जैव विविधता संरक्षण और मृदा एवं जल संरक्षण के माध्यम कृषि-वानिकी की 25 मिलियन हेक्टेयर में विस्तृत वृक्ष-आधारित कृषि प्रणालियाँ पारिस्थितिकी को समृद्ध करते हुए फल, चारा, ईंधन, फाइबर और लकड़ी प्रदान करती हैं।
      • यह फसल विफलता के विरुद्ध आय, पोषण और बीमा की वृद्धि कर कृषक-प्रत्यास्थता को बढ़ाता है।
    • संरक्षण कृषि (Conservation Agriculture- CA): संरक्षण कृषि मुख्य रूप से भारत के गेहूँ-चावल क्षेत्र में लगभग दो मिलियन हेक्टेयर भूमि-क्षेत्र में प्रचलित है। यह जल, पोषक तत्त्वों और ऊर्जा के न्यून दक्षता उपयोग को संबोधित करता है।
      • इसके अभ्यासों में शून्य जुताई, लेजर लेवलिंग, फसल अनुक्रमण, परिशुद्ध सिंचाई (precision irrigation), तनाव-सहिष्णु एवं जलवायु-प्रत्यास्थी किस्मों का उपयोग और फसल अवशेषों को जलाने के बजाय उन्हें बनाए रखना शामिल है।
      • हालाँकि, वर्षा-सिंचित क्षेत्रों में संरक्षण कृषि को अपनाया जाना अभी शेष है।
    • शून्य-बजट प्राकृतिक खेती: इस विधि में कृषि लागत जैसे कि उर्वरक, कीटनाशक और गहन सिंचाई की कोई आवश्यकता नहीं होती है। जिससे कृषि लागत में आश्चर्यजनक रूप से गिरावट आती है, इसलिये इसे ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग का नाम दिया गया है। इस विधि के अंतर्गत किसी भी फसल का उत्पादन करने पर उसका लागत मूल्य शून्य (ज़ीरो) ही आता है। ZBNF के अंतर्गत घरेलू संसाधनों द्वारा विकसित प्राकृतिक खाद का इस्तेमाल किया जाता है जिससे किसानों को किसी भी फसल को उगाने में कम खर्चा आता है और कम लागत लगने के कारण उस फसल पर किसानों को अधिक लाभ प्राप्त होता है।
      • आंध्र प्रदेश वर्ष 2024 तक 80 लाख हेक्टेयर भूमि-क्षेत्र में 60 लाख किसानों द्वारा ZBNF अपनाने हेतु प्रोत्साहित देने के लक्ष्य के साथ अग्रणी भूमिका में है।
      • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अंतर्गत ZBNF के विज्ञान पर प्रयोग चल रहा है।
    • जैविक खेती: इसका अभ्यास निवल कृषित क्षेत्र के केवल 2% भाग में हो रहा है। राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (National Programme for Organic Production- NPOP) 70% कवरेज के लिये उत्तरदायी है।
      • वर्ष 2015 में शुरू की गई ‘परंपरागत कृषि विकास योजना’ के बावजूद जैविक खेती की दिशा में प्रगति धीमी ही रही है।
      • यद्यपि सिक्किम को वर्ष 2016 में एक जैविक राज्य घोषित किया गया था।
    • चावल गहनता प्रणाली: यह कम से अधिक की प्राप्ति का विशिष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है। यह प्रणाली पौधों और मृदा के जैविक और आनुवंशिक क्षमता का उपयोग करती है और जल के उपयोग में 25-50% की कमी, तुलनात्मक रूप से 30-40% कम कृषि रसायन और 80-90% कम बीज के साथ चावल की पैदावार को 20-50% तक बढ़ाने के लिये जानी जाती है।
      • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन ने SRI के अंतर्गत पाँच मिलियन हेक्टेयर कृषि-क्षेत्र को लाने की परिकल्पना की थी। व्यापक अनुमानों में SRI के कवरेज को लगभग आधा मिलियन हेक्टेयर पाया गया है।
    • अन्य संवहनीय कृषि अभ्यासों में जलवायु-कुशल कृषि, पर्माकल्चर, पुनर्योजी कृषि (Regenerative Agriculture), बायोडायनामिक खेती, ऊर्ध्वाधर खेती और हाइड्रोपोनिक्स शामिल हैं, हालाँकि इनके अभ्यास अभी छोटे पैमाने पर ही चल रहे हैं।

    निष्कर्ष

    प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन, वनों की कटाई और कृषि की असंवहनीय गहनता पशुजन्य (zoonotic) रोगों को बढ़ावा देने वाले पर्यावरणीय चालक हैं। इस प्रकार, उत्तर कोविड समय में संसाधनों के संरक्षण और इनकी पुनःपूर्ति के लिये उत्तर आधुनिक कृषि को अपनाये जाने की आवश्यकता है।

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