उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और संधियों को नैतिक मार्गदर्शन के स्रोतों के रूप में कार्य करने वाले तथ्यों के हवाले से संक्षेप में प्रस्तुत करें।
- समकालीन अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में इसके महत्त्व और कमियों की व्याख्या कीजिये।
- निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिये।
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परिचय
इस हाइपरकनेक्टेड दुनिया में, जो अब एक वैश्विक गाँव है, अंतर्राष्ट्रीय कानून और संधियाँ समकालीन अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में शामिल नैतिक मुद्दों को हल करने के लिये नैतिक मार्गदर्शन के स्रोतों के रूप में कार्य करते हैं।
स्वरूप/ढाँचा
- संयुक्त राष्ट्र चार्टर ने सभी के लिये मानवाधिकार और मौलिक स्वतंत्रता किसी जाति, लिंग, भाषा या धर्म के रूप में भेद किये बिना उन्हें कायम रखने की प्रतिबद्धता व्यक्त की और 'आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्य और संबंधित समस्याओं के समाधान' तथा 'पालन के लिये सार्वभौमिक सम्मान' और 'पर्यवेक्षण' को ध्यान में रखते हुए 'उच्च जीवन स्तर को प्राप्त करने' से संबंधित सिद्धांतों के एक व्यापक समूह की रूपरेखा तैयार की।
- मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 दिसंबर, 1948 को अपनाया, जिसके तहत पहली बार मौलिक मानवाधिकारों को सार्वभौमिक रूप से संरक्षित किया गया।
- जिनेवा अभिसमयों में चार संधियाँ और तीन अतिरिक्त प्रोटोकॉल शामिल हैं, जो युद्ध में मानवीय व्यवहार या बर्ताव के लिये अंतर्राष्ट्रीय कानून के मानकों को स्थापित करते हैं।
- 1951 के शरणार्थी अभिसमय में यह परिभाषित किया गया है कि कौन शरणार्थी है और शरण प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के अधिकारों तथा शरण देने वाले राष्ट्रों की ज़िम्मेदारियों को निर्धारित करता है।
- UNFCCC के तहत पेरिस जलवायु समझौता जलवायु समाधान के लिये CBDR (सामान्य लेकिन विभेदित ज़िम्मेदारी) सिद्धांत को अपनाकर जलवायु न्याय सुनिश्चित करता है।
- विश्व व्यापार संगठन (WTO) और इसके ट्रिप्स (TRIPS) समझौते ने वैश्विक व्यापार और बौद्धिक संपदा अधिकारों में शामिल नैतिक मुद्दों को संबोधित किया है।
- चार ग्लोबल कॉमन्स- द हाई सी (UNCLOS), द एटमॉस्फियर, अंटार्कटिका, बाह्य अंतरिक्ष से जुड़े नैतिक मुद्दों को संबोधित करने के लिये कई कानून और संधियाँ हैं।
हालाँकि अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता को बनाए रखने का दावा करने वाले कुछ कानूनों की आलोचना की गई है:
- निरस्त्रीकरण: अमेरिका जैसे देश ईरान जैसे देशों पर आर्थिक और अन्य प्रतिबंध लगाते हैं ताकि उन्हें परमाणु हथियार विकसित करने से रोका जा सके। यह सवाल उठाए जाते हैं कि किसी देश के लिये अपने स्वयं के परमाणु शस्त्रों का त्याग किये बिना अन्य देशों पर प्रतिबंध लगाना कैसे नैतिक है?
- मानवीय हस्तक्षेप: नैतिक प्रश्न उठाया जाता है कि क्या किसी देश के लिये अन्य देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना सही है?
- जलवायु परिवर्तन: विभिन्न देश CBDR के मुद्दे पर एकमत नहीं हैं।
- बाह्य अंतरिक्ष: बाहरी अंतरिक्ष में उपग्रहों की दौड़ के कारण अंतरिक्ष मलबा।
- बौद्धिक संपदा अधिकार: IPR की प्रतिबंधात्मक धाराएँ निर्धन और विकासशील देशों को नई तकनीकों और जीवनरक्षक दवाओं का उपयोग करने से वंचित करती हैं। यहाँ नैतिक मुद्दा वाणिज्यिक लाभ बनाम मानवीय कारणों के बीच है।
- व्यापार वार्ता/दोहा दौर: क्या विकासशील देश नैतिक रूप से सही हैं, जब वे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अपेक्षाकृत उच्च रियायतों की मांग करते हैं?
- अंतर्राष्ट्रीय अनुदान और विकास सहायता कुछ शर्तों के तहत मिलते हैं, जो नैतिक रूप से गलत हो सकता है। जैसे- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वर्ष 1991 में आर्थिक उदारीकरण की शर्त के साथ भारत के आर्थिक संकट को टालने के लिये वित्त पोषित किया।
निष्कर्ष
अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में नैतिक व्यवहार को आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, गरीबी और असमानता को दूर करने तथा वैश्विक शांति स्थापित करने जैसी वैश्विक जटिल समस्याओं का समाधान करने की आवश्यकता है।