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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. क्षमता उपागम उपयोगितावाद से किस प्रकार भिन्न है? चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    30 Dec, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • क्षमतागत दृष्टिकोण और उपयोगितावाद को संक्षेप में परिभाषित कीजिये।
    • दोनों के बीच विद्यमान प्रमुख अंतरों को उदाहरणों के साथ रेखांकित कीजिये।
    • उपयोगितावाद की तुलना में नीति-निर्माण के लिये क्षमतागत दृष्टिकोण एक अधिक प्रभावी साधन है, इस पर चर्चा करते हुए निष्कर्ष दीजिये।

    अमर्त्य सेन का क्षमतागत दृष्टिकोण व्यक्तियों की क्षमताओं को बढ़ाकर विकास करने की एक प्रक्रिया है, जिससे उनकी वास्तविक स्वतंत्रता का विस्तार होता है। प्रभावी ढंग से कार्य करने की क्षमता सबसे अधिक मायने रखती है जो वस्तुओं की उपलब्धता से अधिक महत्त्वपूर्ण होती है। यह गरीबी, असमानता और मानव विकास के मानक के रूप में आर्थिक अवसंरचना के लिये सबसे प्रभावशाली साधन के रूप में उभरी है। दूसरी तरफ उपयोगितावाद एक नैतिक सिद्धांत है जो ऐसी क्रियाओं का समर्थन करता है, जो संपूर्ण आनंद या प्रसन्नता को बढ़ावा देता है और उन कार्यों को अस्वीकार करती है जो अप्रसन्नता या हानि का कारण बनते हैं। इसके तीन स्तंभ कर्म- परिणामवाद, लोक हितवाद तथा समान-रैंकिंग हैं।

    उपयोगितावाद एवं क्षमतागत दृष्टिकोण में अंतर निम्न प्रकार से देखा जा सकता है।

    उपयोगितावाद क्षमतागत दृष्टिकोण
    उपयोगितावाद एक परिणामवादी दृष्टिकोण है जहाँ कार्यों का मूल्यांकन केवल उनके परिणामों की अच्छाई या बुराई के संदर्भ में किया जाता है। यह वह प्रक्रिया जिसके द्वारा परिणामों को लाया जाता है उसकी नैतिकता पर किसी भी विचार को शामिल नहीं किया जाता है। क्षमतागत दृष्टिकोण व्यापक परिणामवाद की बजाय परिणामों और सिद्धांतों दोनों के नैतिक महत्त्व को एकीकृत करने का तर्क देता है।
    उपयोगितावाद का उद्देश्य लोगों के कल्याण को अधिकतम स्तर पर पहुँचाकर अधिकतम लोगों को अधिकतम सुख देना है। यह मानवीय क्षमताओं को बढ़ाने पर ज़ोर देता है जो व्यक्तियों को राज्य के कल्याणकारी कार्यक्रमों पर निर्भरता से मुक्त बनाता है और उन्हें स्वतंत्र और सम्मानजनक जीवन जीने में सक्षम बनाता है।
    यह लोक हितवाद को बढ़ावा देता है, जिसका दृष्टिकोण यह है कि अच्छाई का मूल्यांकन केवल व्यक्तिपरक उपयोगिता के संदर्भ में किया जाना चाहिये अर्थात् सभी को अपनी सामाजिक स्थितियों से संतुष्ट होना चाहिये। सेन का क्षमतागत दृष्टिकोण हालाँकि लोक हितवाद की आलोचना करता है क्योंकि लोग भौतिक अभाव और सामाजिक अन्याय की अपनी स्थितियों के लिये सामान्य हो सकते हैं और वे पूरी तरह से संतुष्ट होने का दावा भी कर सकते हैं। उदाहरणार्थ - एक नियंत्रणाधीन और अधीनस्थ गृहिणी जिसने अपनी भूमिका और अपनी किस्मत के साथ पूरी तरह सामंजस्य कर लिया है।
    उपयोगितावाद समाज में कल्याणकारी कार्यों को अधिकतम करने पर ध्यान केंद्रित करता है, जबकि इनका वितरण कैसे किया जाए, इस पर ध्यान नहीं देता। यह अलग-अलग व्यक्तियों की विशिष्ट आवश्यकताओं पर कोई ध्यान नहीं रखता है। क्षमतागत दृष्टिकोण यह बताता है कि व्यक्ति आय जैसे संसाधनों को लोक-कल्याण में परिवर्तित करने की अपनी क्षमता से भिन्न है।
    उपयोगितावाद की कई सीमाएँ हैं जो मुख्यत: परिणामों से प्रेरित होती हैं जिनके परिणामस्वरूप यह व्यक्तियों की विभिन्न आवश्यकताओं का आकलन करने और उन्हें स्वीकार करने में विफल रहता है। क्षमतागत दृष्टिकोण, हालाँकि, इन त्रुटियों पर नियंत्रण रखता है और नीति निर्माण और कार्यान्वयन के लिये सबसे व्यवहार्य विकल्प के रूप में उभरता है।

    इसलिये, हम कह सकते हैं कि क्षमतागत दृष्टिकोण विकास के व्यापक पहलुओं का अनुसरण करता है और वह संकीर्ण उपयोगितावाद की तुलना में सभी के लिये न्यायपूर्ण और समतामूलक समाज में विश्वास करता है। समाज के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक विकास में क्षमतागत दृष्टिकोण का महत्त्वपूर्ण योगदान हो सकता है।

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