खाद्य की भारी कमी से लेकर अधिशेष खाद्य उत्पादक तक की भारत की लंबी यात्रा विश्व के अन्य विकासशील देशों के लिये कई महत्त्वपूर्ण सबक प्रदान करती है। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- परिचय में हरित क्रांति की सहायता से भारत की खाद्य कमी वाले राष्ट्र से अधिशेष राष्ट्र बनने तक की यात्रा का संक्षेप में उल्लेख कीजिये।
- चर्चा कीजिये कि दुनिया के अन्य विकासशील देश खाद्य कमी वाले देश से खाद्य अधिशेष राष्ट्र बनने में भारतीय अनुभव का उपयोग कैसे कर सकते हैं।
- खाद्य पर्याप्तता को और अधिक टिकाऊ बनाने के लिये अन्य तरीकों पर भी चर्चा कीजिये।
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बड़े लक्ष्यों के संदर्भ में, सतत् विकास एजेंडा 2030 की प्राप्ति के लिये खाद्य प्रणाली रूपांतरण को आवश्यक माना जाता है। यह बेहद विवेकपूर्ण दृष्टिकोण है, क्योंकि 17 में से 11 सतत् विकास लक्ष्य (SDG) प्रत्यक्ष रूप से खाद्य प्रणाली से संबंधित हैं।
इस परिप्रेक्ष्य में, यह अनिवार्य है कि विकासशील देश भारतीय खाद्य सुरक्षा की सफलता से प्रेरित हों और सीख लें।
अन्य देशों के लिये रोल मॉडल
- खाद्य असुरक्षा के साथ भारत के प्रयास से सबक: खाद्य की भारी कमी से अधिशेष खाद्य उत्पादक तक की भारत की लंबी यात्रा एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के अन्य विकासशील देशों के लिये भूमि सुधार, सार्वजनिक निवेश, संस्थागत अवसंरचना, नए विनियामक ढाँचे, सार्वजनिक समर्थन और कृषि बाज़ारों एवं मूल्यों में हस्तक्षेप और कृषि अनुसंधान एवं विस्तार जैसे विषयों में प्रेरणादायी हो सकती है।
- कृषि का विविधीकरण: वर्ष 1991 से वर्ष 2015 के बीच की अवधि में भारत में कृषि का विविधीकरण किया गया और बागवानी, डेयरी, पशुपालन एवं मत्स्य क्षेत्रों पर अधिकाधिक ध्यान दिया गया।
- ऐसे में भारत से पोषण स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा एवं मानक, संवहनीयता, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की तैनाती और ऐसे अन्य विषयों के अनुभव लिये जा सकते हैं।
- खाद्य का समान वितरण: खाद्य में समानता के लिये भारत का सबसे बड़ा योगदान ‘खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013’ है जो लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS), मिड-डे मील (MDM) और एकीकृत बाल विकास सेवाओं (ICDS) के लिये आधार प्रदान करता है।
- वर्तमान में भारत का खाद्य सुरक्षा जाल सामूहिक रूप से एक बिलियन से अधिक लोगों तक पहुँच रखता है।
- खाद्य वितरण: खाद्य सुरक्षा जाल और समावेशन, सार्वजनिक खरीद तथा बफर स्टॉक नीति से जुड़े हुए हैं।
- यह वर्ष 2008-2012 के वैश्विक खाद्य संकट और हाल ही में COVID-19 महामारी के दौरान स्पष्ट भी हो गया, जहाँ एक सुदृढ़ सार्वजनिक वितरण प्रणाली और खाद्यान्न बफर स्टॉक के साथ देश में कमज़ोर और हाशिये पर स्थित परिवारों को खाद्य संकट के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान किया जाना जारी रहा।
आगे की राह
- संवहनीय दृष्टिकोण: न्यायसंगत आजीविका, खाद्य सुरक्षा और पोषण के लिये संवहनीय कृषि में निवेश, नवाचार और स्थायी समाधान के निर्माण हेतु आपसी सहयोग की आवश्यकता है।
- इसके लिये निश्चित रूप से खाद्य प्रणाली की पुनर्कल्पना आवश्यक है, ताकि विकास एवं संवहनीयता के संतुलन, जलवायु परिवर्तन के शमन, स्वस्थ, सुरक्षित, गुणवत्तायुक्त और किफायती खाद्य की सुनिश्चितता, जैव विविधता बनाए रखने, प्रत्यास्थता में सुधार और छोटे भूमि-धारकों और युवाओं को एक आकर्षक आय और कार्य वातावरण प्रदान करने के लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ा जा सके।
- फसल विविधीकरण: जल के अधिक समान वितरण और संवहनीय एवं जलवायु-प्रत्यास्थी कृषि के लिये बाजरा, दलहन, तिलहन, बागवानी आदि की ओर फसल प्रारूप के विविधीकरण की आवश्यकता है।
- कृषि क्षेत्र में संस्थागत परिवर्तन: किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) को छोटे धारकों हेतु इनपुट और आउटपुट के लिये बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मदद करनी चाहिए।
- ई-चौपाल (E-Choupal) छोटे किसानों को प्रौद्योगिकी के माध्यम से लाभान्वित करने का एक सफल उदाहरण है।
- आय और पोषण की वृद्धि के लिये महिला सशक्तीकरण भी महत्त्वपूर्ण है।
- महिला सहकारी समितियाँ और केरल के ‘कुडुम्बश्री’ (Kudumbashree) जैसे समूह इसमें मददगार होंगे।
- संवहनीय खाद्य प्रणालियाँ: आकलनों के अनुसार, खाद्य क्षेत्र विश्व के लगभग 30% ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के लिये उत्तरदायी हैं।
- उत्पादन, मूल्य शृंखला और उपभोग में संवहनीयता प्राप्त करनी होगी।
- गैर-कृषि क्षेत्र: संवहनीय खाद्य प्रणालियों के लिये गैर-कृषि क्षेत्र की भूमिका भी समान रूप से महत्त्वपूर्ण है। श्रम-प्रधान विनिर्माण और सेवा क्षेत्र कृषि क्षेत्र पर दबाव को कम कर सकते हैं, क्योंकि कृषि से होने वाली आय छोटे धारकों और अनौपचारिक श्रमिकों के लिये पर्याप्त नहीं है।
- इसलिये, ग्रामीण सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) और खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को सशक्त बनाना भी दीर्घकालिक समाधान का एक अंग होगा।
निष्कर्ष
यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि भूख और खाद्य असुरक्षा विश्व भर में संघर्ष और अस्थिरता के दो प्रमुख चालक हैं। ‘फ़ूड इज़ पीस’ (Food is peace) का नारा इस बात को प्रमुखता से उजागर करता है कि भुखमरी और संघर्ष एक-दूसरे को संपोषित करते हैं और खाद्य की सुनिश्चितता के बिना स्थायी शांति नहीं लाई जा सकती।