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प्रश्न :
प्रश्न. भारत- प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन की महत्त्वाकांक्षाओं का मुकाबला करना नई त्रि - राष्ट्र साझेदारी AUKUS का उद्देश्य है । क्या यह इस क्षेत्र में मौजूदा साझेदारी का स्थान लेने जा रहा है ? वर्तमान परिदृश्य में , AUKUS की शक्ति और प्रभाव की विवेचना कीजिये ।
18 Jan, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंधउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- संक्षेप में त्रि-राष्ट्र साझेदारी AUKUS की व्याख्या करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- चर्चा कीजिये कि क्या यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्वाड जैसी मौजूदा साझेदारियों का स्थान लेगा।
- वर्तमान परिदृश्य में AUKUS की शक्ति और प्रभाव पर चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका ने हाल ही में एक त्रिपक्षीय सुरक्षा समझौते की घोषणा की है, जिसे ‘ऑकस’ (AUKUS) का संक्षिप्त नाम दिया गया है। हालाँकि फ्राँस ने इस परमाणु गठबंधन का विरोध किया है।
इस गठबंधन की घोषणा करते हुए चीन का नाम लिये बिना अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा की कि "तेज़ी से उभर रहे खतरों से निपटने के लिये" अमेरिका और ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया के साथ कृत्रिम बुद्धिमत्ता, साइबर-वारफेयर, क्वांटम कंप्यूटिंग एवं परमाणु पनडुब्बी निर्माण जैसे क्षेत्रों में खुफिया एवं उन्नत तकनीक साझा करेंगे।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र/QUAD पर प्रभाव
- इस बात की आशंका प्रकट की जा रही है कि ‘AUKUS’ अमेरिका-यूरोपीय संघ के संबंधों एवं उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) पर गहरा प्रभाव डाल सकता है और ‘इंडो-पैसिफिक’ क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन को कमज़ोर कर सकता है।
- आरंभिक प्रतिक्रिया के तौर पर फ्राँस ने संयुक्त राष्ट्र में ऑस्ट्रेलिया, फ्राँस और भारत के विदेश मंत्रियों की एक निर्धारित बैठक को रद्द कर दिया है।
- पिछले कुछ वर्षों से एक उभरती हुई हिंद-प्रशांत संरचना में यह त्रिपक्षीय संलग्नता एक महत्त्वपूर्ण तत्व बन गई थी। इस प्रकार, बैठक का रद्द किया जाना त्रिपक्षीय संलग्नता पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।
- अभी यह स्पष्ट नहीं है कि क्वाड और ‘AUKUS’ एक-दूसरे को सुदृढ़ करेंगे या परस्पर अनन्य बने रहेंगे।
- कुछ ऐसी मान्यताएँ भी हैं कि ‘एंग्लोस्फीयर राष्ट्रों’ यानी ‘आंग्ल प्रभाव क्षेत्र के राष्ट्रों’ (Anglosphere nations)—जो ब्रिटेन के साथ साझा सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक संबंध रखते हैं, के बीच एक-दूसरे को लेकर अधिक भरोसा है।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नेतृत्त्व के लिये अमेरिका के नए भागीदार:
भारत-अमेरिका सुरक्षा संबंधों की कुछ प्रमुख उपलब्धियाँ: वर्ष 2008 में भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर; वर्ष 2012 में रक्षा प्रौद्योगिकी और व्यापार पहल की शुरूआत; वर्ष 2016 में अमेरिकी काॅन्ग्रेस द्वारा भारत को ‘प्रमुख रक्षा सहयोगी’ का दर्जा प्रदान करना; भारत को टियर-1 का दर्जा प्रदान करना जो उसे उच्च-प्रौद्योगिकी वस्तुओं के निर्यात में सक्षम बनाता है; और वर्ष 2018 में दोनों देशों के बीच “2+2 वार्ता” की शुरूआत। वर्ष 2020 में चौथे तथा अंतिम ‘संस्थापक समझौते’ (Foundational Agreements) पर हस्ताक्षर के साथ यह माना गया कि दोनों देशों के बीच करीबी रक्षा संबंध के मार्ग की अंतिम बाधा भी दूर कर ली गई है।
लेकिन ‘AUKUS’ की स्थापना के साथ यह आशंका प्रबल हुई है कि संभवतः यह अमेरिकी नीति में पुनः परिवर्तन की शुरुआत है, जहाँ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नेतृत्व के लिये ऑस्ट्रेलिया के रूप में एक नए साथी की खोज की जा रही है।
आगे की राह
- सर्वप्रथम भारत को फ्राँस, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका को याद कराना होगा कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा में उनके साझा हित निहित हैं और आपसी झगड़े से इस बड़े लक्ष्य को कमज़ोर करने का खतरा है।
- दूसरा, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्रभावी निरोध के लिये भू-भाग की विशाल आवश्यकताओं को उजागर करना और यह ध्यान दिलाना कि ‘AUKUS’ द्वारा रेखांकित किये गए सभी क्षेत्रों (प्रभावी अंतर्जलीय क्षमताओं से लेकर कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम कंप्यूटिंग और साइबर वारफेयर तक) में उच्च प्रौद्योगिकी तथा रक्षा-औद्योगिक सहयोग के विकास हेतु अतिव्यापी गठबंधनों में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस और अन्य यूरोपीय देशों के लिये हिंद-प्रशांत भागीदारों के साथ सहयोग करने के पर्याप्त अवसर मौजूद हैं।
भारत के हित फ्राँस और यूरोप के साथ-साथ क्वाड और ‘एंग्लोस्फीयर राष्ट्रों’ के साथ भी गहन रणनीतिक सहयोग में निहित हैं। हिंद-प्रशांत गठबंधन में विभाजन को रोकने के लिये पश्चिम के साथ भारत के विविध संबंधों का पूर्ण लाभ उठाया जाना चाहिये।
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