उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में आपदा प्रबंधन की चुनौतियों के बारे में संक्षेप में लिखते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- प्रभावी आपदा प्रबंधन में पंचायती राज संस्था (पीआरआई) की भूमिका की चर्चा कीजिये।
- आगे की राह बताइये।
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भारत में आपदा प्रबंधन:
- आपदाओं के प्रति भेद्यता: भारत विश्व का 10वाँ सर्वाधिक आपदा-प्रवण देश है, जिसके 28 में से 27 राज्य और सभी सात केंद्रशासित प्रदेश सर्वाधिक भेद्य हैं।
- अक्षम मानक संचालन प्रक्रियाएँ: देश भर के कई स्थानों पर ‘मानक संचालन प्रक्रियाएँ’ (SOPs) लगभग अस्तित्त्व में ही नहीं हैं, और जहाँ यह मौजूद भी है, वहाँ संबंधित प्राधिकार इससे अपरिचित हैं।
- समन्वय की कमी: राज्य विभिन्न सरकारी विभागों और अन्य हितधारकों के बीच अपर्याप्त समन्वय की समस्या से भी ग्रस्त हैं।
- भारतीय आपदा प्रबंधन प्रणाली केंद्र/राज्य/ज़िला स्तर पर संस्थागत ढाँचे के अभाव से भी ग्रस्त है।
- कमज़ोर चेतावनी और राहत प्रणाली: भारत में एक सशक्त पूर्व-चेतावनी प्रणाली का अभाव है।
- राहत एजेंसियों की सुस्त प्रतिक्रिया, प्रशिक्षित/समर्पित खोज एवं बचाव दल की कमी और बदतर समुदाय सशक्तीकरण अन्य कुछ प्रमुख चुनौतियाँ हैं।
आपदा प्रबंधन में पंचायती राज संस्थाओं का महत्त्व
- ज़मीनी स्तर पर आपदाओं से निपटना: पंचायतों को शक्ति और उत्तरदायित्वों के हस्तांतरण से प्राकृतिक आपदाओं के मामले में ज़मीनी स्तर पर प्रत्यास्थी और प्रतिबद्ध प्रतिक्रिया पाने में सहायता मिलेगी।
- राज्य सरकार के साथ तालमेल में कार्यरत प्रभावी और सुदृढ़ पंचायती राज संस्थान पूर्व-चेतावनी प्रणाली के माध्यम से आपदा से निपटने में मदद करेंगे।
- बेहतर राहत कार्य सुनिश्चित करना: चूँकि स्थानीय निकाय आबादी के अधिक निकट होते हैं, वे राहत कार्य को आगे बढ़ाने की बेहतर स्थिति में हैं, साथ ही वे ही स्थानीय लोगों की आवश्यकताओं से अधिक परिचित होते हैं।
- यह प्रत्येक आपदा की स्थिति में कार्यान्वयन और धन के उपयोग के मामले में पूर्ण पारदर्शिता सुनिश्चित करेगा।
- उन पर दिन-प्रतिदिन की नागरिक सेवाओं के परिचालन, प्रभावित लोगों को आश्रय और चिकित्सा सहायता प्रदान करने जैसे विषयों में भी भरोसा किया जा सकता है।
- जागरूकता का प्रसार करना और सहयोग प्राप्त करना: स्थानीय स्वशासन संस्थानों का लोगों के साथ ज़मीनी स्तर का संपर्क होता है और वे किसी संकट से मुकाबले के लिये लोगों के बीच जागरूकता के प्रसार और उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने में प्रभावी रूप से मदद कर सकते हैं।
- वे बचाव और राहत कार्यों में गैर-सरकारी संगठनों और अन्य एजेंसियों की भागीदारी के लिये भी आदर्श माध्यम का निर्माण करते हैं।
आगे की राह
- आपदा प्रबंधन कार्यक्रमों के लिये कानूनी समर्थन: पंचायत राज अधिनियमों में आपदा प्रबंधन के विषय को शामिल करना और आपदा योजना एवं व्यय को पंचायती राज विकास योजनाओं एवं स्थानीय स्तर की समितियों का अंग बनाना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- यह संसाधनों के नागरिक-केंद्रित मानचित्रण और नियोजन को सुनिश्चित करेगा।
- संसाधन की उपलब्धता और आत्मनिर्भरता: स्थानीय शासन, स्थानीय नेतृत्व और स्थानीय समुदाय को जब सशक्त किया जाता है तो वे किसी भी आपदा पर त्वरित और प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया देने में सक्षम होते हैं।
- स्थानीय निकायों को सूचना और मार्गदर्शन की आवश्यकता है, साथ ही ऊपर से प्राप्त निर्देशों की प्रतीक्षा किये बिना आत्मविश्वास से कार्य कर सकने के लिये उनके पास संसाधनों, क्षमताओं और प्रणालियों का होना भी आवश्यक है।
- आपदा प्रबंधन प्रतिमान में परिवर्तन: आपदा प्रबंधन के जोखिम शमन सह राहत-केंद्रित दृष्टिकोण को बदलते हुए इसे सामाजिक न्याय के साथ आर्थिक विकास की एक एकीकृत योजना में परिवर्तित करने की तत्काल आवश्यकता है।
- पूर्व-चेतावनी प्रणाली, पूर्व-तैयारी, निवारक उपाय और लोगों के बीच जागरूकता भी आपदा प्रबंधन के लिये उतना ही महत्त्वपूर्ण है. जितना कि रिकवरी और पुनर्वास योजना तथा अन्य राहत उपाय।
- सामूहिक भागीदारी: समुदाय के लिये नियमित, स्थान-विशिष्ट आपदा-प्रबंधन कार्यक्रम आयोजित करना और सर्वोत्तम अभ्यासों की साझेदारी के लिये मंचों का निर्माण व्यक्तिगत एवं संस्थागत क्षमताओं को मज़बूत करेगा।
- व्यक्तिगत सदस्यों को भूमिकाएँ सौंपना और उन्हें आवश्यक कौशल प्रदान करना ऐसे कार्यक्रमों को अधिक सार्थक बना सकता है।
- लोगों से वित्तीय योगदान प्राप्त करना: सभी ग्राम पंचायतों में सामुदायिक आपदा कोष की स्थापना के माध्यम से समुदाय से वित्तीय योगदान की प्राप्ति को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- आपदा के प्रति रोधी क्षमता को सामुदायिक संस्कृति का अंतर्निहित अंग बनाना अब पहले से कहीं अधिक अनिवार्य हो गया है।