यंग बंगाल और ब्रह्म समाज के विशेष संदर्भ में सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों के उत्थान और विकास को रेखांकित कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- संक्षेप में सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों के उदय का उल्लेख करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- यंग बंगाल और ब्रह्म समाज के योगदान का उल्लेख कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
19वीं शताब्दी के धार्मिक और सामाजिक सुधार आंदोलनों का भारतीय इतिहास में विशेष स्थान है। ये आंदोलन बहुमुखी स्वरूप और व्यापकता लिये हुए थे, इसी कारण इन आंदोलनों ने देश में व्याप्त तत्कालीन जड़ता को समाप्त करने और आम जन-जीवन को बदलने का प्रयास किया। इसके पथ प्रदर्शकों ने जहाँ एक ओर धार्मिक एवं सामाजिक सुधाराें का आह्वान किया, वहीं दूसरी ओर, भारत के अतीत को उजागर करके भारतवासियों के मन में आत्मसम्मान एवं आत्मगौरव जगाने का प्रयास किया। इन आंदोलनों के पीछे दो शक्तियाँ कार्य कर रही थीं; प्रथम, अंग्रेज़ी शिक्षा और संस्कृति के प्रभाव से अवतरित हुई थी तो दूसरी, ईसाई मिशनरियों के कार्यों के विरुद्ध तीखी प्रतिक्रिया के रूप में हिंदुओं में जागृत हुई थी।
ब्रह्म समाज और यंग बंगाल आंदोलन का योगदान:
- राजा राम मोहन राय ने वर्ष 1828 में ब्रह्म सभा की स्थापना की जिसे बाद में ब्रह्म समाज का नाम दिया गया।
- यह पुरोहिती, अनुष्ठानों और बलि आदि के खिलाफ था।
- यह प्रार्थना, ध्यान और शास्त्रों को पढ़ने पर केंद्रित था। यह सभी धर्मों की एकता में विश्वास करता था।
- यह आधुनिक भारत में पहला बौद्धिक सुधार आंदोलन था। इससे भारत में तर्कवाद और प्रबोधन का उदय हुआ जिसने अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रवादी आंदोलन में योगदान दिया।
- यह आधुनिक भारत के सभी सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक आंदोलनों का अग्रदूत था। यह वर्ष 1866 में दो भागों में विभाजित हो गया, अर्थात् भारत के ब्रह्म समाज का नेतृत्व केशव चन्द्र सेन ने और आदि ब्रह्म समाज का नेतृत्व देबेंद्रनाथ टैगोर ने किया।
यंग बंगाल और हेनरी लुई विवियन डेरोजियो:
- उनका प्रवेश कलकत्ता के हिंदू कॉलेज में एक शिक्षक के रूप में हुआ।
- डेरोजियो ने अपने शिक्षण के माध्यम से साहित्य, दर्शन, इतिहास और विज्ञान पर बहस व चर्चा के लिये एक संघ के माध्यम से मौलिक विचारों को बढ़ावा दिया।
- उन्होंने अपने अनुयायियों और छात्रों को उनके अधिकारों की मांग हेतु प्रेरित किया।
- डेरोजियो और उनके प्रसिद्ध अनुयायी, जिन्हें डेर्ज़ियन और यंग बंगाल के नाम से जाना जाता है, तेजस्वी देशभक्त थे।
- उन्होंने फ्रांसीसी क्रांति (1789 ई.) के आदर्शों और ब्रिटेन की उदारवादी सोच को संजोया। 22 वर्ष की कम उम्र में डेरोजियो की हैजा से मौत हो गई थी ।
निष्कर्ष:
कट्टरता, अंधविश्वास, अस्पृश्यता, पर्दा प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह, सामाजिक असमानता और निरक्षरता जैसी सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध लड़ने के अलावा सामाजिक एवं धार्मिक सुधार आंदोलनों ने औपनिवेशिक शासन द्वारा बनाए गए नस्लवाद से निपटने में भी मदद की।
इससे अंततः ब्रिटिश सरकार के खिलाफ राष्ट्रवाद का विकास हुआ।