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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न. ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिये नवीन दृष्टिकोणों पर चर्चा कीजिये जो भारतीय शहरों में बढ़ती अपशिष्ट समस्याओं से निपटने में मदद कर सकते हैं। (150 शब्द)

    29 Dec, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारतीय शहरों में अपशिष्ट उत्पादन, संग्रहण और उपचार की समस्या को उजागर करते हुए उत्तर आरंभ कीजिये।
    • उसके बाद ठोस अपशिष्ट के उचित प्रबंधन के लिये विभिन्न प्रकार के नए तकनीकी और अन्य तरीकों का उल्लेख कीजिये।
    • अपशिष्ट प्रबंधन के महत्त्व एवं उसकी अनदेखी की स्थिति में हमें जिन संभावित परिणामों का सामना करना पड़ सकता है, उन पर प्रकाश डालते हुए निष्कर्ष दीजिये।

    अपशिष्ट प्रबंधन का अर्थ है- कचरे का संग्रहण, परिवहन और उपचार के साथ-साथ निपटान जैसी सभी गतिविधियों एवं कार्यों की निगरानी एवं विनियमन। गौरतलब है कि भारत प्रतिदिन 150,000 टन से अधिक नगरपालिका ठोस कचरा उत्पन्न करता है। उनमें से केवल 83% अपशिष्ट को एकत्रित किया जाता है और 30% से कम का उपचार किया जाता है। भारत में अपशिष्ट पूर्वानुमान शहरी स्थानीय निकायों के सम्मुख कई सामाजिक और पर्यावरणीय चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है।

    अभिनव अनुप्रयोग:

    • कुशल अपशिष्ट प्रबंधन की कुंजी स्रोत (कचरा उत्पत्ति स्थान) पर कचरे के समुचित पृथक्करण को सुनिश्चित करना है और यह भी सुनिश्चित करना है कि अपशिष्ट पुनर्चक्रण और संसाधन पुनर्भरण की विभिन्न धाराओं से गुज़रे।
      अपशिष्ट से खाद बनाने वाले एवं जैव-मिथेनेशन संयंत्रों की स्थापना से लैंडफिल साइटों का भार कम होगा।
    • जैव-मेथेनेशन बायोडिग्रेडेबल कचरे के प्रसंस्करण का एक हल है। बायोडिग्रेडेबल कचरे का अभी पर्याप्त दोहन नहीं किया गया है।
    • एक सामान्य अपशिष्ट उपचार सुविधा की अवधारणा को व्यापक रूप से बढ़ावा दिया जाना चाहिये एवं स्वीकार किया जाना चाहिये क्योंकि यह विनिर्माण प्रक्रियाओं में सह-ईंधन या सह-कच्चे माल के रूप में प्रयोग करके कचरे को एक संसाधन के रूप में उपयोग करता है।
    • बायोमेडिकल और ई-कचरे के संग्रहण और उपचार के लिये विशेष उपाय किये जाने चाहिये।
      इस्तेमाल किये गए उत्पादों के पुन: उपयोग, नई चीज़ों को खरीदने के बजाय टूटी हुई वस्तुओं की मरम्मत करना, प्लास्टिक के बजाय सूती या कागज़ के थैले का उपयोग करना, उपभोक्ताओं को डिस्पोजेबल उत्पादों का उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित करना आदि जैसे उपायों से कचरे को कम किया जा सकता है।
    • यह महत्त्वपूर्ण है कि बायोमाइनिंग (Biomining) और जैविक उपचार उन क्षेत्रों के लिये अनिवार्य किया जाए जहाँ इसे लागू किया जा सकता है।
    • अपशिष्ट प्रबंधन का विकेंद्रीकरण: यह ज़रूरी है कि अपशिष्ट प्रबंधन विकेंद्रीकृत हो। छत्तीसगढ़ में अंबिकापुर और वेल्लोर इसका एक बहुत अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करते हैं जहाँ कचरे को विकेंद्रीकृत तरीके से एकत्रित कर प्राकृतिक खाद बनाया गया और इस्तेमाल किया गया।
    • सामुदायिक भागीदारी का कुशल अपशिष्ट प्रबंधन पर सीधा असर पड़ता है और इसे प्रोत्साहित भी किया जाना चाहिये।

    इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि नागरिक निकायों को ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिये दीर्घकालिक दृष्टि विकसित करना होगा और बदलती जीवनशैली के अनुसार अपनी रणनीतियों को फिर से बनाना होगा। यह समय है कि राष्ट्र जाग जाए और कचरा प्रबंधन को गंभीरता से लेना शुरू कर दे अन्यथा हम लगातार गैर-समावेशी अपशिष्ट उपचार तरीकों के कारण उत्पन्न होती पर्यावरणीय और स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करने के लिये बाध्य होंगे।

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