'रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial resistance) आधुनिक चिकित्सा की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।' चर्चा कीजिये। साथ ही इस समस्या से निपटने के लिये कुछ उपाय भी सुझाइये। (250 शब्द)।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
- रोगाणुरोधी प्रतिरोध का क्या अर्थ है? संक्षेप में बताइये।
- चर्चा कीजिये कि यह किस प्रकार आधुनिक चिकित्सा की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।
- रोगाणुरोधी प्रतिरोध के मुद्दों से निपटने के लिये कुछ उपाय सुझाइये।
|
परिचय
रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance-AMR) का तात्पर्य किसी भी सूक्ष्मजीव (बैक्टीरिया, वायरस, कवक, परजीवी आदि) द्वारा एंटीमाइक्रोबियल दवाओं (जैसे एंटीबायोटिक्स, एंटीफंगल, एंटीवायरल, एंटीमाइरियल और एंटीहेलमिंटिक्स) जिनका उपयोग संक्रमण के इलाज के लिये किया जाता है, के खिलाफ प्रतिरोध हासिल कर लेने से है।
परिणामस्वरूप मानक उपचार अप्रभावी हो जाते हैं, संक्रमण जारी रहता है और दूसरों में फैल सकता है।
रोगाणुरोधी प्रतिरोध विकसित करने वाले सूक्ष्मजीवों को कभी-कभी "सुपरबग्स" के रूप में जाना जाता है।
प्रारूप
रोगाणुरोधी प्रतिरोध से संबंधित चिंताएँ
- संक्रमण की रोकथाम और उपचार के लिये खतरा- अंग प्रत्यारोपण, कैंसर कीमोथेरेपी, मधुमेह प्रबंधन और प्रमुख सर्जरी (उदाहरण के लिये सिजेरियन सेक्शन या हिप रिप्लेसमेंट) जैसी चिकित्सा प्रक्रियाएँ बहुत जोखिम भरी हो जाती हैं।
- अस्पतालों में लंबे समय तक रहने, अतिरिक्त परीक्षण और अधिक महँगी दवाओं के उपयोग से स्वास्थ्य देखभाल की लागत बढ़ जाती है।
- यह सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों के लाभों और सतत् विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की उपलब्धि को खतरे में डाल रहा है।
- पिछले तीन दशकों में एंटीबायोटिक दवाओं के किसी भी नए वर्ग ने बाज़ार में प्रवेश नहीं किया है, मुख्य रूप से उनके विकास और उत्पादन के लिये अपर्याप्त प्रोत्साहन के कारण।
- तत्काल कार्रवाई के अभाव में हम एंटीबायोटिक विनाश की ओर बढ़ रहे हैं, एंटीबायोटिक के बिना एक भविष्य, जिसमें सूक्ष्म जीव उपचार के विरुद्ध पूरी तरह से प्रतिरोधी हो जाते हैं तथा सामान्य संक्रमण और मामूली चोटें भी मानव की मृत्यु का कारण बन सकती हैं।
आगे की राह
- चूँकि रोगाणु नई रोगाणुरोधक प्रतिरोधी क्षमता विकसित करते रहेंगे, अत: नियमित आधार पर नए प्रतिरोधी उपभेदों (Strain) का पता लगाने और उनका मुकाबला करने के लिये निरंतर निवेश और वैश्विक समन्वय की आवश्यकता है।
- एंटीबायोटिक दवाओं के अनुचित प्रोत्साहन को कम करने के लिये उपभोक्ताओं को शिक्षित करने के साथ प्रदाताओं के लिये उपचार संबंधी दिशा-निर्देश जारी करने की भी आवश्यकता है।
- इन विविध चुनौतियों से निपटने के लिये नए रोगाणुरोधी को विकसित करने के अलावा कई अन्य क्षेत्रों में कार्रवाई की आवश्यकता है। संक्रमण-नियंत्रण उपायों द्वारा एंटीबायोटिक के उपयोग को सीमित को सीमित किया जा सकता है।
- वित्तीय अनुमोदन जैसे उपाय उचित नैदानिक उपयोग को (Clinical Use) प्रोत्साहित करेंगे। साथ ही रोगाणुरोधी की आवश्यकता वाले लोगों तक इसकी पहुँच को सुनिश्चित करना भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि संक्रमण की स्थिति में उपचार योग्य दवाओं के अभाव में दुनिया भर में 7 मिलियन लोग प्रतिवर्ष मर जाते हैं।
- इसके अलावा रोगाणुओं में प्रतिरोध के प्रसार को ट्रैक करने व समझने के क्रम में इन जीवाणुओं की पहचान के लिये निगरानी उपायों के लिये अस्पतालों के साथ-साथ पशुओं, अपशिष्ट जल एवं कृषि व खेत-खलिहान को भी शामिल करने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
दुनिया को तत्काल एंटीबायोटिक दवाओं को निर्धारित करने और उपयोग करने के तरीके को बदलने की ज़रूरत है। भले ही नई दवाएँ विकसित हो जाएँ, व्यवहार में बदलाव के बिना, एंटीबायोटिक प्रतिरोध एक बड़ा खतरा बना रहेगा।
व्यवहार में बदलाव के साथ ही इसमें टीकाकरण, हाथ धोने, सुरक्षित संभोग और उचित खाद्य स्वच्छता के माध्यम से संक्रमण के प्रसार को कम करने के उपाय भी शामिल होने चाहिये।