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13 Jan, 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
‘‘व्यक्तिगत नैतिकता को सही काम करने के रास्ते में ना आने दीजिये।’’ -इसाक असिमोव (150 शब्द)उत्तर :
हमारी नैतिकता सही और गलत के व्यवहार या सिद्धांतों के मानक हैं जो हमने खुद के लिये गढ़े हैं। ये हमारे शिक्षाशास्त्र, सामाजिक प्रभाव, भावनात्मक अनुभवों और व्यक्तिगत मान्यताओं से प्राप्त होते हैं। हम इन आदर्शों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने के लिये स्वाभाविक रूप से प्रवृत्त रहते हैं और अगर हम अपने नैतिक मानकों के विपरीत कुछ भी करते हैं तो यह उस चीज़ के प्रति उपहास और अरुचि को उत्पन्न करता है।
हालाँकि, सभी व्यक्तियों को अपने नैतिक मानकों की सीमाओं के बारे में पता होना चाहिये क्योंकि यह सामाजिक नैतिकता या दूसरों के नैतिक सिद्धांतों के अनुरूप हो भी सकता है या नहीं भी हो सकता। ऐसी मान्यता उन सभी के जीवन में अधिक आवश्यक हो जाती है जिनके कार्यों का व्यापक प्रभाव दूसरों के जीवन और समाज पर पड़ता है, जैसे- सार्वजनिक सेवा में व्यक्तियों की तरह। इस प्रकार, स्वयं को ईमानदार निर्णयों और कार्यों के प्रति प्रतिबद्ध करने के लिये व्यक्तिगत आदर्शों और दूसरों के आदर्शों के बीच एक सामंजस्य बनाकर, व्यक्ति निम्नलिखित तरीके से स्थितियों का सामना कर सकता है:
- पूर्वाग्रह का मुद्दा: व्यक्तिगत नैतिक सिद्धांतों में हमारा विश्वास प्रछन्न रूप में पूर्वाग्रह हो सकता है। उदाहरण के लिये, पहले भारतीय समाज में अस्पृश्यता प्रचलित थी- जहाँ समाज के एक विशेष वर्ग को अपवित्र माना जाता था और उनके साथ भोजन करना या उनके संपर्क में आना दूसरों को नापाक करने जैसा माना जाता था। लोग इसे नैतिक मानते थे लेकिन वास्तव में, यह पूर्वाग्रह था।
- निजी और सार्वजनिक जीवन: हमारी नैतिकता हमारे जीवन को निजी क्षेत्र में नियंत्रित करती है। लेकिन किसी को सार्वजनिक जीवन में अपने कार्यों पर इसे नहीं थोपना चाहिये।
- व्यक्तिगत मान्यताओं और कर्त्तव्य का दायित्व: कभी-कभी जीवन में किसी का कर्त्तव्य व्यक्तिगत नैतिकता का उल्लंघन हो सकता है। इस तरह के संघर्ष में, हमें एक समझौताकारी समन्वय की आवश्यकता है और यह जानने की कि क्या करना सही है। उदाहरण के लिये, महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में बोअर युद्ध और प्रथम विश्व युद्ध के दौरान पीड़ितों की मदद के लिये एक एम्बुलेंस वाहिनी बनाई थी। ऐसा इसलिये नहीं था कि उन्हें ब्रिटिश कार्यों से सहानुभूति थी, बल्कि यह उनका कर्त्तव्य था कि वे ब्रिटिश भारतीय नागरिक के रूप में सेना की सहायता करें, हालाँकि इसमें उनकी व्यक्तिगत मान्यताओं से समझौता करना शामिल था।
- सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांतों को प्राथमिकता देना: कुछ मूल्य ऐसे हैं जो प्रकृति में सार्वभौमिक हैं और व्यक्तिगत नैतिकता की कीमत पर भी इनका पालन किया जाना चाहिये। इन मूल्यों में करुणा, परोपकारिता, सहानुभूति और सहिष्णुता शामिल हैं। इनमें से कुछ हमारे संविधान में प्रतिध्वनि पाते हैं, विशेष रूप से मौलिक कर्त्तव्यों में। इन मूल्यों को दो के बीच संघर्ष के मामले में, किसी की व्यक्तिगत नैतिकता की भावना से ऊपर रखा जाना चाहिये।
विभिन्न परिस्थितियों में किया गया कार्य सही है या नहीं, यह व्यक्ति से व्यक्ति के बीच उनके व्यक्तिपरक नैतिक मानकों के आधार पर भिन्न हो सकता है। हालाँकि, जब कोई निर्णय ऐसे मूल्यों के आधार पर लिया जाता है, जिसे किसी व्यक्ति द्वारा व्यक्तिगत रूप से धारण करने की उम्मीद की जाती है, तो ऐसे निर्णय/कार्य हमेशा सही और नैतिक रूप से उचित होते हैं।
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