'भारत छोड़ो' आंदोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि इसने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भारतीय जनता को एकजुट किया। चर्चा कीजिये। (150 शब्द)।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- भारत छोड़ो आंदोलन के बारे में संक्षेप में बताइये।
- ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय लोगों को एकजुट करने में आंदोलन की सफलता पर चर्चा कीजिये।
- आंदोलन की विफलता पर भी चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त रूप से निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय
8 अगस्त 1942 को, महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन को समाप्त करने का आह्वान किया और मुंबई में अखिल भारतीय काॅन्ग्रेस कमेटी के सत्र में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की।
ग्वालिया टैंक मैदान में दिये गए अपने भाषण में गांधी जी ने "करो या मरो" का नारा दिया था।
- आंदोलन के कारण
- आंदोलन का तात्कालिक कारण क्रिप्स मिशन का पतन था। मिशन विफल हो गया क्योंकि इसने भारत को पूर्ण स्वतंत्रता नहीं बल्कि विभाजन के साथ डोमिनियन स्टेटस देने की पेशकश की।
- द्वितीय विश्व युद्ध में भारत से अंग्रेज़ों को बिना शर्त समर्थन की ब्रिटिश धारणा भारतीय राष्ट्रीय काॅन्ग्रेस द्वारा स्वीकार नहीं की गई थी।
- ब्रिटिश विरोधी भावनाओं और पूर्ण स्वतंत्रता की मांग ने भारतीय जनता के बीच लोकप्रियता हासिल की थी।
- आवश्यक वस्तुओं की कमी: द्वितीय विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी।
आंदोलन की सफलता
भविष्य के नेताओं का उदय:
- राम मनोहर लोहिया, जेपी नारायण, अरुणा आसफ अली, बीजू पटनायक, सुचेता कृपलानी आदि नेताओं ने भूमिगत गतिविधियों को अंजाम दिया जो बाद में प्रमुख नेताओं के रूप में उभरे।
महिलाओं की भागीदारी:
- आंदोलन में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उषा मेहता जैसी महिला नेताओं ने एक भूमिगत रेडियो स्टेशन स्थापित करने में मदद की जिससे आंदोलन के बारे में जागरूकता पैदा हुई।
राष्ट्रवाद का उदय:
- भारत छोड़ो आंदोलन के कारण देश में एकता और भाईचारे की एक विशिष्ट भावना पैदा हुई। कई छात्रों ने स्कूल-कॉलेज छोड़ दिये और लोगों ने अपनी नौकरी छोड़ दी।
स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त:
- यद्यपि वर्ष 1944 में भारत छोड़ो आंदोलन को कुचल दिया गया था और अंग्रेज़ों ने यह कहते हुए तत्काल स्वतंत्रता देने से इनकार कर दिया था कि स्वतंत्रता युद्ध समाप्ति के बाद ही दी जाएगी, किंतु इस आंदोलन और द्वितीय विश्व युद्ध के बोझ के कारण ब्रिटिश प्रशासन को यह अहसास हो गया कि भारत को लंबे समय तक नियंत्रित करना संभव नहीं था।
- इस आंदोलन के कारण अंग्रेज़ों के साथ भारत की राजनीतिक वार्ता की प्रकृति ही बदल गई और अंततः भारत की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त हुआ।
आंदोलन की असफलता
क्रूर दमन:
- आंदोलन के दौरान कुछ स्थानों पर हिंसा देखी गई, जो कि पूर्व नियोजित नहीं थी।
- आंदोलन को अंग्रेज़ों द्वारा हिंसक रूप से दबा दिया गया, लोगों पर गोलियाँ चलाई गईं, लाठीचार्ज किया गया, गाँवों को जला दिया गया और भारी जुर्माना लगाया गया।
- इस तरह सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिये हिंसा का सहारा लिया और 1,00,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया।
समर्थन का अभाव
- मुस्लिम लीग, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और हिंदू महासभा ने आंदोलन का समर्थन नहीं किया। भारतीय नौकरशाही ने भी इस आंदोलन का समर्थन नहीं किया।
- मुस्लिम लीग, बँटवारे से पूर्व अंग्रेज़ों के भारत छोड़ने के पक्ष में नहीं थी।
- कम्युनिस्ट पार्टी ने अंग्रेज़ों का समर्थन किया, क्योंकि वे सोवियत संघ के साथ संबद्ध थे।
- हिंदू महासभा ने खुले तौर पर भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया और इस आशंका के तहत आधिकारिक तौर पर इसका बहिष्कार किया कि यह आंदोलन आंतरिक अव्यवस्था पैदा करेगा और युद्ध के दौरान आंतरिक सुरक्षा को खतरे में डाल देगा।
- इस बीच सुभाष चंद्र बोस ने देश के बाहर ‘भारतीय राष्ट्रीय सेना’ और ‘आज़ाद हिंद सरकार’ को संगठित किया।
- सी. राजगोपालाचारी जैसे कई काॅन्ग्रेस सदस्यों ने प्रांतीय विधायिका से इस्तीफा दे दिया, क्योंकि वे महात्मा गांधी के विचार का समर्थन नहीं करते थे।
निष्कर्ष
यह आंदोलन स्वतंत्रता के अंतिम चरण को इंगित करता है। इसने गाँव से लेकर शहर तक ब्रिटिश सरकार को चुनौती दी। इससे भारतीय जनता के अंदर आत्मविश्वास बढ़ा और समानांतर सरकारों के गठन से जनता काफी उत्साहित हुई। इसमें महिलाओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और जनता ने नेतृत्व अपने हाथ में लिया। जो राष्ट्रीय आंदोलन के परिपक्व चरण को सूचित करता है। इस आंदोलन के दौरान पहली बार राजाओं को जनता की संप्रभुता स्वीकार करने को कहा गया। ज्ञातव्य है कि भारत छोड़ो आंदोलन में कम्युनिस्ट पार्टी व मुस्लिम लीग ने भागीदारी नहीं की थी।