किसी भी महामारी के सफल प्रबंधन में सामाजिक प्रभाव एवं अनुनय की भूमिका का परीक्षण कीजिये।
31 Dec, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
हल करने का दृष्टिकोण:
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हमारे विचारों एवं कृत्यों पर कई व्यक्तियों एवं समाज की क्रियाविधि तथा व्यवहारों का प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रभाव पड़ता है। अनुनय सामाजिक प्रभाव का ही एक रूप है जिसमें किसी व्यक्ति द्वारा किसी अन्य व्यक्ति के विचार, अभिवृत्ति या कृत्यों को जानबूझकर प्रभावित करके उनमें परिवर्तन किया जाता है।
सामाजिक प्रभाव किसी व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन की प्रक्रिया है जो कि किसी अन्य व्यक्ति के प्रभाव में घटित होता है। यह किसी प्रभावशाली व्यक्तित्त्व या किसी करीबी के आचार, विचार एवं कृत्यों के प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रभाव को इंगित करता है। अनुरूपता, अनुपालन एवं आज्ञाकारिता सामाजिक प्रभाव के तीन आवश्यक तत्त्व हैं। अनुरूपता व आज्ञाकारिता एक समाज के भीतर सामंजस्य की भावना को संभव बनाते हैं, जो किसी भी समाज में सहयोग एवं आदर्श अभिविन्यास को बढ़ावा देते हैं।
सामाजिक प्रभाव एवं अनुनय किसी व्यक्ति के व्यवहार एवं अभिवृत्ति परिवर्तन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कोविड-19 जैसी महामारी के दौर में ये दोनों ही परिवर्तन हेतु एजेंट की भाँति कार्य करते हैं। उदाहरण के लिये सेलिब्रिटीज़ एवं नेताओं द्वारा दृश्य मीडिया, सोशल मीडिया एवं प्रिंट मीडिया पर की गई स्वच्छता संबंधी अपील लोगों में स्वच्छता संबंधी अभिवृत्ति में परिवर्तन का प्रमुख कारण बनी।
अनुनय एवं सामाजिक प्रभाव का उपयोग लोगों को धर्मार्थ दान करने, स्वयंसेवकों द्वारा ज़रूरतमंदों को भोजन के वितरण करने एवं लोगों को स्वच्छता संबंधी जानकारी देने व महामारी के प्रसार को रोकने में किया जा सकता है। इनकी सहायता से सरकार व जनता के बीच एक प्रभावी संचार तंत्र विकसित करके संकट के सफल प्रबंधन में सहायता ली जा सकती है।
कभी-कभी भावनात्मक अपील एवं संदेशों द्वारा लोगों के व्यवहार में परिवर्तन किया जा सकता है। उदाहरण के तौर लॉकडाउन के दौरान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा घर पर ही रहने की अपील एवं पुलिस द्वारा यमराज एवं कोरोना वायरस की आकृति में बने कपड़ों को पहनकर लोगों के व्यवहार में परिवर्तन करना।
भारत के साथ-साथ विश्व भर में कोरोना विषाणुजनित महामारी के प्रबंधन में अनुनय एवं सामाजिक प्रभाव अभिनव विकल्प बनकर सामने आए हैं। ये दोनों ही व्यक्ति के साथ-साथ सामाजिक व्यवहारों एवं अभिवृत्तियों में परिवर्तन करने के तीव्रगामी उपाय साबित हुए हैं।
वस्तुत: भारत में सिविल सेवाओं की प्रकृति अत्यधिक जवाबदेहीपूर्ण एवं जनता के लिये सेवा वितरण हेतु अत्यावश्यक है, ऐसे में लोक सेवकों में नैतिक दुविधा होना स्वाभाविक है किंतु उच्च नैतिक मानकों एवं मूल्यों के विकास से इसे कम किया जा सकता है।