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प्रश्न :
प्रश्न: बालिका विवाह के उन्मूलन के संबंध में शिक्षा, कानूनी प्रावधान और जागरूकता पहलों जैसे सामाजिक परिवर्तन के प्रेरकों को अभी भी लंबा रास्ता तय करना होगा। टिप्पणी कीजिये।
27 Dec, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भारतीय समाजउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण :
- लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने के सरकार के हालिया प्रस्ताव से शुरुआत कीजिये।
- महिला सशक्तिकरण के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये प्रस्ताव के लाभों और वैकल्पिक तरीकों की आवश्यकता पर चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
बाल विवाह एक वैश्विक मुद्दा है, जो लैंगिक असमानता, गरीबी, सामाजिक मानदंडों और असुरक्षा से प्रेरित है और दुनिया भर में इसके विनाशकारी परिणाम देखने को मिलते हैं। बाल विवाह के उच्च स्तर समाज में महिलाओं और बालिकाओं के प्रति भेदभाव और अवसरों की कमी को दर्शाते हैं।
भारत में विभिन्न वैधानिक प्रावधानों और सशर्त नकद हस्तांतरण (Conditional Cash Transfer- CCT) कार्यक्रमों जैसी पहलों के बावजूद, अधिक प्रगति नहीं हो सकी है। राष्ट्रव्यापी कोविड-19 लॉकडाउन ने परिदृश्य को और बदतर कर दिया।
भारत में बाल विवाह
- व्यापकता: संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children’s Fund- UNICEF) के आकलन से पता चलता है कि भारत में हर साल 18 वर्ष से कम उम्र की कम-से-कम 15 लाख लड़कियों की शादी हो जाती है, जो वैश्विक संख्या का एक तिहाई है और इस प्रकार अन्य देशों की तुलना में भारत में बाल वधुओं की सर्वाधिक संख्या मौजूद है।
- बाल विवाह के विषय में NFHS के निष्कर्ष: वर्ष 2015-16 में आयोजित ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण’ (NFHS4) के चौथे दौर के आँकड़े से पता चलता है कि भारत में प्रत्येक चार लड़कियों में से एक की शादी 18 वर्ष की आयु से पहले हो रही थी। सर्वेक्षण अवधि के दौरान 15-19 वर्ष आयु वर्ग की लगभग 8% महिलाएँ माता थीं या गर्भवती थीं। विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार कोविड महामारी के दौरान बाल विवाहों की संख्या में वृद्धि देखी गई। NFHS-5 (2019-20) के पहले चरण के निष्कर्ष भी बाल विवाह के उन्मूलन की दिशा में कोई महत्त्वपूर्ण प्रगति नहीं दिखाते हैं।
आवश्यक कदम
- नीतिगत हस्तक्षेप: भारत से बालिका विवाह और समग्र रूप से बाल विवाह के उन्मूलन की दिशा में कानूनों की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।
- कर्नाटक ने वर्ष 2017 में बाल विवाह निषेध अधिनियम में संशोधन किया है, जहाँ प्रत्येक बाल विवाह को उसके आरंभ से ही अमान्य घोषित कर दिया गया, इसे एक संज्ञेय अपराध बनाया गया है और बाल विवाह संपन्न कराने में योगदान करने वाले सभी व्यक्तियों के लिये कठोर कारावास की न्यूनतम अवधि तय की गई है। केंद्रीय स्तर पर भी ऐसा ही किया जा सकता है।
- सामाजिक परिवर्तन के लिये सरकारी कार्रवाई: शिक्षकों, आँगनवाड़ी पर्यवेक्षकों, पंचायत एवं राजस्व कर्मचारियों सहित विभिन्न विभागों के ज़मीनी स्तर के नौकरशाह—जिनका ग्रामीण समुदायों के साथ अंतर्संपर्क होता है, को बाल विवाह निषेध अधिकारी (Child Marriage Prohibition Officers) के रूप में अधिसूचित किया जाना चाहिये।
- इसके अलावा, जन्म और विवाह पंजीकरण का विकेंद्रीकरण ग्राम पंचायतों में किये जाने से आयु और विवाह के आवश्यक दस्तावेजों के साथ महिलाओं और लड़कियों की रक्षा होगी, और इस प्रकार वे अपने अधिकारों का दावा करने में अधिक सक्षम बन सकेंगी।
- सामाजिक परिवर्तन के प्रेरकों की मौलिक भूमिका: इनमें माध्यमिक शिक्षा का विस्तार, सुरक्षित एवं सस्ते सार्वजनिक परिवहन तक पहुँच और युवा महिलाओं को आजीविका कमाने के लिये अपनी शिक्षा का उपयोग करने के लिये सहयोग देना शामिल हैं।
- शिक्षा का विस्तार महज़ उस तक पहुँच तक ही सीमित नहीं है। लड़कियों को नियमित रूप से स्कूल जा सकने, स्कूल में बने रहने और उपलब्धियाँ पाने में सक्षम होना चाहिये।
- राज्य यह सुनिश्चित करने के लिये विशेष रूप से निम्न-सुविधा-संपन्न क्षेत्रों में आवासीय स्कूलों, बालिका छात्रावासों और सार्वजनिक परिवहन के अपने नेटवर्क का लाभ उठा सकते हैं ताकि सुनिश्चित हो सके कि किशोर लड़कियाँ शिक्षा से बहिर्वेशित न की जाएँ।
- उच्च विद्यालय की लड़कियों और लड़कों के साथ नियमित रूप से लैंगिक समानता पर संवाद जारी रखने की आवश्यकता है ताकि एक प्रगतिशील दृष्टिकोण को आकार दिया जा सके जो उनके वयस्क आयु में भी साथ बना रहेगा।
- सशक्तीकरण के उपाय: बाल विवाह को समाप्त करने के लिये महिला समाख्या जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से सामुदायिक संलग्नता की भी आवश्कयता है।
- भारत भर की ग्राम पंचायतों में बच्चों की ग्राम सभाएँ बच्चों को अपनी चिंताओं को व्यक्त करने के लिये एक मंच प्रदान कर सकती हैं।
- बाल विवाह की रोकथाम के लिये आर्थिक विकास आवश्यक: बालिका विवाह पर रोक और उपयुक्त आयु पर लड़कियों के विवाह को सुनिश्चित करने के लिये भारत को न केवल सांस्कृतिक रूप से बल्कि आर्थिक रूप से भी विकसित होने की आवश्यकता है।
- इस दिशा में कुछ प्रगति हुई भी है, जहाँ समृद्धि बढ़ने और चरम गरीबी के स्तर में गिरावट आने के साथ-साथ बाल वधुओं की संख्या में कमी आई है।
- आर्थिक विकास भारतीय बालिकाओं को बाल विवाह से बचाएगा। लैंगिक वरीयता के विषय में शैक्षिक और सांस्कृतिक जागरूकता (जिसमें निस्संदेह समय लगेगा) के साथ आर्थिक सफलता ही एक स्थायी समाधान लेकर आएगी।
निष्कर्ष
बालिका विवाह के उन्मूलन के संबंध में शिक्षा, कानूनी प्रावधान और जागरूकता पहलों जैसे सामाजिक परिवर्तन के प्रेरकों को अभी भी लंबा रास्ता तय करना होगा। इसके साथ ही यह ऐसा बदलाव है जिसे इसके अंदर से ही घटित होना है।
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