(क) एक कार्रवाई कानूनी रूप से गलत हो सकती है लेकिन नैतिक रूप से सही और इसके विपरीत।
(ख) किन परिस्थितियों में किसी व्यक्ति को उसके कार्यों के बावजूद अनैतिक के रूप में नहीं देखा जा सकता, जो कि अनैतिक या अवैध प्रतीत होता है।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- नैतिकता और कानून के बीच उदाहरणों के साथ अंतर स्पष्ट कीजिये। बताइये कि लोकसेवकों के लिये कानूनों की नैतिक व्याख्या क्यों महत्त्वपूर्ण है।
- दूसरे भाग में प्रासंगिक उदाहरण देते हुए किसी भी कार्रवाई की नैतिक जाँच की शर्तों की व्याख्या कीजिये।
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A: यह ज़रूरी नहीं है कि सभी कानून हमेशा नैतिक ही हों। कानून से अभिप्राय है राज्य द्वारा अनुमत। उदाहरण के लिये, मृत्युदंड, गर्भपात आदि। इसलिये नैतिकता और कानून हमेशा समान नहीं होते हैं।
- ऐसी कार्रवाई जो कानूनी नज़रिए से गलत किन्तु नैतिक दृष्टि से सही है। उदाहरण के लिये,
- 20वीं सदी के भारत में समाज सुधारकों ने नागरिकों से आग्रह किया कि वे जिन कानूनों को अनैतिक या अन्यायपूर्ण मानते हैं, उनका विरोध करें। शांतिपूर्ण नागरिक अवज्ञा राजनीतिक दृष्टिकोण को व्यक्त करने का एक नैतिक तरीका था।
- गर्भपात को कानूनी रूप से गलत माना जा सकता है किन्तु किसी बलात्कार पीड़िता के लिये इसे नैतिक आधार पर अनुमति दी जा सकती है।
- इसी प्रकार कुछ कार्रवाइयाँ नैतिक रूप से गलत किन्तु कानून की दृष्टि में सही हो सकती हैं। जैसे कि,
- पहले अमेरिका में दास व्यापार कानूनी था, लेकिन यह एक अनैतिक कार्य है।
- जबकि स्लम बस्तियों को हटाना कानूनी रूप से सही है किन्तु आवास और आश्रय का मानव अधिकार पहले आता है तथा उचित वैकल्पिक व्यवस्था किये बिना ऐसा करना अनैतिक है।
- हमारे जैसे मिश्रित-सुसंस्कृत समाज में लोकसेवकों को अपने कर्त्तव्यों का प्रभावी ढंग से निर्वहन करने और आम आदमी की भलाई के लिये कानूनी तथा नैतिक दोनों कारकों से युक्त एक संतुलित रुख अपनाने की आवश्यकता है।
- एक नौकरशाह का कर्त्तव्य गत्यात्मक (डायनैमिक) है, जिसे कानूनों की व्याख्या की आवश्यकता पड़ती रहती है। अतः नैतिक संवेदनशीलता को विकसित करने की आवश्यकता है जो किसी स्थिति के उन मुख्य पहलुओं की पहचान कर सके जिसमें सार्वजनिक समाज का 'भला' या 'बुरा' शामिल है।
B: एक व्यक्ति अलग-अलग स्थितियों में अलग- अलग तरीके से व्यवहार कर सकता है। हालाँकि किसी भी कार्रवाई की नैतिक रूप से जाँच तभी की जा सकती है, जब वह कुछ शर्तों का पालन करे, जैसे-
- यदि यह स्वतंत्र इच्छा से किया जाता है: यदि किसी व्यक्ति के पास कई विकल्प हैं और उसे उन विकल्पों में से किसी एक को चुनने की स्वतंत्रता है, तो ही हम किसी कार्रवाई के विषय में नैतिक आधार पर बहस कर सकते हैं। उदाहरण के लिये:
- हाथी खेतों में फसलों को नष्ट करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप मानव-पशु संघर्ष होता है। प्रकृति ने हाथियों को इस तरह से कार्य करने के लिये डिज़ाइन किया है। इसलिये हाथी की कार्रवाई को नैतिक अथवा अनैतिक दोनों माना जा सकता है। उसके लिये उसे दंडित नहीं किया जाना चाहिये।
- परिणामों का पूर्वाभास: जब तक हमें किसी कृत्य के परिणाम का पता नहीं होगा तब तक हम स्वतंत्र इच्छा का प्रयोग नैतिक /अनैतिक तरीके से नहीं कर सकते। उदाहरण के लिये:
- वर्ष 2018 में पंजाब ट्रेन दुर्घटना में चालक द्वारा ट्रेन को नहीं रोकने की वज़ह से दशहरा के दौरान रेलवे पटरियों के आसपास खड़े 60 से अधिक लोगों की जान चली थी। इसकी नैतिक रूप से जाँच नहीं की जा सकती थी क्योंकि ट्रेन चालक को हरी झंडी दी गई थी और उसे ट्रैक पर खड़े लोगों की जानकारी नहीं थी
- स्वैच्छिक कार्रवाई: किसी कार्रवाई को केवल तभी नैतिक/अनैतिक कहा जा सकता है जब वह स्वेच्छा से बिना किसी बाहरी दबाव या बल के की गई हो। उदाहरण के लिये:
- किसी मजबूरी में अथवा बलपूर्वक सड़कों पर भीख मांगने वाले बच्चों की कार्रवाई को अनैतिक नहीं माना जाना चाहिये क्योंकि वे स्वेच्छा से ऐसा नहीं कर रहे हैं। हालाँकि भीख मांगने की प्रथा अनैतिक है।
- डर /हिंसा: डर या खुद को चोट पहुँचाने के लिये की गई किसी भी कार्रवाई की नैतिक रूप से जाँच नहीं की जा सकती। यदि कोई आपको मारने/लूटने की कोशिश करता है और आप उसे आत्मरक्षा में मारते /घायल करते हैं, तो आप अपने जीवन के प्रति डर के तहत ऐसा करते हैं। इसलिये यह कानूनी जाँच के अधीन तो है, लेकिन नैतिक जाँच के नहीं।
- आदत/स्वभाव: वह कार्य जो किसी की अपनी आदत के परिणाम के रूप में किया जाता है, नैतिक हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता। उदाहरण के लिये:
- बचपन से ही जापानियों को किसी अन्य मनुष्य के प्रति हुई मामूली गलती या असुविधा के लिये भी क्षमा याचना करने का प्रशिक्षण दिया जाता है। किन्तु यदि जापान में काम करने वाला एक अमेरिकी कर्मचारी समान रूप से व्यवहार नहीं करता है तो इसे 'अनैतिक' नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इस प्रकार का व्यवहार अमेरिकी आदतों में शामिल नहीं है।
इस प्रकार किसी व्यक्ति के कार्यों के अनैतिक या अवैध होने के बावजूद भी उसे सदैव अनैतिक नहीं माना जा सकता।