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प्रश्न :
प्रश्न. भारत ने पारंपरिक रूप से आपदा प्रबंधन के लिये प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण अपनाया है। क्या आपको लगता है कि हमें अपनी परंपरागत आपदा प्रबंधन नीति से एक नवीन नीति की ओर बढ़ने की आवश्यकता है?
28 Jan, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आपदा प्रबंधनउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- ‘आपदा’ और ‘आपदा प्रबंधन’ की संक्षिप्त चर्चा कीजिये।
- आपदा प्रबंधन के प्रतिक्रियाशील दृष्टिकोण के दुष्प्रभावों की चर्चा कीजिये।
- तत्पश्चात् बताइये कि कैसे आपदा प्रबंधन को अधिक समावेशी बनाया जा सकता है।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
आपदा समुदाय या समाज के गतिविधियों को प्रभावित करने वाला एक गंभीर व्यवधान है जिसमें व्यापक स्तर पर मानव, अवसंरचना, आर्थिक तथा पर्यावरणीय क्षति जैसे प्रभाव शामिल हैं, जो प्रभावित समुदाय या समाज को अपने संसाधनों का उपयोग करने की क्षमता से वंचित करते हैं। मुख्य रूप से आपदाओं को प्राकृतिक संकटों के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो कभी-कभी मानव द्वारा भी प्रेरित होते हैं या इन दोनों के संयोजन के परिणामस्वरूप घटित होते हैं। वहीं आपदा प्रबंधन को आपदाओं के प्रभाव में कमी लाने, आपात स्थिति के सभी मानवीय पहलुओं यथा तत्परता, प्रतिक्रिया और संसाधनों के पुनर्प्राप्ति के लिये किये गए उपायों तथा दायित्वों के संयोजन एवं प्रबंधन के रूप में परिभाषित किया जाता है।
भारत में आपदा प्रबंधन का पारंपरिक दृष्टिकोण आपदा के पश्चात् राहत व पुनर्वास आदि क्रिया पर केंद्रित है, जिसे प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण के रूप में जाना जाता है। आपदा प्रबंधन दृष्टिकोण के लिये प्रतिक्रियाशील दृष्टिकोण की प्रमुख हानियाँ निम्नलिखित हैं:
- जान व माल की व्यापक क्षति: प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण, राहत एवं तत्काल पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित करता है एवं निवारक आपदा न्यूनीकरण नीतियों की उपेक्षा करता है। इस प्रकार ऐसे दृष्टिकोण के पालन से जान और माल की क्षति अधिक मात्रा में होती है।
- विभिन्न प्रकार की आपदाओं के लिये अनुकूलन रणनीति की अनुपस्थिति: विभिन्न प्रकार की आपदाओं के लिये प्रतिक्रिया के उपाय भिन्न हो सकते हैं, जो आपदा प्रबंधन के लिये प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण में उपयुक्त रूप से शामिल करना संभव नहीं है। प्रतिक्रियाशील दृष्टिकोण ऐसा दृष्टिकोण है, जो एक रूप में सभी आपदाओं के प्रबंधन के लिये सभी दृष्टिकोणों को शामिल करता है।
- प्रतिक्रियाशील दृष्टिकोण में प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों की अनुपस्थिति: आपदा में देरी प्रतिक्रिया का कारण बनती है। प्रभावी संस्थानों के माध्यम से समय पर विश्वसनीय सूचना का प्रावधान, समुदाय एवं सरकारी मशीनरी के जोखिम को कम करने और खतरे का सामना करने के लिये पर्याप्त रूप से तैयार रहने की अनुमति प्रदान करता है।
आपदा प्रबंधन की वर्तमान स्थिति एक ‘पोस्टमार्टम’ दृष्टिकोण का अनुसरण करती है एवं आपदा जोखिम में कमी की रणनीतियों को कम महत्त्व देती है, जिसके सरल निवारक उपायों को अपनाने से हजारों लोगों की जान बचाई जा सकती है।
वर्तमान समय में इन निवारक उपायों का अनुसरण करके हम अपनी परंपरागत आपदा प्रबंधन की पद्धति को बदल सकते हैं और इसे और बेहतर बना सकते हैं।
आपदा जोखिम में कमी की रणनीतियों और ‘रोकथाम की संस्कृति’ में अनुकूलता लाने हेतु उन गतिविधियों की पहचान की जानी चाहिये तथा आपदा से संबंधित जान-माल के हानि की बढ़ती घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिये उपयुक्त रूप से उन्हें अपनाया जाना चाहिये।
- ‘सतत् विकास के संदर्भ में आपदा सुभेद्यता, संकटों और पूरे समाज में अवहनीय आपदा प्रभावों को कम करने के लिये नीतियों, रणनीतियों तथा प्रथाओं का व्यवस्थित विकास और अनुप्रयोग शामिल होना चाहिये।’ इसमें खतरों की संभावना और समुदाय द्वारा सामना की गई सुभेद्यता के विश्लेषण का आकलन शामिल करना चाहिये।
- हालाँकि इन सभी प्रयासों के लिये, समाजों में ‘सुरक्षा संस्कृति’ का प्रसार किया जाना चाहिये। ऐसे में शिक्षा, प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण जैसे इनपुट महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- शोध एवं पिछले अनुभवों से अर्जित ज्ञान के साथ समुदाय के पास उपलब्ध पारंपरिक ज्ञान का भी उपयोग किया जाना चाहिये।
यह समझने की आवश्यकता है कि इस तरह की तैयारियाँ एकमात्र समाधान नहीं हो सकती हैं। हालाँकि यह एक सतत् प्रक्रिया है। आपदाओं को उन घटनाओं के रूप में संदर्भित नहीं किया जाना चाहिये, जिन्हें आपातकालीन प्रतिक्रिया सेवाओं के माध्यम से प्रबंधित किया जाना है। अत: विशेष रूप से विकास प्रक्रिया में प्रमुख मुद्दों की रोकथाम तथा पहचान की संस्कृति को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। इस प्रकार समग्र मानव विकास के उद्देश्य से आपदा प्रबंधन को एक रणनीति के रूप में तैयार किया जाना चाहिये, जो सतत् विकास लक्ष्यों और नीतियों तथा प्रथाओं को एकीकृत करते हैं, जो सुभेद्यता की बजाय लोगों की क्षमता में वृद्धि करते हैं।
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